एक दोषी व्यक्ति केवल इसलिए सजा से नहीं बच सकता, क्योंकि उसे गवाह बनाया गया: कर्नाटक हाईकोर्ट
Amir Ahmad
13 Feb 2025 9:34 AM

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि एक अभियुक्त अभियोजन पक्ष की ओर से गवाह नहीं हो सकता है और व्यक्ति जो दोषी है, वह केवल इसलिए सजा से नहीं बच सकता है, क्योंकि उसे अभियोजन पक्ष द्वारा मामले में गवाह के रूप में आरोपित किया गया।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने 2011 के लौह अयस्क के अवैध परिवहन मामले में आरोपी एस मुथैया द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया है। मामले में धारा 319 (अपराध के दोषी प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही करने की शक्ति) के तहत उनके आवेदन को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में नामित 23 वन अधिकारियों को मामले में आरोपी बनाने की मांग की गई।
इस विषय पर विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा,
"यह बुनियादी बात है कि अभियुक्त अभियोजन पक्ष की ओर से गवाह नहीं हो सकता है और जो व्यक्ति दोषी है, वह केवल इसलिए सजा से नहीं बच सकता, क्योंकि उसे गवाह के रूप में पेश किया गया। यदि वह सहभागी अपराधी है तो वह कानून के अनुसार ही अभियोजन पक्ष के गवाह की स्थिति में नहीं हो सकता।"
निचली अदालत ने दिनांक 06-01-2025 के अपने आदेश के माध्यम से इस आधार पर आवेदन खारिज कर दिया कि उन्हें अभियुक्त के रूप में लाने का कोई कारण नहीं था, क्योंकि न्यायालय ने उन्हें शत्रुतापूर्ण नहीं माना है।
हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने धारा 319 CrPC के तहत प्रक्रिया शुरू किए बिना ही याचिकाकर्ता की याचिका खारिज की।
कोर्ट ने नोट किया कि अपराध उनके हस्ताक्षर के साथ खाली परमिट सौंपने से संबंधित था। आदेश में कहा गया कि वन अधिकारियों ने संबंधित न्यायालय के समक्ष CrPC की धारा 164 के तहत अपने बयान दिए, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने खाली परमिट पर हस्ताक्षर किए और उन परमिटों का उपयोग आरोपी संख्या 1 से 5 द्वारा लौह अयस्क के अवैध परिवहन के लिए किया गया। यहां तक कि विभागीय जांच भी शुरू की गई और उपरोक्त सभी गवाहों के खिलाफ आरोप पत्र जारी किए गए।
इसके बाद कहा गया,
“जो गवाह सहयोगी की स्थिति में है, उसे हमेशा कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करके ही आरोपी की स्थिति में घसीटा जा सकता है।”
यह देखते हुए कि इन अधिकारियों को संबंधित न्यायालय के समक्ष रखा गया था संबंधित न्यायालय ने CrPC की धारा 319 के तहत प्रक्रिया शुरू किए बिना और इस तरह के स्थानांतरण के मुद्दे पर आरोपियों की सुनवाई किए बिना ही आवेदन खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आवेदन में जिन गवाहों के नाम और क्रमांक हैं, वे सभी ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें अभियुक्त के साथी होना चाहिए। उन्हें गवाह के रूप में पेश नहीं किया जाना चाहिए और याचिकाकर्ता के खिलाफ उनकी जांच नहीं की जानी चाहिए। वे अभियुक्त के बराबर है। उन्होंने क्रॉस एग्जामिनेशन में स्वीकार किया कि उन्होंने खुद खाली परमिट पर हस्ताक्षर किए हैं और अभियुक्त को दिए हैं। इसलिए वे भी अपराध के दोषी हैं।
न्यायालय को उन गवाहों को अभियुक्त के रूप में लाने के लिए CrPC की धारा 319 के तहत प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। CBI ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कोई अभियुक्त यह दलील नहीं दे सकता कि किसी अन्य व्यक्ति को अभियुक्त के रूप में लाया जाना चाहिए।
यदि कोई सबूत है और यदि यह आवश्यक पाया जाता है तो अभियोजन पक्ष स्वयं एक आवेदन दायर करेगा। वह आवश्यकता अभी तक उत्पन्न नहीं हुई है। निष्कर्ष: पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने "यह विचार करके खुद को गलत दिशा दी है कि उन गवाहों ने क्षमा नहीं मांगी है।
अदालत ने आगे कहा,
“यदि उन्होंने क्षमा नहीं मांगी है तो उनसे अभियुक्त के रूप में पूछताछ नहीं की जा सकती। एक आरोपी क्षमा मांग सकता है और सरकारी गवाह बन सकता है तथा अन्य आरोपियों के खिलाफ गवाही दे सकता है। यह समझ से परे है कि अभियोजन पक्ष के गवाह कैसे क्षमा मांग सकते हैं तथा अन्य आरोपियों के खिलाफ गवाही दे सकते हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान मामले में ये व्यक्ति गवाह हैं जो अपराध में भागीदार हैं।
अदालत ने आगे कहा,
“कुछ हद तक अपराध में भागीदार क्योंकि उन्होंने खाली दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करना स्वीकार किया है। यदि वे खाली दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करना स्वीकार करते हैं तो वे अन्य आरोपियों के साथ-साथ सह-अपराधी बन जाते हैं, जिन पर कुछ अपराधों के लिए आरोप लगाया जा सकता है।”
याचिका आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा आवेदन पर विचार किया जाना चाहिए तथा CrPC की धारा 319 के तहत कानून में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह अब CrPC की धारा 319 के तहत कानून के अनुसार आवेदन का जवाब दे।
केस टाइटल: एस.मुथैया और राज्य सीबीआई द्वारा