कर्नाटक हाईकोर्ट ने OLA Cabs को ड्राइवर द्वारा कथित रूप से परेशान की गई महिला को 5 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया

Amir Ahmad

30 Sept 2024 3:35 PM IST

  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने OLA Cabs को ड्राइवर द्वारा कथित रूप से परेशान की गई महिला को 5 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने ANI टेक्नोलॉजीज जो ओला कैब्स का स्वामित्व और संचालन करती है, उसको महिला को मुआवज़े के रूप में 5 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसने 2019 में एक यात्रा के दौरान अपने ड्राइवर के हाथों कथित रूप से यौन उत्पीड़न का सामना किया था।

    जस्टिस एम जी एस कमल की एकल न्यायाधीश पीठ ने कंपनी की आंतरिक शिकायत समिति को कार्यस्थल पर महिला के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 [POSH Act] के प्रावधानों के अनुसार शिकायत की जांच करने का भी निर्देश दिया।

    यह प्रक्रिया 90 दिनों के भीतर पूरी की जानी है और जिला अधिकारी को रिपोर्ट सौंपी जानी है।

    कोर्ट ने हितधारकों को POSH Act की धारा 16 का अनुपालन सुनिश्चित करने और मामले में शामिल व्यक्तियों की पहचान का खुलासा न करने के लिए भी आगाह किया।

    कोर्ट ने 20 अगस्त को महिला की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। ANI टेक्नोलॉजीज को मुकदमे के खर्च के लिए अतिरिक्त 50,000 रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया गया।

    याचिकाकर्ता पर 2019 में कथित तौर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया और ड्राइवर के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए ANI टेक्नोलॉजीज को की गई उसकी शिकायत पर विचार नहीं किया गया। आंतरिक शिकायत समिति ने बाहरी कानूनी सलाहकार द्वारा दी गई सलाह पर मामले में जांच करने से इनकार किया कि उसके पास मामले की जांच करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    इसके बाद उसने शिकायत की जांच करने के लिए कंपनी को निर्देश देने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने के निर्देश भी मांगे कि OLA POSH Act का सख्ती से पालन करे। इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकार से ऐसे नियम जारी करने की मांग की, जो टैक्सी सेवाओं का लाभ उठाने वाली महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो सकते हैं।

    अदालत ने अब कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन प्राधिकरण को निर्देश दिया, जिसने ANI टेक्नोलॉजीज से स्पष्टीकरण मांगने के लिए नोटिस जारी किया था कि वह मामले को आगे बढ़ाए और सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद 90 दिनों के भीतर प्रक्रिया पूरी करे। इसके अलावा इसने याचिका का जवाब न देने के लिए कथित तौर पर राज्य पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

    सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने ओला और कैब के बीच समझौते की शर्तों के खंडों का उल्लेख किया। तर्क दिया कि ओला न केवल प्लेटफॉर्म है, बल्कि परिवहन कंपनी की तरह काम करती है। वकील ने कहा कंपनी और ड्राइवर के बीच कोई अनुबंध की गोपनीयता नहीं है, न ही मैं और ड्राइवर।

    इस बात पर जोर देते हुए कि कंपनी ड्राइवर की हरकतों के लिए जिम्मेदार है, वकील ने कहा,

    "अगर ओला द्वारा यह अस्वीकरण किया गया होता कि हम आपके लिए जिम्मेदार नहीं हैं, तो मैं (याचिकाकर्ता) कैब नहीं लेता।"

    उन्होंने दावा किया कि कंपनी पर POSH Act लागू होता है। कंपनी की आंतरिक समिति को उनकी शिकायत खारिज नहीं करनी चाहिए थी।

    इस बीच, कंपनी (OLA) की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट ध्यान चिन्नप्पा ने याचिका खारिज करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि श्रम कानून उन मामलों में लागू नहीं हो सकता, जहां ये ड्राइवर स्वतंत्र ठेकेदार हैं और OLA को ऐसे नियोक्ता का दर्जा नहीं दिया जा सकता, जिसने ड्राइवर को काम पर रखा।

    अदालत ने वकील से पूछा कि क्या OLA जिम्मेदार होगी, क्योंकि शिकायतकर्ता (ग्राहक) ने कैब के लिए OLA से संपर्क किया था। कैब ड्राइवर, जिसके खिलाफ आरोप लगाया गया है, उसको OLA ने भेजा था।

    इस सवाल का जवाब देते हुए सीनियर वकील ने कहा,

    "जब मैं Amazon पर बुकिंग करता हूं तो मुझे नहीं पता होता कि डिलीवरी कहां से आ रही है, विक्रेता का नाम बिल पर छोटे अक्षरों में होता है तो क्या यह कहा जा सकता है कि मध्यस्थ का नियंत्रण है। कैब पर लीजधारक का अधिकार है। अगर मैं ड्राइवर को सवारी के दौरान ड्यूटी करने का प्रशिक्षण देता हूं तो इससे यह नहीं खत्म हो जाता कि मैं मध्यस्थ हूं।"

    यह कहते हुए कि ड्राइवर के खिलाफ कार्रवाई की गई, सीनियर वकील ने याचिका खारिज करने की मांग की। तर्क दिया कि ड्राइवर को ओला का कर्मचारी मानना ​​बहुत बड़ी बात होगी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कंपनी के खिलाफ कोई दंडात्मक हर्जाना नहीं दिया जा सकता।

    इस बीच हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे पर नाराजगी व्यक्त की। कहा कि वह अपने आदेश में इस पर विचार करेगा।

    केस टाइटल: एबीसी और आंतरिक शिकायत समिति और अन्य

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