केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी के परिजनों ने 2.5 करोड़ रुपये के बदले में चुनावी टिकट देने के आरोपों से संबंधित मामला खारिज करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया

Amir Ahmad

25 Oct 2024 12:10 PM IST

  • केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी के परिजनों ने 2.5 करोड़ रुपये के बदले में चुनावी टिकट देने के आरोपों से संबंधित मामला खारिज करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया

    केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी के भाई गोपाल जोशी और उनके बेटे अजय जोशी जिन्हें गुरुवार को धोखाधड़ी के एक मामले में गिरफ्तार किया गया, उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की मांग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डी आर रविशंकर ने तर्क दिया कि यह मामला पूरी तरह से वित्तीय लेनदेन से संबंधित है। आरोपित अपराध के लिए कोई मामला नहीं बनता।

    पूर्व जेडी(S) विधायक देवानंद चव्हाण की पत्नी सुनीता चव्हाण द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत पर जोशी, उनके बेटे और दो अन्य को पुलिस ने गिरफ्तार किया।

    आरोप है कि आरोपी ने बीजापुर लोकसभा सीट से उसके पति को भाजपा का टिकट दिलाने का वादा करके उससे 2.5 करोड़ रुपये ठगे। रविशंकर ने कहा कि शिकायत के अनुसार आरोप मार्च और अगस्त के बीच हुई घटनाओं से संबंधित हैं। शिकायत 17 अक्टूबर को दर्ज की गई थी और पुलिस ने अगले दिन मुझे गिरफ्तार कर लिया।

    एडिशनल विशेष लोक अभियोजक बी एन जगदीश ने अदालत को बताया कि उन्होंने केंद्रीय मंत्री के कार्यालय का इस्तेमाल तब किया, जब वह पद पर नहीं थे। उन्होंने (आरोपी ने) इन लोगों (शिकायतकर्ता) को अपने चैंबर में बुलाया। उन्होंने ऐसा व्यवहार किया जैसे केंद्रीय मंत्री ने उन्हें सहमति दे दी है और फिर वह सीट सुरक्षित कर लेंगे।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि उन्होंने केंद्रीय मंत्री के कार्यालय का इस्तेमाल क्यों किया। उन्हें केंद्रीय मंत्री के कार्यालय में क्यों ले गए। वकील ने कहा कि लेन-देन कार्यालय में नहीं हुआ, यह बेंगलुरु में हुआ है।

    इसके बाद अदालत ने अभियोजन पक्ष को निर्देश दिया कि वे अभिलेख सुरक्षित रखें और अगली तारीख पर अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें तथा मामले की अगली सुनवाई सोमवार को तय की। जोशी पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 126(2), 115(2) और 118(1) 118(1), 316(2), 318(4), 61, 3(5) और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(आर), (एस) तथा 3(2)(वी-ए) के तहत आरोप लगाए गए।

    याचिका में FIR को पूरी तरह से रद्द करने और अंतरिम आदेश के माध्यम से आगे की सभी कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई।


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