डिजीपब ने केंद्र की कंटेंट ब्लॉकिंग शक्तियों को चुनौती देने वाली X कॉर्प की याचिका खारिज होने के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील की
Amir Ahmad
19 Nov 2025 4:37 PM IST

डिजीपब न्यूज़ इंडिया फाउंडेशन और पत्रकार अभिनंदन सेखरी ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील की, जिसमें एक सिंगल जज के उस आदेश को चुनौती दी गई। इसमें US-बेस्ड माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म X कॉर्प (पहले ट्विटर) द्वारा केंद्र की कंटेंट ब्लॉकिंग शक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई थी।
डिजीपब डिजिटल मीडिया न्यूज़ का प्रतिनिधि समूह है और उसका कहना है कि उसके सदस्य X जैसे इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म पर न केवल अपनी पत्रकारिता सामग्री साझा करने और वितरित करने के लिए बल्कि डिजिटल युग में अपनी राय व्यक्त करने के माध्यम के रूप में भी निर्भर हैं।
उसे आशंका है कि केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा सहयोग पोर्टल के माध्यम से जारी किए गए ब्लॉकिंग आदेश संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत उनके भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कम कर देंगे।
यह कहता है,
विवादित आदेश द्वारा माननीय न्यायालय ने अपीलकर्ताओं द्वारा ऑनलाइन भाषण के खिलाफ कार्यपालिका द्वारा अनियंत्रित शक्तियों के प्रयोग को मंजूरी दी है। इसके अलावा अपीलकर्ताओं को न तो सुनवाई का लाभ मिलेगा और न ही तर्कपूर्ण आदेश का जो उन्हें अपना मामला पेश करने और क्रमशः न्यायिक पुनर्विचार के लिए देश की अदालतों में जाने से रोकता है। सबसे गंभीर उल्लंघन यह है कि विवादित तंत्र के तहत अपीलकर्ताओं को तब भी सूचित नहीं किया जाएगा, जब उनके द्वारा बनाया गया कंटेंट हटा दिया जाएगा या नीचे ले लिया जाएगा।"
बता दें, 24 सितंबर के अपने फैसले में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने कहा था कि सोशल मीडिया को रेगुलेट किया जाना चाहिए। साथ ही X कॉर्प द्वारा चुनौती दिया गया सहयोग पोर्टल सेंसरशिप का साधन नहीं है, बल्कि एक सुविधा तंत्र है, जिसका उद्देश्य अधिकृत एजेंसियों और इंटरमीडियरी के बीच संचार को सुव्यवस्थित करना है।
डिजीपब ने X कॉर्प की याचिका का समर्थन करते हुए कहा था कि अगर सहयोग पोर्टल जारी रहता है तो फाउंडेशन के सदस्य 92 मीडिया हाउस जो जिम्मेदार रिपोर्टिंग कर रहे हैं, टेक डाउन ऑर्डर जारी करने वाले एक अधिकारी की दया पर निर्भर रह जाएंगे।
सिंगल जज ने X कॉर्प की याचिका और डिजीपब के हस्तक्षेप आवेदन दोनों को खारिज कर दिया था।
अब अपनी अपील में डिजीपब का कहना है कि अगर सहयोग पोर्टल जारी रहता है तो अंततः अपीलकर्ताओं द्वारा प्रचारित भाषण ही प्रभावित होगा। इस प्रकार, उनके मौलिक अधिकार सीधे तौर पर दांव पर हैं।
इसमें कहा गया,
अपील करने वाले ही मुख्य रूप से उस फैसले से जुड़े मौलिक अधिकारों के असली हकदार हैं, न कि बिचौलिए।
इसमें आगे कहा गया कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 79 के तहत मिलने वाली सेफ हार्बर सुरक्षा खोने की संभावना बिचौलियों को उन टेकडाउन ऑर्डर का भी पालन करने के लिए मजबूर करेगी, जिनका कानून में कोई आधार नहीं है।
अपील में कहा गया,
"अपील करने वालों जैसे कंटेंट बनाने वाले ही सेफ हार्बर द्वारा दी गई सुरक्षा के असली लाभार्थी हैं। विवादित फैसला, जो कानून में पूरी तरह से अनजान प्रक्रिया के माध्यम से सेफ हार्बर खोने की अनुमति देता है। इसलिए सीधे तौर पर अपील करने वालों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए विवादित फैसला एक ऐसे मैकेनिज्म को लागू करने में मदद करता है जिसका न केवल बोलने की आज़ादी पर बल्कि जानकारी इकट्ठा करने की प्रक्रिया पर भी बुरा असर पड़ता है, जिससे न्यूज़ रिपोर्टिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और मोनेटाइजेशन होता है। यह सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और 19(1)(g) के तहत अपील करने वालों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाता है।"
याचिका में कहा गया कि विवादित आदेश यह विचार करने में विफल रहा है कि धारा 79 एक छूट का प्रावधान है, जो टेक-डाउन अनुरोध जारी करने या किसी अन्य प्रकार के कंटेंट ब्लॉकिंग में शामिल होने की शक्ति नहीं देता है।
"यह श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ, (2015) मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ठीक से या सही ढंग से विचार करने में विफल रहा है। इसके अलावा विवादित फैसला सहयोग पोर्टल के इस्तेमाल के माध्यम से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और अनुच्छेद 14 के उल्लंघन पर विचार करने और उस पर कोई निष्कर्ष देने में विफल रहा है।"
अपील में आगे कहा गया,
यह ध्यान दिया जा सकता है कि X Corp ने भी सिंगल जज के आदेश को चुनौती देते हुए एक अपील दायर की।

