हुक या क्रुक से जीतने वाला सामान्य पक्षकार नहीं है सरकार: झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य की आक्रामक मुकदमेबाजी पर कड़ी फटकार, 1 लाख का जुर्माना

Amir Ahmad

23 Dec 2025 12:11 PM IST

  • हुक या क्रुक से जीतने वाला सामान्य पक्षकार नहीं है सरकार: झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य की आक्रामक मुकदमेबाजी पर कड़ी फटकार, 1 लाख का जुर्माना

    झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की आक्रामक और गैर-जिम्मेदाराना मुकदमेबाजी पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि सरकार कोई साधारण वादी नहीं है, जो अपने ही नागरिक के खिलाफ किसी भी तरह से मामला जीतने की कोशिश करे।

    अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राज्य का दायित्व न्यायपूर्ण आचरण का है न कि तकनीकी दांव-पेंच अपनाकर कमजोर पक्ष पर अनुचित बढ़त हासिल करने का।

    चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ एक सिविल रिव्यू याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के पूर्व आदेश के खिलाफ दायर किया था।

    उस पूर्व आदेश में केवल इतना निर्देश दिया गया था कि निचली निष्पादन अदालत लंबित कार्यवाही का शीघ्र निस्तारण करे। हाईकोर्ट ने पाया कि उस आदेश में मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी ही नहीं की गई। इसके बावजूद राज्य ने समीक्षा याचिका दाखिल कर दी।

    अदालत ने राज्य के इस कदम को निष्पादन कार्यवाही को टालने का प्रयास बताया और कहा कि समीक्षा याचिका का उद्देश्य न्याय नहीं बल्कि कार्यवाही में बाधा डालना प्रतीत होता है।

    कोर्ट ने राज्य सरकार के रवैये को बेलिजरेंट लिटिगेशन करार देते हुए कहा कि अधिकारी मुकदमे को युद्ध की तरह लड़ रहे हैं जबकि एक ओर शक्तिशाली राज्य है। दूसरी ओर एक निजी कंपनी जिससे यह लड़ाई स्वाभाविक रूप से असमान हो जाती है।

    खंडपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 12 का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ईमानदार दावों को स्वीकार करे, ठोस और न्यायसंगत बचाव प्रस्तुत करे और केवल कानूनी तकनीकों का सहारा लेकर वैध देनदारी से बचने की कोशिश न करे।

    अदालत ने यह भी कहा कि राज्य का ऐसा रवैया न केवल अनुचित है, बल्कि इससे जनता का पैसा भी व्यर्थ जा रहा है।

    हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि चूंकि सरकारी अधिकारी मुकदमेबाजी का खर्च अपनी जेब से नहीं देते, इसलिए वे बेबुनियाद और अनावश्यक याचिकाएं दायर करने से नहीं हिचकते।

    अदालत ने इसे सार्वजनिक धन की बर्बादी करार दिया और कहा कि अब इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने का समय आ गया है।

    अदालत ने निर्देश दिया कि भविष्य में राज्य सरकार की ओर से अपीलीय या पुनरीक्षण स्तर पर कोई भी मुकदमा तभी दायर किया जाएगा, जब झारखंड स्टेट लिटिगेशन पॉलिसी का पूर्ण रूप से पालन किया गया हो।

    साथ ही, अदालत ने समीक्षा याचिका खारिज करते हुए राज्य पर ₹1,00,000 का जुर्माना लगाया, जिसे संबंधित अधिकारियों को अपनी जेब से चार सप्ताह के भीतर झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (JHALSA), रांची में जमा करना होगा।

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