S.60 Indian Evidence Act| तथ्य देखने या सुनने वाले व्यक्ति को प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रदान करने वाला कहा जा सकता है: झारखंड हाईकोर्ट
Amir Ahmad
9 Nov 2024 7:15 PM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के तहत प्रत्यक्ष साक्ष्य की विश्वसनीयता पर जोर देते हुए कांस्टेबल की हत्या की सजा बरकरार रखी।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रत्यक्षदर्शी द्वारा दी गई गवाही, जिसने किसी तथ्य को प्रत्यक्ष रूप से देखा या सुना हो, प्रत्यक्ष साक्ष्य होती है।
जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की खंडपीठ ने कहा,
“सूचना देने वाला घटना का प्रत्यक्ष प्रत्यक्षदर्शी है। इसे अफवाह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसने गोलीबारी की आवाज सुनी थी। घटना के तुरंत बाद अपीलकर्ता को गिरफ्तार किए जाने की परिस्थिति से उसकी गवाही की पुष्टि होती है।”
खंडपीठ ने कहा,
“साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के तहत कोई व्यक्ति जिसने कोई तथ्य देखा या सुना हो, उसे प्रत्यक्ष साक्ष्य कहा जा सकता है। पी.डब्लू. 3 ने यह बयान दिया कि घटना के तुरंत बाद अपीलकर्ता ने उससे कहा कि मृतक ने अनुमति लेने से इनकार कर दिया, इसलिए उसने उसे मार डाला। यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 के तहत प्रासंगिक होगा और अपीलकर्ता का न्यायिक स्वीकारोक्ति भी होगा।”
इस मामले में अपीलकर्ता भारतीय रिजर्व बटालियन में एक कांस्टेबल, सूचना देने वाले और तीन अन्य कांस्टेबलों के साथ ड्यूटी पर था।
गोलियों की आवाज सुनकर इंफॉर्मेंट ने पाया कि अपीलकर्ता गायब है। उसे मृतक के कमरे से बाहर निकलते देखा, जहां मृतक खून से लथपथ पड़ा था और पास में 11 खाली कारतूस पड़े थे।
जांच के बाद आईपीसी की धारा 302 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसके कारण ट्रायल कोर्ट में अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया। बाद में इस सजा को चुनौती देते हुए आपराधिक अपील दायर की गई।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि घटना के लिए कोई प्रत्यक्ष चश्मदीद गवाह मौजूद नहीं था, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर हो गया।
राज्य ने यह कहते हुए प्रतिवाद किया कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर नहीं करता है क्योंकि एक प्रत्यक्ष चश्मदीद गवाह मौजूद है।
न्यायालय ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 पर विस्तार से चर्चा की, इस बात पर जोर देते हुए कि इस धारा के दृष्टांत (ए) में कहा गया।
ए पर बी की पिटाई करके उसकी हत्या करने का आरोप है। ए या बी या पिटाई के समय या उसके कुछ समय पहले या बाद में खड़े लोगों द्वारा जो कुछ भी कहा या किया गया, जो एक ही लेन-देन का हिस्सा है, वह सुसंगत तथ्य है।
न्यायालय ने नोट किया कि घटना के उसी दिन एफआईआर दर्ज की गई थी। बताया कि जब्ती सूची के अनुसार उसी रात मृतक के कमरे से खून से सना प्लास्टर एक इंसास राइफल के ग्यारह फायर किए गए कारतूस और लोडेड मैगजीन जब्त की गई।
न्यायालय ने कहा,
“जांच अधिकारी (पी.डब्लू. 10) ने घटनास्थल का विवरण मृतक- सुनील सोरेन (एस.आई.) के कमरे में बताया, जहां से 11 राउंड फायर किए गए कारतूस और इंसास राइफल लोडेड मैगजीन जब्त की गई। जांच अधिकारी की गवाही सूचक (पी.डब्लू. 3) की गवाही की पुष्टि करती है कि घटना मृतक के कमरे में हुई थी।”
इन तथ्यों के प्रकाश में न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,
“उपर्युक्त तथ्यों और परिस्थितियों के तहत और पी.डब्लू. 2 और पी.डब्लू. 3, मुझे आईपीसी की धारा 302 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत दोषसिद्धि में कोई कमी नहीं दिखती। ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि करता हूँ।"
तदनुसार आपराधिक अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: जय प्रकाश यादव बनाम झारखंड राज्य