ध्वस्त मकानों का मुआवजा दोषी अधिकारियों से ही वसूला जाए, राज्य पर नहीं डाला जा सकता बोझ: झारखंड हाईकोर्ट
Amir Ahmad
29 Dec 2025 1:46 PM IST

झारखंड हाईकोर्ट ने राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान की अधिग्रहित भूमि पर हुए अवैध निर्माण और अतिक्रमण के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि जिन अधिकारियों की लापरवाही और मिलीभगत से यह स्थिति पैदा हुई, उन्हीं से ध्वस्त मकानों का मुआवजा वसूला जाना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी अवैधताओं के लिए राज्य के खजाने पर बोझ डालना न्यायसंगत नहीं है।
चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने रिम्स की भूमि पर हुए अतिक्रमण से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिए। अदालत ने पाया कि रिम्स परिसर के भीतर लगभग सात एकड़ भूमि पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया गया, जो गंभीर प्रशासनिक चूक के बिना संभव नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने न केवल अधिग्रहित भूमि पर निर्माण को नजरअंदाज किया, बल्कि कुछ मामलों में भूमि के स्वामित्व से जुड़े अभिलेखों में भी हेरफेर की गई। अदालत ने यह भी संज्ञान लिया कि अतिक्रमित भूमि पर किराया रसीदें और बंधनमुक्त प्रमाणपत्र तक जारी किए गए, जिससे आम लोगों को यह विश्वास हुआ कि वे वैध संपत्ति में निवेश कर रहे हैं।
खंडपीठ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह चौंकाने वाला है कि संबंधित अधिकारियों ने कभी भूमि के शीर्षक की जांच नहीं की जबकि भूमि पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी थी। न्यायालय ने यह भी कहा कि जिन इमारतों को ध्वस्त किया गया वे उन लोगों की थीं जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई से फ्लैट या मकान खरीदे थे और वे इस प्रशासनिक लापरवाही का शिकार बने।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो भविष्य में भी ऐसी घटनाएं दोहराई जाएंगी और निर्दोष लोग इसी तरह प्रभावित होंगे। न्यायालय ने कहा कि यह समझ से परे है कि जब रिम्स परिसर में निर्माण हो रहा था, तब संबंधित प्राधिकरण क्या कर रहे थे जबकि यह जनहित याचिका वर्ष 2018 से लंबित थी।
हालांकि, कोर्ट ने यह माना कि इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को भी सौंपी जा सकती थी, लेकिन फिलहाल उसने राज्य पुलिस को FIR दर्ज करने और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से जांच कराने का निर्देश दिया। साथ ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करने के आदेश भी दिए गए।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि जिन निवासियों के मकान ध्वस्त किए गए, वे मुआवजे के हकदार हैं। लेकिन यह मुआवजा राज्य के खजाने से नहीं, बल्कि उन अधिकारियों और बिल्डरों से वसूला जाना चाहिए, जिन्होंने अधिग्रहित सरकारी भूमि पर निर्माण की अनुमति दी या निर्माण कराया।
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस पूरे मामले में प्रत्येक दोषी अधिकारी की जिम्मेदारी तय करे और प्रभावित लोगों को उचित मुआवजा दिलाना सुनिश्चित करे।
मामले की अगली सुनवाई छह जनवरी, 2026 को निर्धारित की गई।

