HP हाईकोर्ट ने न्यायिक पदोन्नति परीक्षा के नियमों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की, सख्त टिप्पणी की
Amir Ahmad
9 July 2025 3:36 PM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि यदि न्यायिक अधिकारियों ने बिना किसी आपत्ति के पदोन्नति के लिए विभागीय परीक्षा में भाग लिया था तो वे बाद में उसके नियमों को चुनौती नहीं दे सकते। कोर्ट ने याचिकाओं को इस आधार पर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता खुद न्यायिक अधिकारी हैं, जिन्हें चयन प्रक्रिया में बिना आपत्ति के भाग लेने के परिणामों की समझ होनी चाहिए।
जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस संदीप शर्मा की खंडपीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता अपने कार्य और आचरण के कारण उक्त विनियमन को चुनौती देने से रोके गए और केवल इसी आधार पर याचिकाएं खारिज किए जाने योग्य हैं, विशेषकर जब याचिकाकर्ता न्यायिक अधिकारी वर्ग से हैं, जिन्हें चयन प्रक्रिया में बिना आपत्ति के भाग लेने और परीक्षा में असफल होने के बाद याचिका दायर करने के परिणामों का ज्ञान होना चाहिए।"
मामले की पृष्ठभूमि:
दो याचिकाओं में हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा पदोन्नति विनियम, 2005 के क्लॉज 6(i) को चुनौती दी गई थी, जिसमें इन-सर्विस सिविल जजों (सीनियर डिवीजन) के लिए जिला जज/एडिशनल जिला जज पदों पर सीमित प्रतिस्पर्धी परीक्षा के माध्यम से पदोन्नति के लिए उच्च अर्हक अंक निर्धारित किए गए।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि प्रत्यक्ष भर्ती और सीमित प्रतिस्पर्धी परीक्षा के माध्यम से भर्ती के लिए अलग-अलग मानदंड तय करना अनुचित, भेदभावपूर्ण और संविधान के समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
यह दोहरा सिस्टम सुप्रीम कोर्ट के 2002 के फैसले (All India Judges Association v. Union of India) के बाद लागू किया गया, जिसमें जिला जजों के पदों को 75% पदोन्नति और 25% प्रत्यक्ष भर्ती से भरने का निर्देश दिया गया था।
कोर्ट की टिप्पणियां:
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता परीक्षा की शर्तों से पूरी तरह अवगत थे और उन्होंने बिना कोई आपत्ति दर्ज कराए परीक्षा में भाग लिया। एक याचिकाकर्ता ने असफल होने के बाद केवल 1% अतिरिक्त अंक देने की मांग की थी, नियमों की समानता की नहीं।
कोर्ट ने कहा,
“जब याचिकाकर्ताओं ने स्वेच्छा से परीक्षा प्रक्रिया में भाग लिया और बाद में असफल हुए तो वे अब नियमों को चुनौती नहीं दे सकते।”
साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हालिया फैसले (डॉ. कविता कंबोज बनाम पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट, 2024) में यह स्पष्ट कर दिया है कि भर्ती के दो तरीकों के लिए अलग-अलग मानदंड तय करना अनुचित या भेदभावपूर्ण नहीं है।
इसलिए हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया और पात्रता मानदंड बरकरार रखा।
टाइटल: राजेश कुमार वर्मा बनाम माननीय हाईकोर्ट ऑफ हिमाचल प्रदेश, मदन कुमार बनाम माननीय हाईकोर्ट ऑफ हिमाचल प्रदेश

