नगर निगम वादे के बाद कब्जाधारी को अतिक्रमणकारी नहीं कह सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Amir Ahmad

8 Nov 2025 2:02 PM IST

  • नगर निगम वादे के बाद कब्जाधारी को अतिक्रमणकारी नहीं कह सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि नगर निगम ने किसी कब्जाधारी से यह आश्वासन देकर परिसर खाली कराया कि उसे पुनः उसी स्थान पर दुकान आवंटित की जाएगी तो बाद में निगम उस व्यक्ति को 'अवैध कब्जाधारी' या 'अतिक्रमणकारी' नहीं ठहरा सकता।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल की एकल पीठ ने कहा,

    “उत्तरदायी निगम जिसने पुनः कब्जा दिलाने के वादे पर याचिकाकर्ता से परिसर खाली कराया, अब इस कार्यवाही में यह नहीं कह सकता कि याचिकाकर्ता राज्य की संपत्ति पर अवैध रूप से काबिज है या उसने अतिक्रमण किया है।”

    यह मामला राम लाल शर्मा नामक व्यक्ति से जुड़ा है, जो शिमला में पिछले छह दशकों से एक दवा की दुकान और ब्लड टेस्टिंग लैब चला रहे थे। उनकी दुकान नगर निगम के स्वामित्व वाले स्टॉलों में से एक थी।

    स्मार्ट सिटी मिशन के तहत नगर निगम ने पुराने ढांचे को तोड़कर एक आधुनिक भवन बनाने का निर्णय लिया था। इस दौरान निगम ने सभी दुकानदारों को यह भरोसा दिया था कि पुनर्निर्माण के बाद उन्हें समान आकार की दुकानें फिर से आवंटित की जाएंगी।

    याचिकाकर्ता का कहना था कि पुनर्निर्माण के बाद जो दुकान उसे दी गई, वह पहले की तुलना में काफी छोटी थी, जिससे उसकी फार्मेसी और लैब का संचालन मुश्किल हो गया।

    नगर निगम ने इसका विरोध करते हुए कहा कि वह याचिकाकर्ता को बड़ी दुकान देने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि वह न तो विधिवत पट्टाधारी था और न ही वैध कब्जे में। निगम के अनुसार दुकान मूल रूप से किसी अन्य व्यक्ति को लीज पर दी गई, जिसने बाद में अवैध रूप से इसे राम लाल शर्मा को उप-भाड़े पर दे दिया। लीज उसी वर्ष रद्द कर दी गई लेकिन याचिकाकर्ता ने कब्जा जारी रखा और अवैध रूप से दुकान का क्षेत्रफल बढ़ा लिया।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि वह इस मामले में याचिकाकर्ता के स्वामित्व या कब्जे की वैधता पर कोई निर्णय नहीं दे रही है। मामला केवल इस सीमित प्रश्न तक है कि क्या याचिकाकर्ता को पुनर्निर्माण के बाद पहले जितनी जगह वाली दुकान दी जानी चाहिए थी या नहीं।

    न्यायालय ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता का कब्जा तकनीकी रूप से अनधिकृत रहा हो फिर भी निगम द्वारा स्वेच्छा से दुकान खाली करवाना और समान क्षेत्रफल की पुनः आवंटन का वादा करना, निगम पर नैतिक और प्रशासनिक दायित्व डालता है।

    याचिकाकर्ता ने जबरन बेदखली के बजाय भरोसे पर परिसर खाली किया था, इसलिए अब निगम को अतिक्रमण का तर्क देने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    अंततः अदालत ने नगर निगम की यह दलील अस्वीकार कर दी कि याचिकाकर्ता अवैध कब्जाधारी है। साथ ही कहा कि निगम ने स्वयं पुनः आवंटन के वादे पर परिसर खाली करवाया था इसलिए अब वह उस वादे से पीछे नहीं हट सकता।

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