अकेले व्यक्ति के नाम पर किरायेदारी होने पर फर्म द्वारा किराया चुकाने मात्र से किरायेदारी का अधिकार नहीं मिलता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Amir Ahmad

8 Oct 2025 11:37 AM IST

  • अकेले व्यक्ति के नाम पर किरायेदारी होने पर फर्म द्वारा किराया चुकाने मात्र से किरायेदारी का अधिकार नहीं मिलता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि किरायेदारी किसी अकेले व्यक्ति के नाम पर है तो साझेदारी फर्म द्वारा किराया चुकाने मात्र से फर्म को किरायेदारी का अधिकार नहीं मिल जाता, जब तक कि फर्म के नाम पर कोई वैध किरायेदारी नहीं हो।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की,

    "हो सकता है कि किसी साझेदारी फर्म ने कुछ भुगतान किया हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उक्त साझेदारी फर्म स्वचालित रूप से किरायेदार बन गई।"

    यह विवाद 1995 में शुरू हुआ, जब सहकारिता सोसायटी ने हिमाचल प्रदेश पब्लिक प्रीमाइसेज़ (भूमि बेदखली और किराया वसूली) अधिनियम, 1971 के तहत मेसर्स हिमाचल आयरन स्टोर परवाणू के मालिक केशव राम खुराना के खिलाफ़ कार्यवाही शुरू की। सोसायटी ने तर्क दिया कि किरायेदार ने दुकान परिसर का किराया चुकाने में चूक की।

    पहली याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गई कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 106 के अनुसार किरायेदारी समाप्त करने के लिए नोटिस नहीं दिया गया।

    इसके बाद सोसायटी ने 2000 में नए सिरे से कार्यवाही शुरू की, जिसमें दावा किया गया कि किरायेदार ने फिर से किराया नहीं चुकाया। सोसायटी को वह परिसर अपने उपयोग के लिए चाहिए।

    परिसर के मालिक (प्रोप्राइटर) ने बचाव किया कि किरायेदारी एक साझेदारी फर्म की, इसलिए सभी भागीदारों को कार्यवाही में पक्षकार बनाया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने गौर किया कि दुकान 1982 में अकेले मालिक को आवंटित की गई, जो साझेदारी फर्म के गठन से पहले का समय था। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि 1983 में निष्पादित साझेदारी विलेख अपंजीकृत था। उसका कोई दस्तावेजी साक्ष्य मूल्य नहीं था। इसके बाद प्राधिकरण ने परिसर से बेदखली का आदेश दिया।

    मालिक ने इस आदेश को शिमला के मंडलायुक्त के समक्ष चुनौती दी, जिसने 2010 में अपील को समय-बाधित होने के कारण खारिज कर दिया। मालिक की मृत्यु के बाद उनके कानूनी वारिसों ने हाईकोर्ट का रुख किया और मामले को नए सिरे से विचार के लिए वापस भेजा गया।

    2018 में अपीलीय प्राधिकरण ने एक बार फिर अपील खारिज की यह मानते हुए कि कथित साझेदारी फर्म का अस्तित्व उचित दस्तावेज़ीकरण के माध्यम से सिद्ध नहीं हुआ।

    इसके बाद कानूनी वारिसों ने मूल बेदखली आदेश और अपीलीय आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की।

    हाईकोर्ट ने पाया कि किराए की रसीदें और अन्य दस्तावेज़ केवल मालिक को ही किरायेदार दर्शाते थे। न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए यह भी नोट किया कि मालिक की मृत्यु के बाद ही कानूनी वारिसों ने साझेदारी का बचाव लिया, जबकि मालिक ने स्वयं कभी यह बचाव नहीं लिया।

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