पद सृजित करने में राज्य की देरी, संविदा कर्मचारियों को नियमितीकरण के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
Amir Ahmad
10 Jun 2025 12:33 PM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि पद सृजित करने में राज्य की देरी संविदा कर्मचारियों को राज्य की नियमितीकरण नीति के तहत सेवा की निर्धारित अवधि पूरी करने के बाद नियमितीकरण के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती।
जस्टिस सत्येन वैद्य,
“यदि पदों का सृजन उचित समय के भीतर किया गया होता तो याचिकाकर्ता दिनांक 4.4.2013 के संचार के अनुसार भी नियमितीकरण के लिए पात्र होते, क्योंकि उन सभी ने 31.3.2013 तक 6 वर्ष की सेवा पूरी कर ली है।”
मामला
इस मामले में याचिकाकर्ता विभिन्न विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरणों के कर्मचारी थे। इन प्राधिकरणों का गठन हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम के तहत किया गया था। ये विकास योजनाएं तैयार करने राज्य सरकार की मंजूरी के बाद उन्हें लागू करने भूमि अधिग्रहण करने, उपयोगिताओं का निर्माण करने नगरपालिका सेवाएं प्रदान करने और सरकार के निर्देशानुसार विशेष क्षेत्र का प्रबंधन करने के लिए जिम्मेदार थे।
याचिकाकर्ताओं को शुरू में अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था और बाद में हिमाचल प्रदेश के नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग के निदेशक द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार 2015 में उनकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2013 से पूर्वव्यापी प्रभाव से अपनी सेवाओं को नियमित करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी।
उनका दावा राज्य सरकार द्वारा जारी नियमितीकरण नीति पर आधारित था, जिसमें प्रावधान था कि 31 मार्च, 2013 तक छह साल की निरंतर अनुबंध सेवा पूरी करने वाले सभी संविदा कर्मचारी नियमितीकरण के लिए पात्र होंगे।
तर्क:
प्रतिवादी हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव और नगर एवं ग्राम नियोजन सचिव ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने बिना किसी आपत्ति के 2015 में ही अपने नियमितीकरण को स्वीकार कर लिया था। इसलिए वे अब पूर्वव्यापी लाभ नहीं मांग सकते हैं या अपने नियमितीकरण से जुड़ी शर्तों को चुनौती नहीं दे सकते हैं।
इसके बाद हिमाचल प्रदेश के नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग के निदेशक ने अलग जवाब दाखिल किया, जिसमें कहा गया कि नीति के अनुसार, संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण स्वीकृत पदों की उपलब्धता पर आधारित था। पदों के उपलब्ध होने पर ही प्रदान किया जाना था।
निदेशक द्वारा यह भी कहा गया कि जब याचिकाकर्ताओं को नियुक्त किया गया, तब कोई स्वीकृत पद अस्तित्व में नहीं था।
इसके बाद निदेशक द्वारा सचिव, नगर एवं ग्राम नियोजन, हिमाचल प्रदेश को पदों के सृजन के लिए अनुरोध किया गया।
इसलिए जब प्रमुख सचिव, नगर एवं ग्राम नियोजन ने विभिन्न विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरणों में 26 पदों के सृजन के लिए स्वीकृति प्रदान की तो याचिकाकर्ताओं की सेवाओं को 25 अगस्त 2015 से तत्काल प्रभाव से नियमित कर दिया गया।
निष्कर्ष:
न्यायालय ने टिप्पणी की कि सभी संविदा कर्मचारियों ने 31 मार्च 2013 तक छह वर्ष की निरंतर सेवा पूरी कर ली थी।
इसलिए वे राज्य सरकार की नियमितीकरण नीति के अनुसार नियमितीकरण के लिए पात्र थे। न्यायालय ने कहा कि विभिन्न विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरणों ने वर्ष 2013 से ही विभिन्न विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरणों में पदों के सृजन के लिए सचिव, नगर एवं ग्राम नियोजन को अधियाचनाएं प्रस्तुत की थीं।
हालाँकि, हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा पदों के सृजन की स्वीकृति दो वर्ष पश्चात वर्ष 2015 में दी गई। बार-बार याद दिलाने तथा आसन्न आवश्यकता के बावजूद, अधिकारियों ने पदों के सृजन में देरी की।
राम सिंह एवं अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य में, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना कि "पदों के सृजन में देरी से राज्य सरकार के नियमितीकरण मानदंडों के तहत प्रदान की गई अपेक्षित अवधि पूरी करने पर नियमितीकरण के लिए विचार किए जाने वाले दैनिक वेतनभोगी या अनुबंध कर्मचारियों के अधिकार प्रभावित नहीं हो सकते हैं।"
न्यायालय ने माना कि राज्य सरकार को पदों के सृजन में दो वर्ष लग गए, यदि पदों का सृजन उचित समय सीमा के भीतर किया गया होता तो याचिकाकर्ता वर्ष 2013 में ही नियमितीकरण के लिए पात्र हो जाते। इसलिए राज्य अधिकारियों की ओर से की गई देरी का उपयोग उन कर्मचारियों के अधिकारों को पराजित करने के लिए नहीं किया जा सकता, जिन्होंने पहले ही सेवा की अर्हक अवधि पूरी कर ली है।
न्यायालय ने रिट याचिकाओं को अनुमति दे दी और माना कि जिन संविदा कर्मचारियों ने लागू नियमितीकरण नीति के अनुसार 6 वर्ष की निर्धारित सेवा पूरी कर ली है, वे उस तिथि से नियमितीकरण के हकदार हैं, जिस दिन उन्होंने मानदंड पूरा किया था।