दिल्ली हाईकोर्ट में भारत में विदेशी लॉ फर्मों के प्रवेश की अनुमति देने की BCI की अधिसूचना को चुनौती

Shahadat

3 Feb 2024 5:09 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट में भारत में विदेशी लॉ फर्मों के प्रवेश की अनुमति देने की BCI की अधिसूचना को चुनौती

    भारत में विदेशी लॉ फर्मों और वकीलों के प्रवेश की अनुमति देने वाली बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा पिछले साल जारी अधिसूचना को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की गई।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ के समक्ष उक्त मामला सूचीबद्ध किया गया, जिसने इसे 06 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया, क्योंकि वकीलों के संगठन की ओर से उपस्थित वकील उपस्थित नहीं थे।

    यह याचिका बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (बीसीडी) में नामांकित विभिन्न वकीलों, वकील नरेंद्र शर्मा, अरविंद कुमार बाजपेयी, सिद्धार्थ श्रीवास्तव, एकता मेहता, अरविंद कुमार, संजीव सरीन, हरीश कुमार शर्मा और दीपक शर्मा द्वारा दायर की गई।

    कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को याचिका की कॉपी BCI के सचिव को देने को कहा।

    याचिका में पिछले साल 10 मार्च को BCI द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती देते हुए कहा गया कि यह ए़़डवोकेट एक्ट, 1961 और समय-समय पर संशोधित प्रावधानों के दायरे से बाहर है।

    इसमें BCI और केंद्र सरकार को अधिसूचना को लागू करने और लागू करने से रोकने के साथ-साथ किसी भी विदेशी लॉ फर्म या वकील, यदि कोई रजिस्टर्ड है, उसको भारत में कार्यालय खोलने और प्रैक्टिस करने की अनुमति देने की मांग की गई।

    याचिकाकर्ताओं का मामला है कि BCI के पास एडवोकेट एक्ट के तहत कोई अधिकार नहीं है कि वह विदेशी वकीलों या लॉ फर्मों को भारत में प्रवेश करने की अनुमति दे और एक्ट की धारा 29, 30 और 33 के अर्थ के तहत उन्हें वकील के रूप में मान्यता दे।

    याचिका में कहा गया कि विदेशी वकील और लॉ फर्म एडवोकेट एक्ट के तहत वकील के रूप में नामांकित होने के हकदार नहीं हैं, न ही उनका नाम राज्य बार काउंसिल द्वारा तैयार और बनाए गए वकीलों के रोल में शामिल किया जा सकता है।

    याचिका में कहा गया,

    “एक्ट के तहत गैर-मुकदमा संबंधी मामलों में भी विदेशी वकीलों या विदेशी लॉ फर्मों के लिए लॉ प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं है। यह प्रस्तुत किया गया कि गैर-मुकदमा संबंधी मामलों के संचालन के लिए विदेशी वकीलों या विदेशी लॉ फर्मों को प्रवेश की अनुमति देना पूरी तरह से अवैध है और एक्ट के प्रावधानों के साथ-साथ ए.के. बालाजी (सुप्रा) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी विपरीत है।“

    केस टाइटल: नरेंद्र शर्मा और अन्य बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य

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