कॉपीराइट एक्ट की धारा 33(1) के तहत कॉपीराइट सोसायटी रजिस्टर हुए बिना भी म्युजिक लाइसेंस जारी कर सकती है: बॉम्बे हाइकोर्ट

Amir Ahmad

27 Jan 2024 6:46 AM GMT

  • कॉपीराइट एक्ट की धारा 33(1) के तहत कॉपीराइट सोसायटी रजिस्टर हुए बिना भी म्युजिक लाइसेंस जारी कर सकती है: बॉम्बे हाइकोर्ट

    Bombay High Court 

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि फ़ोनोग्राफ़िक परफॉर्मेंस लिमिटेड और नोवेक्स जैसे संगीत अधिकार धारक कॉपीराइट मालिक हैं और कॉपीराइट एक्ट (Copyright Act) की धारा 33(1) के तहत कॉपीराइट सोसायटी के रूप में रजिस्टर्ड नहीं होने पर भी म्युजिक लाइसेंस जारी कर सकते हैं।

    पीपीएल और नोवेक्स दो कंपनियां हैं, जिन्होंने टिप्स, टी-सीरीज़, इरोज आदि जैसे निर्माताओं से म्युजिक असाइनमेंट हासिल किए हैं। उन्होंने ऑन-ग्राउंड प्रदर्शन अधिकारों के उद्देश्य से इन टाइटल के विशेष लाइसेंसधारी हैं।

    जस्टिस आर आई चागला ने फैसला सुनाया,

    ''एक्ट की धारा 33(1) और धारा 30 के तहत लाइसेंस द्वारा कॉपीराइट में कोई भी हित देने की मालिक की शक्ति को कम नहीं कर सकती।''

    एक्ट की धारा 33(1) के तहत कॉपीराइट सोसायटी की अवधारणा 1994 में संशोधन द्वारा पेश की गई, जिससे कॉपीराइट म्युजिक लाइसेंसिंग के सामूहिक प्रशासन को सक्षम किया जा सके, क्योंकि व्यक्तिगत रूप से अधिकार सौंपना बोझिल है। वहीं रजिस्टर्ड कॉपीराइट सोसायटी भी अधिनियम के तहत विनियमित होती है और कॉपीराइट स्वामी की तुलना में उसके दायित्व अधिक होते हैं।

    अदालत का निर्णय कंपनियों को अधिक लचीलापन देता है और एक्ट धारा 30 की प्रधानता को बरकरार रखता है, जो कॉपीराइट मालिकों को उनके कार्यों के लिए लाइसेंस देने का अधिकार देता है।

    पीठ ने बिना लाइसेंस के साउंड रिकॉर्डिंग का उपयोग करने के लिए कॉपीराइट उल्लंघन का आरोप लगाने वाले कई रेस्तरां, होटल और मॉल के खिलाफ पीपीएल और नोवेक्स की याचिका में इस प्रारंभिक मुद्दे का फैसला किया।

    इसने प्रतिवादी के तर्कों को खारिज कर दिया कि एक्ट की धारा 33(1) कॉपीराइट स्वामी सहित किसी भी व्यक्ति को कॉपीराइट सोसायटी के रूप में रजिस्टर किए बिना लाइसेंस जारी करने का व्यवसाय करने से रोकती है।

    अदालत ने कहा,

    “यदि इस तरह की व्याख्या को स्वीकार किया जाता है तो एक्ट की धारा 33(1) मालिक की शक्ति या लाइसेंस द्वारा कॉपीराइट में कोई भी हित प्रदान करने के मालिक के अधिकार को खत्म कर देगी। यह एक्ट की धारा 30 के तहत मालिक के अधिकार को कमज़ोर कर देगा।”

    अदालत ने कॉपीराइट एक्ट की धारा 30 का उल्लेख किया, जो कॉपीराइट मालिक को लाइसेंस द्वारा कॉपीराइट में कोई भी हित देने की शक्ति देता है।

    जस्टिस चागला ने कहा,

    "यह इस प्रकार है कि पीपीएल और नोवेक्स के पास मालिको के रूप में लाइसेंस द्वारा कॉपीराइट में कोई भी हित देने की शक्ति है, जिसमें साउंड रिकॉर्डिंग को जनता तक संप्रेषित करने का हित भी शामिल होगा।"

    अदालत ने एंटरटेनमेंट नेटवर्क इंडिया लिमिटेड बनाम सुपर कैसेट इंडस्ट्रीज लिमिटेड (2005) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि कॉपीराइट एक्ट के अध्याय VII को लेखकों को कॉपीराइट सोसायटी के माध्यम से बौद्धिक संपदा का व्यावसायिक रूप से शोषण करने में सक्षम बनाने के लिए शामिल किया गया।

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस चागला ने कहा,

    "कॉपीराइट सोसायटी का विचार मालिक की सहायता करना है, न कि मालिक से अधिकार छीनना।"

    अदालत ने प्रतिवादियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि एक्ट की धारा 33(1) में 'व्यवसाय' शब्द की व्यापक व्याख्या कॉपीराइट स्वामी की लाइसेंसिंग गतिविधियों को शामिल करने के लिए की जानी चाहिए।

    न्यायधीश ने कहा,

    "यदि व्यवसाय पर प्रतिवादियों की व्याख्या स्वीकार कर ली जाए तो उस स्थिति में 99% स्वामित्व अधिकार छीन लिया जाएगा। मालिकों के पास एकमात्र अधिकार परोपकार के लिए अपने अधिकारों का लाइसेंस देना होगा। इस प्रकार यह व्याख्या प्रतिवादी को स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

    अदालत ने यह भी माना कि एक्ट की धारा 33(1) धारा 30 से भिन्न क्षेत्र में काम करती है और दोनों प्रावधानों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है।

    इसमें कहा गया कि एक्ट की धारा 33(1) के तहत विचार किया गया निषेध किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के संघ द्वारा अपने नाम पर उन कार्यों के लिए लाइसेंस देने का व्यवसाय करने पर है, जिनमें 'अन्य' कॉपीराइट रखते हैं।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि कॉपीराइट के मालिको के रूप में पीपीएल और नोवेक्स के लिए अपने कार्यों के लाइसेंस देने के व्यवसाय को चलाने के लिए कॉपीराइट सोसायटी के रूप में रजिस्टर होना आवश्यक नहीं है।

    अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि कॉपीराइट सोसायटी के रूप में पीपीएल और नोवेक्स का रजिस्ट्रेशन न होने से उनके असाइनमेंट समझौते अवैध हो जाते हैं। उनकी कार्रवाई का कारण अमान्य हो जाता है।

    अदालत ने आगे कहा,

    "मेरे विचार में वर्तमान मामले में पीपीएल और नोवेक्स के पक्ष में आंशिक असाइनमेंट बनाया गया, यानी जनता को ध्वनि रिकॉर्डिंग संचारित करने के लिए इस प्रकार बनाए गए अधिकार की सीमा तक असाइनी कॉपीराइट का 'मालिक' है।”

    अदालत नोवेक्स कम्युनिकेशंस बनाम और डीएक्ससी टेक्नोलॉजी प्रा. लिमिटेड में मद्रास एचसी के दृष्टिकोण से असहमत थी, जिसने व्यक्तिगत क्षमता में लाइसेंस देने और लाइसेंसिंग का व्यवसाय करने के बीच अंतर किया।

    अदालत ने माना कि मद्रास हाइकोर्ट ने मालिक को लाइसेंस के माध्यम से कॉपीराइट में ब्याज देने का अधिकार देने वाली एक्ट की धारा 30 की प्रधानता को नजरअंदाज किया।

    तदनुसार, अदालत ने माना कि सीमित उद्देश्य के लिए नोवेक्स और पीपीएल जैसे समनुदेशिती कॉपीराइट एक्ट की धारा 18 और 30 के तहत कॉपीराइट के मालिक बन जाते हैं।

    केस टाइटल - नोवेक्स कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम ट्रेड विंग्स होटल्स लिमिटेड

    केस नंबर - कमर्शियल आईपी सूट नंबर। 2022 का 264

    अपीयरेंस

    नोवेक्स के लिए वकील- डेरियस खंबाटा और रश्मीन खांडेकर।

    पीपीएल के लिए वकील- रवि कदम, वकील अमोघ सिंह और डीपी सिंह

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