क्रॉस एग्जामिनेशन का अवसर दिए बिना आदेश पारित करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन: उड़ीसा हाइकोर्ट

Amir Ahmad

6 March 2024 8:47 AM GMT

  • क्रॉस एग्जामिनेशन का अवसर दिए बिना आदेश पारित करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन: उड़ीसा हाइकोर्ट

    उड़ीसा हाइकोर्ट ने माना कि आदेश पारित करने से पहले गवाहों से क्रॉस एग्जामिनेशन के अवसर से इनकार करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    रेलवे ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ताओं को राहत देते हुए जस्टिस डॉ. संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा,

    “न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। किसी प्रशासनिक अर्ध न्यायिक या न्यायिक प्राधिकारी द्वारा आदेश देने से पहले सुनवाई का उचित अवसर देने की आवश्यकता सामान्य बात है, खासकर जब ऐसे आदेश के प्रतिकूल नागरिक परिणाम हों।''

    मामले की पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ताओं ने रेलवे दावा न्यायाधिकरण भुवनेश्वर के समक्ष मामला दायर किया और 10,00,000/- रुपये की मुआवजा राशि देने की प्रार्थना की। रेल दुर्घटना के याचिकाकर्ताओं की शिकायत पर विचार करते हुए ट्रिब्यूनल ने प्रतिवादी को नोटिस जारी किया और मामले को सुनवाई के लिए तय किया गया।

    मामला 17- 08- 2023 को प्रतिवादी के गवाहों की जांच और क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए पोस्ट किया गया। हालांकि, बीमारी के कारण याचिकाकर्ताओं के वकील ने वर्चुअल सुनवाई पर ट्रिब्यूनल से स्थगन की मांग की।

    बाद में याचिकाकर्ताओं के वकील को मामले के रिकॉर्ड से पता चला कि प्रतिवादी के दो गवाहों से 17-08-2023 को ट्रिब्यूनल द्वारा पहले ही पूछताछ की जा चुकी है और मामले में बहस के लिए 27-09-2023 की तारीख तय की गई।

    याचिकाकर्ताओं ने क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए गवाहों को वापस बुलाने के लिए आवेदन दायर किया, लेकिन ट्रिब्यूनल ने आवेदन खारिज कर दिया। इस तरह की अस्वीकृति से दुखी होकर याचिकाकर्ताओं ने यह रिट याचिका दायर करते हुए हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि दावे को साबित करने के लिए प्रतिवादी के दो गवाह याचिकाकर्ताओं के मामले में आवश्यक, महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है। यह तर्क दिया गया कि एग्जामिनेशन की तारीख पर याचिकाकर्ता के वकील की अनुपस्थिति प्रामाणिक है और किसी भी दुर्भावनापूर्ण इरादे से रहित है।

    इस प्रकार यह प्रार्थना की गई कि दोनों गवाहों को क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए वापस बुलाया जाना चाहिए, अन्यथा याचिकाकर्ताओं को अपूरणीय क्षति, चोट और पूर्वाग्रह होगा।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    न्यायालय ने माना कि क्रॉस एग्जामिनेशन से इनकार करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। इसमें आगे कहा गया कि किसी प्रशासनिक, अर्ध-न्यायिक या न्यायिक प्राधिकरण द्वारा आदेश देने से पहले सुनवाई का उचित अवसर सुनिश्चित किया जाना चाहिए, खासकर जब ऐसे आदेश में प्रतिकूल नागरिक परिणाम हों।

    जस्टिस पाणिग्रही ने मेनका गांधी बनाम भारत संघ महाराष्ट्र राज्य वित्तीय निगम बनाम सुवर्णा बोर्ड मिल्स और ईस्ट इंडिया कमर्शियल कंपनी लिमिटेड, कलकत्ता बनाम सीमा शुल्क कलेक्टर, कलकत्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि क्रॉस एग्जामिनेशन का अवसर देना प्राकृतिक न्याय के नियमों का हिस्सा है।

    इसलिए बेंच ने कहा कि क्रॉस एग्जामिनेशन की अनुमति के बिना ट्रिब्यूनल द्वारा पारित दिनांक 27.09.2023 का आदेश प्राकृतिक न्याय का घोर उल्लंघन है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने आदेश दिया,

    “यह निर्देशित किया जाता है कि रेलवे ट्रिब्यूनल याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा क्रॉस एग्जामिनेशन के लिए संबंधित गवाह को वापस बुलाएगा। उक्त रिकॉल प्रक्रिया इस आदेश की प्रस्तुति की तारीख से एक महीने के भीतर पूरी हो जाएगी।”

    केस टाइटल- देबराज साहू और अन्य बनाम भारत संघ

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