व्यक्तियों की गरिमा और निजता की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे? बॉम्बे हाइकोर्ट ने राज्य से पूछा
Amir Ahmad
2 Feb 2024 4:06 PM IST
संगीत शिक्षक को अवैध रूप से हिरासत में लिए जाने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया कि प्रथम दृष्टया राज्य द्वारा प्रस्तुत कोई भी सर्कुलर ऐसी स्थिति से के बारे में कुछ नहीं कहता, जहां पुलिस लॉक-अप में हिरासत में लिए गए व्यक्ति से उसके कपड़े छीन लिए गए हो।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने अभियोजक को यह बताने के लिए समय दिया कि ऐसे व्यक्ति की निजता और गरिमा की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।
अदालत ने कहा,
"हमने सर्कुलर और प्रावधानों का अध्ययन किया और प्रथम दृष्टया महसूस होता है कि इनमें से कोई भी प्रावधान हमारे द्वारा उठाए गए मुद्दे से संबंधित नहीं है, यानी गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस लॉक-अप में हिरासत में लेने के दौरान उसके कपड़े उतारना।"
29 सितंबर को हाइकोर्ट ने हेबियस कॉर्पस याचिका का निपटारा किया, जिसमें म्यूजिक टीचर को पुलिस ने जमानती अपराध में हिरासत में लिया गया था। याचिका टीचर की पत्नी ने दायर की।
याचिकाकर्ता के पति को मुआवजा देने और याचिकाकर्ता के पति की अवैध हिरासत के लिए जिम्मेदार पाए गए व्यक्तियों के वेतन से पूरी जांच के बाद उक्त मुआवजा वसूलने के कुछ निर्देशों के साथ याचिका का निपटारा किया गया।
अदालत ने कहा कि उस व्यक्ति को यौन उत्पीड़न के जमानती अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया था, इस तथ्य के बावजूद कि वह जमानत देने के लिए तैयार था।
पिछली तारीख पर एपीपी ने प्रस्तुत किया कि कार्यालय अदालत के आदेश के अनुसार सर्कुलर जारी करेगा।
23 जनवरी को जब मामला अनुपालन के लिए उठाया गया तो एपीपी ने डिरेक्टर जनरल कार्यालय द्वारा 18 जनवरी, 2024 को जारी सर्कुलर की कॉपी प्रस्तुत की गई। उक्त कॉपी में जमानती अपराधों में गिरफ्तार व्यक्तियों की रिहाई के संबंध में बताया गया था, जब वे जमानत देने के लिए तैयार हों।
खंडपीठ ने कहा कि उसने एपीपी से कहा कि याचिकाकर्ता को लॉक-अप में कपड़े उतारे जाने के संबंध में पुलिस क्या कदम उठाएगी, उसे रिकॉर्ड पर रखें।
एपीपी ने डिरेक्टर जनरल कार्यालय द्वारा समय-समय पर जारी किए गए कुछ सर्कुलर प्रस्तुत किएष। विशेष रूप से 26 अक्टूबर, 2007 और 22 जनवरी, 2004 को जारी सर्कुलर पेश किए गए।
अदालत ने आगे कहा,
“जहां तक 26 अक्टूबर, 2007 के सर्कुलर का सवाल है, यह लॉक-अप रजिस्टर के रखरखाव से संबंधित है। ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त सर्कुलर 2007 की रिट याचिका नंबर 704 (सज्जाद निज़ाम सिद्दीकी बनाम महाराष्ट्र राज्य) में इस न्यायालय द्वारा देखी गई बातों के अनुसार जारी किया गया।”
2004 के अन्य सर्कुलर पर गौर करते हुए अदालत ने कहा कि यह भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा व्यक्त की गई अस्वीकृति के बाद हिरासत में होने वाली मौतों के परिणामस्वरूप जारी किया गया।
अदालत ने कहा,
“तदनुसार, हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के संबंध में कुछ दिशानिर्देश उक्त सर्कुलर में निर्धारित किए गए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुलिस हिरासत में कोई मौत न हो। उक्त सर्कुलर में कई निर्देश जारी किए गए, जिसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की तलाशी कैसे की जानी है। उसकी मेडिकल जांच आदि शामिल है।''
खंडपीठ ने पाया कि सर्कुलर में निर्देश यह है कि गिरफ्तार व्यक्ति के साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए।
एपीपी ने पुलिस लॉक-अप में कैदियों के साथ व्यवहार के संबंध में पुलिस मैनुअल के प्रावधानों और पुलिस अधिनियम के प्रावधानों 197 और 204 का भी हवाला दिया।
तदनुसार अदालत ने एपीपी को आगे के निर्देश लेने में सक्षम बनाने के लिए मामले को 20 फरवरी, 2024 तक के लिए स्थगित किया गया।
केस नंबर - रिट याचिका नंबर. 2023 का 2436