अभियुक्तों की पहचान किए बिना मुकदमा जारी रखने की अनुमति देना पीड़िता को शर्मिंदा और अपमानित करेगा: मद्रास हाइकोर्ट

Amir Ahmad

1 Feb 2024 1:30 PM IST

  • अभियुक्तों की पहचान किए बिना मुकदमा जारी रखने की अनुमति देना पीड़िता को शर्मिंदा और अपमानित करेगा: मद्रास हाइकोर्ट

    मद्रास हाइकोर्ट ने हाल ही में तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम (Tamil Nadu Prohibition of Harassment of Women Act) की धारा 4 के तहत यौन उत्पीड़न का मामला रद्द किया। अदालत ने कहा कि आरोपी व्यक्ति की पहचान 3 साल तक नहीं की गई, इसलिए कार्यवाही जारी रखना नारीत्व का मजाक होगा और महिला को और अधिक शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी, जिसे मानसिक पीड़ा होगी।

    जस्टिस आनंद वेंकटेश ने इस बात पर भी अफसोस जताया कि कई यौन शोषण के मामलों में बहुत से लोग अदालत में आकर दुर्व्यवहार के खिलाफ लड़ने को तैयार नहीं हैं और अगर कुछ लड़ने के लिए आगे आए भी तो व्यवस्था बहुत अनुकूल नहीं है।

    अदालत ने कहा कि कई मामलों में पीड़िता को यौन शोषण और अदालत में शर्मिंदगी झेलकर दोहरी मार झेलनी पड़ी। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि यह पीड़िता के लिए बड़ी सजा है।

    अदालत ने कहा,

    “यहां तक ​​कि जो लोग लड़ना चाहते हैं और अपना अधिकार स्थापित करना चाहते हैं, उनके लिए भी सिस्टम अनुकूल नहीं लगता। दूसरी ओर ऐसे पीड़ित को अदालत में शर्मनाक क्षणों से गुजरना होगा। शिकायत देने के कारण पीड़िता को यौन शोषण और अदालत में शर्मिंदगी झेलने के मामले में दोहरी मार झेलनी पड़ती है, जो पीड़िता को दंडित करने के समान है और जिस आरोपी की पहचान भी नहीं की गई, वह बच जाएगा। यह अदालत वर्तमान मामले में इस तरह के उपहास को जारी रखने की अनुमति देने के लिए इच्छुक नहीं है।”

    अदालत महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट, एग्मोर द्वारा उसे जारी किए गए गवाह समन को चुनौती दी गई।

    महिला ने कहा कि 20 नवंबर, 2020 को जब वह सुबह की सैर पर थी तो स्कूटर सवार व्यक्ति ने उसकी छाती को छुआ और तुरंत वहां से फरार हो गया। उसने सामने वाले घर में लगे कैमरे से खींची गई तस्वीरों के साथ पुलिस इंस्पेक्टर को शिकायत दी। इस शिकायत के आधार पर तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 2002 की धारा 4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

    महिला ने आगे कहा कि 11 अगस्त, 2023 को उसे निचली अदालत में बुलाया गया, लेकिन सुबह 10 बजे से शाम 4:30 बजे तक इंतजार करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ और उसे अनावश्यक रूप से घटना को याद करने के लिए मजबूर किया गया। यह कहते हुए कि वह दोबारा इस दर्दनाक प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहती, महिला ने गवाह समन को चुनौती दी।

    अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्रियों के आधार पर आरोपी की पहचान नहीं की जा सकी, क्योंकि उस वाहन के संबंध में कोई स्पष्टता नहीं है, जिसमें उसने उस समय यात्रा की थी। अदालत ने यह भी कहा कि हालांकि दो चश्मदीद गवाह थे, वे केवल घटना के बारे में कबूल कर सकते और व्यक्ति की पहचान नहीं कर सके। इस तरह अभियोजन पक्ष की मदद नहीं कर सके।

    इस प्रकार अदालत की राय थी कि आरोपी की पहचान किए बिना भी यौन शोषण से जुड़ी घटना को लेकर आपराधिक मुकदमा चलाने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि मुकदमा चलता रहा तो इससे पीड़ित को शर्मिंदगी होगी और बदनाम किया जाएगा, जबकि तथाकथित आरोपी व्यक्ति बच जाएगा। अदालत की राय में यह "नारीत्व का उपहास" होगा।

    इस प्रकार अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए अदालत कार्यवाही रद्द करने के लिए इच्छुक थी।

    याचिकाकर्ता के वकील- जी.आर.हरि

    प्रतिवादियों के वकील- ए दामोदरन

    साइटेशन- लाइवलॉ (मैड) 51 2024

    केस टाइटल- XXXX बनाम राज्य

    केस नंबर- 2024 का W.P नंबर 1727

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