Payment Of Wages Act| ठेकेदार के भुगतान करने में विफल रहने पर नियोक्ता वेतन भुगतान के लिए जिम्मेदार: जम्मू एंड कश्मीर हाइकोर्ट
Amir Ahmad
12 Feb 2024 2:30 PM IST
वेतन भुगतान अधिनियम 1936 (Payment Of Wages Act 1936) के तहत वेतन भुगतान के लिए नियोक्ता की प्राथमिक जिम्मेदारी की पुष्टि करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि अधिनियम के तहत ठेकेदार या नियोक्ता द्वारा नामित व्यक्ति ऐसा भुगतान करने में विफल रहता है तो आवश्यक सभी मजदूरी का भुगतान करना नियोक्ता की जिम्मेदारी होगी।
लेबर कोर्ट के आदेशों को चुनौती देने वाली और सरकारी विभागों को श्रमिकों को सीधे मजदूरी का भुगतान करने का निर्देश देने वाली दो रिट याचिकाओं को खारिज करते हुए भले ही भुगतान शुरू में एक ठेकेदार के माध्यम से किया गया।
जस्टिस विनोद चटर्जी कूल ने कहा,
"नियोक्ता, जैसा कि अधिनियम की धारा 3 के तहत कारखानों, औद्योगिक या अन्य में नियोजित व्यक्तियों के मामले में प्रतिष्ठान ठेकेदार के मामले में ऐसे ठेकेदार द्वारा नामित व्यक्ति है, जो सीधे उसके प्रभार के अधीन है और किसी अन्य मामले में नियोक्ता द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन के लिए जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में नामित व्यक्ति प्रदान किया गया। उसके द्वारा नियोजित व्यक्तियों को अधिनियम के तहत भुगतान की जाने वाली सभी आवश्यक मजदूरी के भुगतान के लिए जिम्मेदार होगा।”
यह मामला वेतन भुगतान अधिनियम के तहत लेबर कोर्ट द्वारा 22 जुलाई, 2013 को जारी किए गए अवार्डों और उसके बाद प्रधान जिला न्यायाधीश बांदीपोरा द्वारा दो अपीलों में दिए गए फैसलों से सामने आया।
याचिकाकर्ता विभाग ने अवार्डों और निचली अदालत के फैसले की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि विचाराधीन कार्य का ठेका किसी तीसरे पक्ष को दिया गया, जिससे वे वेतन भुगतान की सीधी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए।
जस्टिस कौल ने वेतन भुगतान अधिनियम के प्रावधानों का विश्लेषण किया और वेतन भुगतान के लिए नियोक्ता की प्राथमिक जिम्मेदारी पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह जिम्मेदारी ठेकेदारों से जुड़ी स्थितियों तक भी फैली हुई है, जैसा कि अधिनियम की धारा 3(2) में कहा गया।
उन्होंने कहा,
"यदि ठेकेदार या नियोक्ता द्वारा नामित व्यक्ति ऐसा भुगतान करने में विफल रहता है तो अधिनियम के तहत आवश्यक सभी मजदूरी का भुगतान करना नियोक्ता की जिम्मेदारी होगी।"
प्रधान जिला न्यायाधीश बांदीपोरा जस्टिस कौल द्वारा अवार्डों के खिलाफ अपीलों को खारिज करने पर टिप्पणी करते हुए अधिनियम की धारा 17(1ए) की अनिवार्य प्रकृति पर प्रकाश डाला गया, जिसके तहत अपील दर्ज करते समय संबंधित प्राधिकारी के पास विवादित राशि जमा करना आवश्यक हो जाता है।
कोर्ट ने कहा,
“यदि याचिकाकर्ता अधिनियम के तहत प्राधिकरण के आदेशों से व्यथित महसूस करता है तो उसे अधिनियम के तहत अपील करते समय प्राधिकरण से उस आशय का प्रमाण पत्र संलग्न करने की अनिवार्य शर्त को पूरा करना आवश्यक है, जो उसने प्राधिकरण के आदेशों के तहत देय राशि जमा की थी। हालांकि उसने ऐसा नहीं किया और इसलिए अपीलीय अदालत ने यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ने इस अनिवार्य शर्त को पूरा नहीं किया, याचिकाकर्ता की अपील को सही ढंग से खारिज कर दिया।"
उदाहरण का हवाला देते हुए, जिसमें वेतन भुगतान अधिनियम 2007 के तहत कार्यकारी अभियंता बनाम प्राधिकरण का मामला भी शामिल है, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि इस आवश्यकता का अनुपालन न करने से अपीलें अप्रभावी और अधूरी हो जाती हैं।
उक्त टिप्पणियों के आलोक में अदालत ने रिट याचिकाओं को खारिज किया और विभाग को श्रमिकों को सीधे भुगतान करने का निर्देश देने वाले आदेशों को बरकरार रखा।
केस टाइटल- कार्यकारी अभियंता सड़क और भवन, बांदीपोरा बनाम नजीर अहमद तेली
साइटेशन- लाइव लॉ (जेकेएल) 17 2024