तलाक के मामले में पत्नी के खिलाफ क्रूरता का निष्कर्ष DV Act के तहत भरण-पोषण से इनकार करने का कोई आधार नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट

Amir Ahmad

20 Jan 2024 10:18 AM GMT

  • तलाक के मामले में पत्नी के खिलाफ क्रूरता का निष्कर्ष DV Act के तहत भरण-पोषण से इनकार करने का कोई आधार नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट

    दिल्ली हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि तलाक की कार्यवाही में पत्नी के खिलाफ क्रूरता का निष्कर्ष घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (Domestic violence Act 2005 (DV Act)) के तहत उसके भरण-पोषण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता।

    जस्टिस अमित बंसल ने यह भी कहा कि DV Act की धारा 29 के तहत अपील में सेशन कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका हाइकोर्ट में दायर की जाएगी।

    एक्ट की धारा 29 में कहा गया,

    "जिस तारीख को मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया आदेश पीड़ित व्यक्ति या प्रतिवादी, जैसा भी मामला हो, को दिया जाता है, जो भी बाद में हो, उस तारीख से तीस दिनों के भीतर सेशन कोर्ट में अपील की जा सकती है।"

    अदालत ने निचली अदालत आदेश का रद्द करने के सेशन जज के आदेश के खिलाफ पत्नी की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें पति को भरण-पोषण के लिए प्रति माह एक लाख रुपये और मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    गौरतलब है कि दोनों ने 1991 में शादी कर ली और उसी वर्ष विवाह से बच्चे का जन्म हुआ। वर्ष 2009 में पत्नी ने पति के खिलाफ DV Act के तहत शिकायत दर्ज कराई।

    उन्हें मध्यस्थता के लिए भेजा गया और उनके बीच समझौता समझौता किया गया। लेकिन वहीं पत्नी ने आरोप लगाया कि पति समझौते की शर्तों का पालन करने में विफल रहा है।

    मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को, जिसमें कहा गया कि पति के कहने पर पत्नी को 'घरेलू हिंसा' का सामना करना पड़ा, इसके अतिरिक्त उन्होंने सेशन कोर्ट में चुनौती दी।

    आक्षेपित आदेश के तहत सेशन कोर्ट ने मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए ट्रायल कोर्ट में वापस भेज दिया और उसे दिए जाने वाले कोई अंतरिम गुजारा भत्ता तय नहीं किया।

    जस्टिस बंसल ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि पत्नी द्वारा दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य है। अदालत दिनेश कुमार यादव बनाम यूपी राज्य 2016 मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से सहमत थी, जिसमें यह माना गया कि DV Act की धारा 29 के तहत सेशन कोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ हाइकोर्ट में पुनर्विचार के लिए सुनवाई योग्य है।

    इसके अलावा, अदालत ने कहा कि सेशन कोर्ट द्वारा मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजना जरूरी नहीं है। यह आदेश पूरी तरह से आंतिरक था और रिमांड को उचित ठहराने के लिए कोई कारण नहीं बताया गया।

    अदालत ने कहा,

    “मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजते समय भी अपीलीय अदालत ने अंतरिम भरण-पोषण के लिए राशि तय करना उचित नहीं समझा। DV Act का इरादा पीड़ित पत्नी को तत्काल सहायता प्रदान करना है, खासकर जब भरण-पोषण के लिए नागरिक उपचार में भारी देरी होती है।”

    तदनुसार, जस्टिस बंसल ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को 16 दिसंबर, 2009 से जब शिकायत दर्ज की गई, 01 नवंबर, 2019 तक जब सेशन कोर्ट ने फैसला सुनाया, अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 50,000 रुपये की मासिक राशि का भुगतान करे।

    अदालत ने कहा,

    "इस अदालत के आदेश के अनुसार पति द्वारा पत्नी को पहले ही भुगतान की गई 10,00,000 रुपये की राशि उपरोक्त राशि से काट ली जाएगी।"

    इसमें कहा गया कि अपील का फैसला रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के आधार पर किया जाएगा और पक्षकारों 2019-20 के बाद परिस्थितियों में किसी भी बदलाव के मद्देनजर अतिरिक्त सबूत पेश करने के लिए स्वतंत्र होंगी।

    याचिकाकर्ता के वकील- शिरीन खजूरिया, सुब्रत देब, रंजीत मिश्रा पोलोमी बारिक और नयन गुप्ता।

    प्रतिवादियों के लिए वकील- दीपिका वी. मारवाहा, रौनिका जौहर और फैज़ खान।

    केस टाइटल- ए बनाम बी

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