अडल्ट्रस पार्टनर अक्षम माता-पिता के बराबर नहीं,एक्स्ट्रामेरिटल अफ़ेयर बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का एकमात्र कारण नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट

Amir Ahmad

3 Feb 2024 8:48 AM GMT

  • अडल्ट्रस पार्टनर अक्षम माता-पिता के बराबर नहीं,एक्स्ट्रामेरिटल अफ़ेयर बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का एकमात्र कारण नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट

    यह देखते हुए कि एक "अडल्ट्रस पार्टनर" एक अक्षम माता-पिता के बराबर नहीं है। दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा है कि तलाक की कार्यवाही और हिरासत के मामलों में विचार के बिंदु सह-संबंधित हो सकते हैं लेकिन वे हमेशा "परस्पर अनन्य" होते हैं।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि किसी भी पति या पत्नी का अडल्ट्री या एक्स्ट्रामेरिटल अफ़ेयर किसी बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का एकमात्र निर्धारण कारक नहीं हो सकता है जब तक कि यह साबित न हो जाए कि ऐसा संबंध नाबालिग के कल्याण के लिए हानिकारक है।

    अदालत ने यह टिप्पणी उस फैसले के खिलाफ पति और पत्नी द्वारा की गई क्रॉस अपील पर सुनवाई करते हुए की, जिसके तहत उन दोनों को साझा पालन-पोषण के साथ दो नाबालिग बेटियों की संयुक्त हिरासत प्रदान की गई थी।

    बाद में बच्चों की कस्टडी माँ के पास ही रही हालाँकि समय-समय पर अदालत द्वारा मुलाक़ात का अधिकार पिता को दिया गया।

    पति ने आरोप लगाया कि पत्नी के अडल्ट्री ने उसे बच्चों की देखरेख का अधिकार नहीं दिया। दूसरी ओर पत्नी ने तर्क दिया कि जब बेटियों को पिता ने छोड़ दिया था तब उसने उनकी देखभाल की थी और वह उनकी सभी जरूरतों का अच्छे से ख्याल रख रही थी।

    अदालत ने कहा कि हालांकि पूरे सबूतों का अत्यधिक जोर पत्नी के एक्स्ट्रामेरिटल अफ़ेयर को साबित करने पर था, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं था जो यह दर्शाता हो कि वह किसी भी तरह से बच्चों की जरूरतों का ख्याल रखने में विफल रही।

    अदालत ने कहा,

    “पत्नी अपीलकर्ता/पति के लिए वफादार या अच्छी पत्नी नहीं रही होगी, लेकिन यह अपने आप में यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वह नाबालिग बच्चों की देखभाल के लिए अयोग्य है, खासकर जब कोई सबूत नहीं लाया गया हो यह साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कि उसने किसी भी तरह से बच्चों की देखभाल करने में उपेक्षा की है या उसके आचरण के कारण बच्चों पर किसी भी तरह का बुरा प्रभाव पड़ा है।”

    इसमें कहा गया है कि पिता नाबालिग बेटियों की देखभाल करने में समान रूप से सक्षम हो सकता है, लेकिन यह अपने आप में उन बच्चों की हिरासत में गड़बड़ी का आधार नहीं हो सकता है जो 2020 के जनवरी-फरवरी से मां की हिरासत में थे।

    साझा-पालन-पोषण योजना तैयार करने के फैमिली कोर्ट के दृष्टिकोण को बरकरार रखते हुए अदालत ने कहा कि उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं और उनके दैनिक जीवन में स्थिरता के तत्व को ध्यान में रखते हुए ऐसी योजना को संशोधित किया जाना चाहिए।

    तदनुसार, पीठ ने आदेश दिया कि बच्चों की स्थायी हिरासत मां के पास रहेगी, लेकिन पिता के पास सुबह माह के प्रत्येक दूसरे रविवार को सुबह 9.00 बजे से रात्रि 08:00 बजे तक की कस्टडी का अधिकार होगा।

    अदालत ने कहा,

    "विशेष अवसरों, जैसे जन्मदिन या किसी बीच के त्यौहार के अवसर पर, पिता को दिन के दौरान कम से कम तीन घंटे बच्चों से मिलने का अधिकार होगा जिसे पार्टियों द्वारा पारस्परिक रूप से तय किया जा सकता है।"

    इसमें कहा गया कि बच्चों की शिक्षा और भविष्य के संबंध में सभी निर्णय दोनों पक्ष मिलकर लेंगे।

    अपीलकर्ता (पति) के वकील- रश्मी मल्होत्रा ​​और शैलिंदर सैनी।

    प्रतिवादी (पत्नी) के वकील- एस.डी. सिंह एवं श्वेता सिन्हा।

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