कर्नाटक हाईकोर्ट ने प्रतिबंध के बावजूद जारी मैला ढोने की प्रथा पर स्वत: संज्ञान लिया, जातिगत भेदभाव का मुद्दा उठाया

Shahadat

3 Jan 2024 3:03 PM IST

  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने प्रतिबंध के बावजूद जारी मैला ढोने की प्रथा पर स्वत: संज्ञान लिया, जातिगत भेदभाव का मुद्दा उठाया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कानूनी प्रतिबंध के बावजूद राज्य में मैला ढोने की प्रथा (Manual Scavenging) जारी रहने पर बुधवार को स्वत: संज्ञान लिया।

    चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने इस प्रथा में निहित जातिगत भेदभाव के मुद्दे को भी उठाया।

    खंडपीठ ने कहा,

    “60 साल से भी अधिक समय हो गया, एक व्यक्ति जो समाज में हमारा भाई है, केवल इसलिए… या तो उसका दुर्भाग्य है कि उसने विशेष समुदाय में जन्म लिया, जाति का ठप्पा लेकर, उसे यह काम करना पड़ता है… क्या यह शर्म की बात नहीं है। मानवता पर कलंक है। क्या हम सब इसी के लिए यहां हैं... सिर्फ इसलिए कि कोई वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहा है, क्या उसे जानवरों जैसा बुरा जीवन जीना चाहिए?

    खंडपीठ ने कहा कि यह शर्मनाक है कि राज्य भर में सेप्टिक टैंक साफ करने के लिए इंसानों को बुलाया जाता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह समाचार निश्चित रूप से किसी की अंतरात्मा को झकझोर देता है। 25 दिसंबर, 2023 को द न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार में यह खबर छपी थी, जिसका टाइटल था, "प्रतिबंध के बावजूद, हाथ से मैला ढोने की प्रथा जारी।"

    अदालत ने वकील श्रीधर प्रभु से मामले में एमिक्स क्यूरी के रूप में पेश होने का अनुरोध किया। उन्हें रजिस्ट्री में जनहित याचिका दायर करने का निर्देश दिया। रजिस्ट्री को मामले को सोमवार को सुनवाई के लिए पोस्ट करने के लिए कहा गया।

    चीफ जस्टिस वराले ने कहा कि प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ मैला ढोने की प्रथा की अब आवश्यकता नहीं रह गई।

    हालांकि, उन्होंने टिप्पणी की,

    "हमारी समस्या मशीनरी की उपलब्धता नहीं है, हमारी समस्या हमारी मानसिकता है।"

    उन्होंने शायर साहिर लुधियानवी का शेर उद्धृत करते हुए कहा,

    "मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इंसानों की कीमत कुछ भी नहीं, इंसानों की इज्जत जब झूठे सिक्कों में न तौली जाएगी...वो सुबह कभी तो आएगी..."

    उन्होंने कहा कि देश को चांद पर पहुंचने पर गर्व है, लेकिन साथ ही, "हम अपने भाइयों के साथ इंसानों जैसा व्यवहार नहीं कर रहे हैं, सारा विकास (बर्बाद) होगा..."

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