मध्यस्थता के आदेशों की जालसाजी करना 'गंभीर अपराध': दिल्ली हाइकोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

Shahadat

13 Jan 2024 2:00 PM GMT

  • मध्यस्थता के आदेशों की जालसाजी करना गंभीर अपराध: दिल्ली हाइकोर्ट ने अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

    दिल्ली हाइकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के समक्ष मध्यस्थता कार्यवाही में कथित रूप से पारित एक जाली और मनगढ़ंत आदेश पेश करने के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस नवीन चावला ने कहा कि किसी आदेश को फर्जी बनाना, जो मध्यस्थ का हो सकता है, गंभीर अपराध है।

    अदालत ने विपुल जैन नाम के व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसने आरोप से इनकार किया और कहा कि कथित आदेश किसने बनाया, इसकी जांच और पता लगाने की जरूरत है।

    पिछले साल धारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की 420, 467, 468, 471, 506 और के तहत अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की गई।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि लोन की किश्त न चुका पाने के बाद जिस फाइनेंस कंपनी से उसने कार खरीदने के लिए लोन लिया, वहां से जैन समेत तीन अज्ञात व्यक्ति महिला और पुरुष पुलिस अधिकारी के साथ आए और असफल होने पर उसके साथ झगड़ा करने लगे और कार की चाबियां छीनने लगे।

    बाद में पता चला कि जो लोग आए थे, उन्होंने मनगढ़ंत और जाली कागज तैयार किया, जो खुद को मध्यस्थता कार्यवाही में मध्यस्थ द्वारा पारित आदेश के रूप में पेश करता है, जो उन्हें कार पर कब्ज़ा करने के लिए अधिकृत करता है।

    अदालत ने कहा,

    बाद में उक्त दस्तावेज़ जाली और मनगढ़ंत पाया गया। मामले में अग्रिम जमानत की मांग करने वाली जैन की याचिका खारिज की गई। इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं हो सकता है कि शिकायतकर्ता स्वयं वित्त कंपनी के साथ ऋण समझौते के अनुसार किस्तों का भुगतान न करने का दोषी हो सकता है। लेकिन वाहन की वसूली केवल कानून के अनुसार ही की जा सकती है किसी कथित मध्यस्थ का आदेश बनाना एक गंभीर अपराध है।"

    जैसा कि अदालत को सूचित किया गया कि सह-अभियुक्त, जो जैन के साथ रहा उसको को भी हिरासत में ले लिया गया और बाद में नियमित जमानत पर रिहा कर दिया गया।

    जस्टिस चावला ने कहा कि केवल इसलिए कि दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई अग्रिम जमानत देने का कारण नहीं हो सकता।

    अदालत ने आगे कहा,

    ''जहां तक ​​आवेदक के कृत्यों के कारण कोई नुकसान नहीं होने का सवाल है, यह भी मुकदमे का मामला है। इस स्तर पर इस पर विचार नहीं किया जा सकता।''

    याचिकाकर्ता के वकील- वरुण सिंह,अक्षय देव, यथार्थ कुमार,अभिजीत क्र.पांडे, रोहन चन्द्रा, स्मृति वाधवा और पंकज कुमार माडी।

    प्रतिवादियों के वकील- अमन उस्मान

    केस टाइटल- विपुल जैन बनाम स्टेट थ्रू गवर्नमेंट ऑफ (एनसीटी) ऑफ दिल्ली और अन्य।

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