दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों कहा- बेईमान लोग अपराध करने के लिए जजों के नाम का इस्तेमाल कर न्यायिक प्रणाली को बदनाम करते हैं

Shahadat

25 Dec 2023 10:35 AM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने क्यों कहा- बेईमान लोग अपराध करने के लिए जजों के नाम का इस्तेमाल कर न्यायिक प्रणाली को बदनाम करते हैं

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आम जनता को ब्लैकमेल करने या अपराध करने के लिए बेईमान व्यक्तियों द्वारा किसी जज या न्यायिक अधिकारी के नाम का इस्तेमाल न्यायिक प्रणाली को बदनाम करने के लिए करता है, जिसे किसी भी कीमत पर अनुमति नहीं दी जा सकती।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि आम जनता को ऐसे व्यक्तियों पर विश्वास नहीं करना चाहिए और उन्हें पैसे नहीं देना चाहिए, भले ही उन्हें आश्वासन दिया जाए कि उन्हें कुछ भुगतान के माध्यम से न्यायिक प्रणाली के भीतर से कुछ काम मिल जाएगा।

    अदालत ने कहा,

    “ऐसे व्यक्ति और ऐसे कृत्य न्यायिक प्रणाली के लिए खतरा हैं, जो न्यायिक प्रणाली में समुदाय के विश्वास को हिला देते हैं। न्याय वितरण प्रणाली को ऐसे कृत्यों और व्यक्तियों से दृढ़तापूर्वक सुरक्षित रखना होगा।”

    जस्टिस शर्मा ने POCSO मामले में एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं। उस पर पीड़िता और उसकी मां को प्रलोभन देने और आश्वासन देने का आरोप है कि वह उन्हें जिला अदालत में लंबित अन्य मामले के लिए मुआवजा दिलाएगा। यह कहकर उसने हाईकोर्ट जज के नाम का दुरुपयोग किया कि वह मुंशी के रूप में काम कर रहा है।

    यह आरोप लगाया गया कि उसने पीड़िता के नग्न वीडियो यह दावा करके हासिल किए कि इसे जज को दिखाया जाएगा और बाद में पैसे के लिए उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया।

    शख्स को जमानत देने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा कि एफएसएल रिपोर्ट से पता चला है कि उसके मोबाइल फोन से अश्लील तस्वीरें और वीडियो फाइलें बरामद की गईं।

    अदालत ने कहा,

    "इस प्रकार, उन्नत तकनीक का धन्यवाद, कि जांच से पीड़ित के बयान की प्रथम दृष्टया सच्चाई सामने आ गई।"

    इसके अलावा, इसमें कहा गया कि अगर मामला दर्ज नहीं किया गया होता या पुलिस जांच और एफएसएल रिपोर्ट के माध्यम से सच्चाई सामने नहीं लाई जाती तो आरोपी यह धारणा देने में सफल हो जाते कि न्यायिक प्रणाली इस तरह के घृणित कृत्यों में लिप्त है।

    अदालत ने कहा,

    “मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों, अभियुक्तों के आचरण और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अभी तक आरोप तय नहीं किए गए और पीड़ित की जांच की जानी बाकी है, इस स्तर पर जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता है। तदनुसार, वर्तमान जमानत याचिका खारिज की जाती है।”

    केस टाइटल: हरीश चंदर @ सूरज भट्ट बनाम स्टेट एनसीटी ऑफ दिल्ली

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