अनुच्छेद 23 के तहत 'बेगार' निषिद्ध: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मल्टीपर्पज़ हेल्‍‌थ वर्कर्स को काम की अवधि के लिए वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

4 April 2024 8:22 AM GMT

  • अनुच्छेद 23 के तहत बेगार निषिद्ध: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मल्टीपर्पज़ हेल्‍‌थ वर्कर्स को काम की अवधि के लिए वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में माना कि बेगार संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत प्रतिबंधित है और मल्टीपर्पज़ हेल्‍थ वकर्स (मेल) को महत्वपूर्ण राहत प्रदान की।

    जस्टिस मनीष कुमार ने कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 में बेगार यानी काम लेना लेकिन उसके लिए भुगतान नहीं करना, के व्यापक निहितार्थ और दायरे हैं.. जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार से जुड़ा है।"

    कोर्ट ने राम चेत वर्मा और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य पर भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि व्यक्तियों ने न्यायालय के अंतरिम आदेशों के अनुसार काम किया है तो वे काम की अवधि के लिए वेतन के हकदार होंगे।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "अंतरिम आदेश के तहत या अन्यथा उनके द्वारा सेवा की गई अवधि के लिए वेतन का भुगतान न करना उनसे बेगार लेने के समान होगा, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत निषिद्ध है।"

    कोर्ट ने मामले में पाया कि योजना के तहत भारत सकार ने नियुक्तियां करने की अनुमति 05.09.2012 को दी थी। कोर्ट ने कहा कि यह योजना उस दिन से लागू है जिस दिन 2012 में योजना लागू होने के बाद नियुक्ति की गई थी।

    न्यायालय ने माना कि दिशानिर्देशों के अनुसार राज्य सरकार 3 साल की प्रारंभिक अवधि के बाद बहुउद्देश्यीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (पुरुष) के लिए पद बनाने के लिए उत्तरदायी थी। हालांकि, वैसा नहीं किया गया। कोर्ट ने माना कि राज्य सरकार का सीएमओ को ऐसे कर्मियों से कोई काम न लेने का निर्देश देने का आदेश कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश का उल्लंघन है।

    चूंकि याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के आदेशों के अनुसार काम करना जारी रखा था, अदालत ने भारत सरकार और उत्तर प्रदेश राज्य सरकार को उन याचिकाकर्ताओं को वेतन वितरित करने का निर्देश दिया, जिन्होंने उनकी प्रारंभिक नियुक्ति की तारीख से तीन साल की अवधि तक काम किया था।

    कोर्ट ने कहा कि तीन साल की शुरुआती अवधि के बाद किए गए काम का वेतन राज्य सरकार द्वारा दिया जाएगा।

    केस टाइटल: शिव प्रताप मौर्य और 667 अन्य v. State Of U.P. Through Prin. Secy. Deptt. Of Medical Health And Ors. [WRIT - A No. - 1453 of 2014]

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