1974 हार्नेस रूल्स | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राधिकरण से विवाहित बेटी के अनुकंपा रोजगार दावे पर पुनर्विचार करने को कहा

LiveLaw News Network

12 April 2024 4:57 PM GMT

  • 1974 हार्नेस रूल्स | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्राधिकरण से विवाहित बेटी के अनुकंपा रोजगार दावे पर पुनर्विचार करने को कहा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि यूपी रिक्रूटमेंट ऑफ डिपेंडेंट्स ऑफ गवर्नमेंट सर्वेंट्स डाइंग इन हार्नेस रूल्स, 1974 के रूल 2 (सी) और रूल 5 के तहत 'परिवार' की परिभाषा यह तय नहीं करती कि अनुकंपा नियुक्ति के इच्छुक व्यक्ति का मृत कर्मचारी पर निर्भर रहना आवश्यक है।

    जस्टिस अब्दुल मोईन ने अधिकारियों को मृत कर्मचारी की विवाहित बेटी की ओर से अनुकंपा नियुक्ति के लिए दिए गए आवेदन पर पुनर्विचार करने का निर्देश देते हुए कहा,

    “नियम, 1974 केवल नियम 2 (सी) और नियम 5 के अनुसार परिवार शब्द को परिभाषित करता है, जो विशेष रूप से अनुकंपा नियुक्ति को नियंत्रित करता है। यह नियम यह भी इंगित नहीं करता है कि अनुकंपा नियुक्ति चाहने वाला व्यक्ति मृत सरकारी कर्मचारी का आश्रित होना चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि जब नियम, 1974 के तहत शब्द शामिल नहीं है तो उत्तरदाता अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता के दावे से वंचित करने के लिए कोई भी शब्द जोड़ सकते हैं।

    1974 के नियम 2 (सी) में 'परिवार' में पत्नी या पति, बेटे और दत्तक पुत्र, बेटियां (दत्तक बेटियों सहित) और विधवा बहुएं, अविवाहित भाई, अविवाहित बहनें और मृत सरकारी कर्मचारी पर निर्भर विधवा मां शामिल हैं, यदि मृत सरकारी कर्मचारी अविवाहित था।

    नियम 5 में प्रावधान है कि परिवार का एक सदस्य जो पहले से ही केंद्र सरकार या राज्य सरकार या केंद्र सरकार या राज्य सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण वाले निगम के तहत कार्यरत नहीं है, उसे सरकारी सेवा में उपयुक्त तरीके से आवेदन करने पर, यदि वह शैक्षणिक योग्यता पूरी करता है, सामान्य भर्ती नियमों से छूट दी जाएगी।

    याचिकाकर्ता उस मृत कर्मचारी की विवाहित बेटी है जिसकी कार्यस्थल पर मृत्यु हो गई थी। अनुकंपा नियुक्ति के लिए उसका दावा इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि विवाहित होने के कारण, वह अब मृत कर्मचारी पर निर्भर नहीं थी और 1974 के नियमों के तहत अनुकंपा नियुक्ति की हकदार नहीं थी।

    हाईकोर्ट ने पहले भी अधिकारियों को उसके दावे पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था। अधिकारियों ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को इस आधार पर खारिज करने का आदेश पारित किया था कि उसके दो भाई सरकारी नौकरी में कार्यरत थे और उसकी मां को हर महीने पेंशन मिल रही थी। याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करने के लिए यूपी राज्य और अन्य बनाम माधवी मिश्रा और 2 अन्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया गया।

    अस्वीकृति आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि माधवी मिश्रा मामले में हाईकोर्ट का निर्णय 1974 नियमावली से संबंधित नहीं है। श्रीमती विमला श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्‍य पर भरोसा किया गया, जिसके तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1974 के नियमों के तहत अनुकंपा नियुक्ति के लिए एक विवाहित बेटी के दावे पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था। यह तर्क दिया गया कि 1974 के नियम याचिकाकर्ता की नियुक्ति पर कोई रोक नहीं लगाते हैं यदि उसके भाई सरकारी सेवा में हैं या यदि मां पेंशन प्राप्त कर रही है।

    कोर्ट ने कहा कि माधवी मिश्रा के मामले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 1955 के नियमों के प्रावधानों पर विचार किया था, न कि 1974 के नियमों के। तदनुसार, इसे याचिकाकर्ता के मामले में अनुपयुक्त माना गया।

    न्यायालय ने कहा कि कुमारी निशा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि बेटे का सरकारी सेवा में होना परिवार के अन्य सदस्यों के लिए अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने पर कोई रोक नहीं है क्योंकि उसकी कमाई उसके परिवार (पत्नी और बच्चों) के जीवनयापन के लिए है। यह माना गया कि विधायिका ने जानबूझकर इस प्रावधान में संशोधन किया है कि परिवार के अन्य सदस्यों को केवल तभी अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने से रोका जाए, जब मृतक का जीवनसाथी सरकारी रोजगार में हो।

    तदनुसार, न्यायालय ने माना कि भाइयों का सरकारी सेवा में होना और मां का पेंशन प्राप्त करना याचिकाकर्ता (विवाहित बेटी) के लिए अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने में बाधा नहीं है।

    केस टाइटलः श्रीमती कविता तिवारी बनाम State Of U.P Thru. Prin. Secy. Deptt. Of Irrigation And Water Resources Govt. Of U.P.Lko And Others [WRIT - A No. - 556 of 2022]

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