गुजरात हाईकोर्ट ने छह महीने के लिए यतिन ओझा के सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन की अस्थायी बहाली जारी रखी
Amir Ahmad
11 Jan 2025 1:25 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में अधिसूचना में 1 जनवरी, 2025 से प्रभावी एडिशनल छह महीने के लिए यतिन नरेंद्रभाई ओझा के सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन की अस्थायी बहाली को बढ़ाने का प्रस्ताव किया।
यह निर्णय रिट याचिका (सिविल) नंबर 734/2020 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 28 अक्टूबर, 2021 को यतिन नरेंद्र ओझा बनाम गुजरात हाईकोर्ट के मामले में दिए गए निर्णय के बाद लिया गया।
गुजरात हाईकोर्ट के फुल कोर्ट ने 1 जनवरी, 2025 को आयोजित अपनी बैठक में अस्थायी बहाली को जारी रखने की पुष्टि की जिसे शुरू में फुल कोर्ट ने 24 दिसंबर, 2021 को पारित प्रस्ताव में मंजूरी दी थी।यह अस्थायी बहाली मूल रूप से सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप की गई, जिसने फैसला सुनाया कि 1 जनवरी 2022 से दो साल के लिए ओझा के सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन को बहाल करके न्याय के उद्देश्यों को पूरा किया जाएगा। बहाली ओझा के व्यवहार पर निर्भर थी, अगर उनका आचरण अनुचित माना जाता है तो हाईकोर्ट को पदनाम वापस लेने का विवेक दिया गया।
यह मामला एक विवाद से उपजा था, जिसमें गुजरात हाईकोर्ट ने जुलाई 2020 में ओझा के सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन रद्द कर दिया था। यह कार्रवाई फेसबुक लाइव कॉन्फ्रेंस के बाद हुई, जिसमें ओझा ने हाईकोर्ट की रजिस्ट्री के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए, जिसमें उस पर भ्रष्ट आचरण और हाई-प्रोफाइल उद्योगपतियों और तस्करों को तरजीह देने का आरोप लगाया।
इस निरस्तीकरण के जवाब में ओझा ने निर्णय को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई टाल दी, जिसके कारण अंततः हाईकोर्ट ने आगे की कार्रवाई की।
अक्टूबर, 2020 में गुजरात हाईकोर्ट ने ओझा को उनके सार्वजनिक आरोपों के कारण आपराधिक अवमानना का दोषी पाया। गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने हाईकोर्ट पर न्याय के कुप्रशासन का आरोप लगाया, जिसके बाद हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू की।
हाईकोर्ट ने ओझा को आपराधिक अवमानना के लिए उत्तरदायी ठहराते हुए न्यायपालिका की गरिमा और अधिकार को बनाए रखने के महत्व पर जोर देते हुए कहा,
“संस्था पर हमले से खुद को बचाने का एकमात्र हथियार न्यायिक भंडार के शस्त्रागार में बचा हुआ न्यायालय की अवमानना का लंबा हाथ है, जो जरूरत पड़ने पर किसी भी गर्दन तक पहुंच सकता है, चाहे वह कितनी भी ऊंची या दूर क्यों न हो।”
इसके अलावा अक्टूबर, 2021 में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने ओझा द्वारा दायर अपील में आदेश पारित किया, जिसमें गुजरात हाईकोर्ट के उनके सीनियर डेजिग्नेशन को रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गई। इस निर्णय के अनुसरण में दिसंबर, 2021 में गुजरात हाईकोर्ट ने उनके सीनियर वकील डेजिग्नेशन को बहाल करने का प्रस्ताव लिया था। चूंकि सुप्रीम कार्य ने इस मामले में निर्णय लेने का काम गुजरात हाईकोर्ट पर छोड़ दिया था, इसलिए हाईकोर्ट ने उनके सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन को अस्थायी रूप से बहाल करने का निर्णय लिया।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
"यह अंतिम फैसला हाईकोर्ट को करना होगा कि उनका व्यवहार स्वीकार्य है या नहीं, इस मामले में हाईकोर्ट उनके पदनाम को अस्थायी रूप से जारी रखने या इसे स्थायी रूप से बहाल करने का फैसला कर सकता है। कहने की जरूरत नहीं है कि अगर दो साल की इस अवधि के दौरान याचिकाकर्ता के आचरण में कोई उल्लंघन होता है तो हाईकोर्ट को दो साल के लिए दी गई छूट वापस लेने का पूरा अधिकार होगा, जो बदले में याचिकाकर्ता और उसके वकील द्वारा बेदाग व्यवहार के लिए दिए गए आश्वासनों पर आधारित है, बिना हाईकोर्ट को उसके आचरण में कोई दोष खोजने का कोई कारण दिए। वास्तव में याचिकाकर्ता का भाग्य उसके अपने हाईकोर्ट के समक्ष सीनियर एडवोकेट के रूप में उसके उचित आचरण पर निर्भर करता है, जिसका अंतिम निर्णय हाईकोर्ट ही लेगा।
इस चेतावनी के साथ कि यह हाईकोर्ट है, जो देखेगा और सबसे अच्छा फैसला कर सकता है कि वह बिना किसी और अवसर के सीनियर एडवोकेट के रूप में कैसे व्यवहार करता है और खुद को पेश करता है, सुप्रीम कोर्ट ने राय दी थी कि 1 जनवरी, 2022 से दो साल की अवधि के लिए एडवोकेट यतिन ओझा की डेजिग्नेशन को अस्थायी रूप से बहाल करके न्याय का उद्देश्य पूरा किया जाएगा। एक तरह से यह वास्तव में भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 का सहारा लेकर किया जा सकता है, क्योंकि हाईकोर्ट के वकील की इस दलील में योग्यता है कि याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का कोई वास्तविक उल्लंघन नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सवाल यह है कि यह आखिरी मौका किस तरह दिया जाना चाहिए? हमारा विचार है कि 1.1.2022 से दो साल की अवधि के लिए याचिकाकर्ता की डेजिग्नेशन को अस्थायी रूप से बहाल करने की मांग करके न्याय का उद्देश्य पूरा किया जाएगा।