गुजरात हाईकोर्ट ने दूसरे व्यक्ति की पहचान का उपयोग करके भारतीय पासपोर्ट बनाने के आरोप में गिरफ्तार नेपाली नागरिक को जमानत दी
Amir Ahmad
30 Oct 2024 2:28 PM IST
पिछले सप्ताह गुजरात हाईकोर्ट ने नेपाली नागरिक को को नियमित जमानत दी, जिस पर किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर जाली पहचान प्रमाण और अन्य दस्तावेजों का उपयोग करके भारतीय पासपोर्ट बनाने का आरोप लगाया गया था।
ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने जमानत नियम है और जेल अपवाद, सिद्धांत को दोहराया और कहा कि लंबे समय तक प्री-ट्रायल हिरासत प्री-ट्रायल दोषसिद्धि के बराबर हो सकती है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों का खंडन करती है।
जस्टिस हसमुख डी सुथार की एकल पीठ ने 23 अक्टूबर को अपने आदेश में व्यक्ति की नियमित जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा कि जांच पूरी हो चुकी है। आरोप-पत्र दाखिल किया जा चुका है।
यह कहा गया कि आवेदक इस साल जून से जेल में है, उसका कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं है। आरोपी से कुछ भी बरामद करने या खोज करने की आवश्यकता नहीं है।
इसने आगे कहा कि आवेदक पिछले छह वर्षों से नई दिल्ली और हरियाणा के पानीपत में अपनी आजीविका कमा रहा था।
जस्टिस सुथार ने संजय चंद्रा बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और गुडिकांति नरसिम्हलू और अन्य बनाम सरकारी अभियोजक, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (1978) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2012 के अपने फैसले में निर्धारित कानून का हवाला दिया।
इसके बाद उन्होंने कहा,
“मुकदमे के समापन में समय लगेगा, क्योंकि पासपोर्ट अधिनियम के तहत अनुमति अभी तक नहीं मिली। आरोपी को सलाखों के पीछे रखना पूर्व-परीक्षण दोषसिद्धि के अलावा कुछ नहीं है। इसलिए जमानत न्यायशास्त्र के प्रसिद्ध सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए कि जमानत नियम है और जेल अपवाद। साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवधारणा, वर्तमान आवेदन पर विचार करने योग्य है।”
एफआईआर आईपीसी की धारा 406, 465, 467, 468 और 471 और पासपोर्ट अधिनियम की धारा 12 (2) के तहत दर्ज की गई।
यह आरोप लगाया गया कि आवेदक नेपाल का नागरिक है और उसने सूरजसिंह देवीराज के नाम से भारतीय पासपोर्ट और अन्य पहचान दस्तावेज बनाए हैं। आवेदक की ओर से पेश वकील ने कहा कि आवेदक निर्दोष है और उसे झूठा फंसाया गया।
उन्होंने कहा कि चूंकि जांच पूरी हो चुकी है और आरोप-पत्र दाखिल हो चुका है, इसलिए अधिकारियों के पास उससे वसूली के लिए कुछ नहीं बचा है।
उन्होंने अदालत को यह भी आश्वासन दिया कि आवेदक सभी आवश्यक कार्यवाही में शामिल होगा और अहमदाबाद का स्थानीय जमानतदार उपलब्ध कराएगा।
इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा,
"मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में और एफआईआर में आवेदक के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए साक्ष्य पर विस्तार से चर्चा किए बिना प्रथम दृष्टया यह न्यायालय इस राय पर है कि यह विवेक का प्रयोग करने और आवेदक को नियमित जमानत पर रिहा करने का उपयुक्त मामला है। इसलिए वर्तमान आवेदन को स्वीकार किया जाता है।"
इसके बाद हाईकोर्ट ने आवेदक को अहमदाबाद के स्थानीय जमानतदार के साथ 25,000 रुपये का निजी मुचलका जमा करने की शर्त पर जमानत दी।
न्यायालय ने आवेदक पर अन्य शर्तें भी लगाईं, जिनमें शामिल हैं कि उसे एक सप्ताह के भीतर अपना पासपोर्ट ट्रायल कोर्ट में जमा करना होगा। ट्रायल कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना राज्य नहीं छोड़ना होगा अपना यूआईडीएआई नंबर, संपर्क नंबर, पासपोर्ट नंबर, ई-मेल पता और अपने निवास का वर्तमान पता जांच अधिकारी को और बांड के निष्पादन के समय न्यायालय को भी देना होगा।
केस टाइटल: जगत बहादुर देवीराम ऐताराम दलामी बनाम गुजरात राज्य