द्वारका विध्वंस: गुजरात हाईकोर्ट ने कथित धार्मिक संरचनाओं को बलपूर्वक कार्रवाई से बचाने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज किया

Amir Ahmad

4 Feb 2025 3:43 PM IST

  • द्वारका विध्वंस: गुजरात हाईकोर्ट ने कथित धार्मिक संरचनाओं को बलपूर्वक कार्रवाई से बचाने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज किया

    गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार (4 फरवरी) को बेयट द्वारका में कुछ कथित धार्मिक संरचनाओं को ध्वस्त करने से बचाने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज किया।

    याचिकाओं में तीन दिनों के भीतर अनधिकृत निर्माण/अतिक्रमण को हटाने के निर्देश देने वाले नोटिस को चुनौती दी गई, जिसके विफल होने पर उन्हें ध्वस्त करने का संकेत दिया गया।

    जस्टिस मौना एम भट्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा,

    "मैंने सब कुछ पर विचार किया। भूमि के उपयोग के संबंध में सभी पक्षों द्वारा भरोसा किए गए सभी निर्णय वर्तमान याचिकाओं पर किसी विचार की आवश्यकता नहीं है। इसलिए सभी रिट याचिकाओं को खारिज किया जाता है।”

    न्यायालय ने पिछले महीने दी गई अंतरिम राहत को 15 दिनों की अवधि के लिए जारी रखने की याचिकाकर्ताओं की याचिका को भी खारिज कर दिया।

    हाईकोर्ट ने 22 जनवरी को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि राज्य द्वारा तोड़फोड़ के लिए जारी किए गए नोटिस कानून की उचित प्रक्रिया के बिना हैं, नोटिस प्रकृति में अस्पष्ट हैं और उनमें विवरण का अभाव है। उन्होंने यह भी बताया कि नोटिस गुजरात नगर पालिका अधिनियम की धारा 185 के प्रावधान के तहत जारी नहीं किए गए।

    वकील ने तोड़फोड़ पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि संरचनाएं धार्मिक हैं और समुदाय की भावनाएं इससे जुड़ी हैं। इसके बाद वकील ने बताया कि संरचनाएं पीरों की दरगाह (एक संत की कब्र जिस पर एक आवरण या संरचना खड़ी की जाती है, जहां लोग जाते हैं और श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं) और मदरसा (इस्लामी शिक्षा के लिए एक कॉलेज) हैं, जहां बच्चों को धार्मिक शिक्षा और निर्देश दिए जाते हैं।

    उन्होंने कहा कि भूमि का उपयोग कब्रिस्तान के रूप में किया जाता है। इसके अलावा, तर्क दिया कि संपत्ति धारा 2 (19) - उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ के प्रावधान के तहत कवर की गई। इसके बाद उन्होंने कहा कि ध्वस्तीकरण के आदेश में पक्षपात है, क्योंकि इसमें कोई जांच नहीं है, कोई नोटिस नहीं है। इसमें इस बात का विवरण नहीं है कि भूमि वक्फ संपत्ति है या सरकारी संपत्ति और ध्वस्तीकरण का निर्णय लेने के लिए संबंधित प्राधिकारी का निर्णय नहीं लिया गया।

    इसके बाद वकील ने सुप्रीम कोर्ट और प्रिवी काउंसिल के मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि यदि संपत्ति सरकार द्वारा बनाए गए राजस्व रिकॉर्ड में कब्रिस्तान के रूप में दर्ज है तो ऐसी संपत्ति 'उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ' बन जाती है। वक्फ अधिनियम के तहत प्रावधान और संरक्षण लागू होगा। इसके बाद वकील ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार नियमितीकरण का अनुरोध किया।

    इस बीच सरकारी वकील जीएच विर्क ने उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ के तर्क के बारे में स्पष्ट करते हुए कहा कि यह जांच के दायरे से बाहर है। उन्होंने यह भी बताया कि 20 साल में चैरिटी कमिश्नर या वक्फ बोर्ड के समक्ष 'उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ के रूप में मान्यता देने के लिए कभी कोई जांच नहीं की गई।

    1989 के सरकारी संकल्प का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कब्रिस्तान के लिए निर्धारित भूमि पर निर्माण नहीं हो सकता है। यदि निर्माण होता है तो ऐसी संरचनाओं को वक्फ नहीं माना जाएगा।

    उन्होंने कहा कि राज्य कब्र को नहीं छू रहा है, इसलिए ट्रांसफरका सवाल ही नहीं उठता। न्यायालय की अनुमति से, राज्य केवल अवैध संरचनाओं को ध्वस्त करने जा रहा है।

    केस टाइटल: बेट भडेला मुस्लिम जमात अध्यक्ष कादरभाई अभुभाई मालेक और अन्य बनाम गुजरात राज्य और बैच

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