खान एवं खनिज अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करने मात्र से पुलिस को रेत/खनिजों की चोरी के लिए मामला दर्ज करने से नहीं रोका जा सकता: गुजरात हाईकोर्ट

Amir Ahmad

16 Jan 2025 12:06 PM IST

  • खान एवं खनिज अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू करने मात्र से पुलिस को रेत/खनिजों की चोरी के लिए मामला दर्ज करने से नहीं रोका जा सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    रेत/खनिजों के अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि भले ही खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम के तहत कोई अपराध बनता हो, जिस पर मजिस्ट्रेट अधिकृत अधिकारी की शिकायत के बिना संज्ञान नहीं ले सकता लेकिन यह पुलिस को रेत/खनिजों की चोरी के लिए मामला दर्ज करने से नहीं रोकता।

    जस्टिस दिव्येश ए जोशी ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के 2014 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया,

    "MMDR Act के तहत लगाए गए प्रतिबंधों और उसमें दिए गए उपायों के संबंध में कोई विवाद नहीं हो सकता। किसी भी मामले में जहां धारा 4 और अधिनियम की अन्य धाराओं के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए किसी व्यक्ति द्वारा खनन गतिविधि की जाती है। अधिनियम के तहत सशक्त और अधिकृत अधिकारी क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत करने सहित सभी शक्तियों का प्रयोग करेगा। यह भी विवाद में नहीं है कि मजिस्ट्रेट ऐसे मामलों में विधिवत अधिकृत अधिकारी द्वारा उसके समक्ष दायर शिकायत के आधार पर संज्ञान लेगा। हालांकि, ऐसी स्थिति हो सकती है, जहां कोई व्यक्ति बिना किसी पट्टे या लाइसेंस या किसी प्राधिकरण के नदी में प्रवेश करता है और रेत, बजरी और अन्य खनिजों को निकालता है। उन खनिजों को राज्य के कब्जे से बेईमानी से हटाने के इरादे से गुप्त तरीके से उन खनिजों को हटाता या परिवहन करता है तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 378 और 379 के तहत ऐसा अपराध करने के लिए दंडित होने के लिए उत्तरदायी है।"

    इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,

    "केवल शिकायत के आधार पर MMDR Act के तहत अपराध करने के लिए कार्यवाही शुरू करने से पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता के तहत शक्ति का प्रयोग करके ऊपर बताए गए तरीके से रेत और खनिजों की चोरी करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने से नहीं रोका जा सकता है और न ही रोका जाएगा। ऐसे व्यक्ति के खिलाफ संज्ञान लेने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जा सकती है। दूसरे शब्दों में ऐसे मामले में जहां सरकारी भूमि से रेत और बजरी की चोरी होती है, पुलिस मामला दर्ज कर सकती है, उसकी जांच कर सकती है और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 190 (1)(डी) में दिए गए अनुसार संज्ञान लेने के उद्देश्य से क्षेत्राधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 173, CrPC के तहत फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकती है।"

    हाईकोर्ट ने समन्वय पीठ के जुलाई 2024 के आदेश का हवाला दिया, जिसने बदले में सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश का हवाला दिया, जिसमें IPC की धारा 379 और 114 और खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) (MMDR) अधिनियम की धारा 4(1) और 4(1ए) के तहत दर्ज FIR रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की थी।

    वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि यह मामला हाईकोर्ट के पिछले आदेश के अंतर्गत आता है, जिसमें इसी तरह के मुद्दे को संबोधित किया गया। उन्होंने अदालत से FIR और दायर आरोपपत्र रद्द करने और अलग रखने तथा MMDR Act के तहत उचित कार्रवाई करने की स्वतंत्रता देने का आग्रह किया।

    राज्य के वकील ने याचिकाकर्ता के वकील द्वारा दिए गए आदेश पर विवाद नहीं किया और कहा कि अदालत संबंधित अधिकारी को MMDR Act के तहत कार्यवाही शुरू करने की स्वतंत्रता के साथ आदेश पारित कर सकती है।

    समन्वय पीठ के निर्णय पर गौर करते हुए हाईकोर्ट ने कहा,

    "उपर्युक्त के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि वर्तमान मामला उपरोक्त आदेश के अंतर्गत आता है। इसलिए इसे अनुमति दी जानी चाहिए।"

    इसके बाद न्यायालय ने FIR रद्द की, जबकि संबंधित अधिकारी को MMDR Act की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के तहत मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष निजी शिकायत दर्ज करने की स्वतंत्रता दी।

    उन्होंने कहा,

    "यह स्पष्ट किया जाता है कि संबंधित अधिकारी के लिए अधिनियम, 1957 की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराध के संबंध में संबंधित मजिस्ट्रेट की अदालत में निजी शिकायत दर्ज करना खुला होगा, उस संबंध में अधिकृत अधिकारी के माध्यम से आरोपित FIR के संबंध में अब तक एकत्र की गई सामग्री और साक्ष्य का जवाब देना होगा। यदि ऐसी निजी शिकायत दर्ज की जाती है तो संबंधित मजिस्ट्रेट कानून के अनुसार उस पर विचार करने के लिए आगे बढ़ेंगे।”

    केस टाइटल: रामाभाई जीवाभाई केशवाला बनाम गुजरात राज्य और अन्य।

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