गुजरात हाईकोर्ट ने शाहरुख खान और रईस के निर्माताओं के खिलाफ 101 करोड़ रुपये के मानहानि मामले में अब्दुल लतीफ के उत्तराधिकारियों को शामिल करने का फैसला खारिज किया
Amir Ahmad
11 July 2024 12:28 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार को निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें गैंगस्टर अब्दुल लतीफ के उत्तराधिकारियों को बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान और हिंदी फिल्म रईस के निर्माताओं के खिलाफ आठ साल पुराने मानहानि के मुकदमे में वादी के रूप में शामिल करने की अनुमति दी गई थी।
जनवरी 2017 में रिलीज हुई इस फिल्म में एक किरदार है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह अब्दुल लतीफ पर आधारित है।
मानहानि का मुकदमा मूल रूप से 2016 में लतीफ के बेटे मुस्ताक अब्दुल लतीफ शेख द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने मुकदमा शुरू करने की तारीख से 18% ब्याज के साथ 101 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा था। इसमें आरोप लगाया गया कि फिल्म ने उनके पिता की प्रतिष्ठा को धूमिल किया। मुस्ताक का 6 जुलाई, 2020 को निधन हो गया।
इसके बाद मुस्ताक की विधवा और दो बेटियों ने मानहानि के मुकदमे में वादी के रूप में शामिल होने के लिए 27 अप्रैल 2022 को एक आवेदन दायर किया।
इस आवेदन को शहर की सिविल कोर्ट ने अनुमति दी थी, जिसके बाद शाहरुख खान और अन्य ने हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी। निचली अदालत ने शाहरुख खान, उनकी पत्नी गौरी खान, रेड चिलीज एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, एक्सेल एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, फरहान जावेद अख्तर और राहुल ढोलकिया द्वारा उठाई गई आपत्तियों को खारिज कर दिया, जिन्होंने तर्क दिया था कि शिकायतकर्ता की मृत्यु के बाद मानहानि का मुकदमा नहीं चल सकता।
हाईकोर्ट में दायर सिविल आवेदन में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट सलिल ठाकुर ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 306 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि मानहानि के लिए मुकदमा करने का अधिकार मृतक के उत्तराधिकारियों को नहीं मिलता। उन्होंने आगे कहा कि मानहानि व्यक्तिगत कार्रवाई है, जो व्यक्ति के साथ ही समाप्त हो जाती है। उन्होंने कानूनी कहावत "एक्टियो पर्सनलिस मोरिटुर कम परसोना" का हवाला दिया।
मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जेसी दोशी ने इस कहावत को स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत कार्रवाई व्यक्ति के साथ ही समाप्त हो जाती है।
अपने अंतिम आदेश में न्यायालय ने कहा,
"दिवंगत वादी मुश्ताक अहमद अब्दुल लतीफ द्वारा बताई गई कार्रवाई का कारण उसकी मृत्यु पर ही समाप्त हो जाता है। यह कार्रवाई का कारण नहीं है जिसे उसके उत्तराधिकारियों द्वारा विरासत में प्राप्त किया जा सके वर्तमान मामले में जैसा कि यहां चर्चा की गई है मृतक के उत्तराधिकारियों के लिए मुकदमा करने का अधिकार नहीं है।"
हाईकोर्ट ने निचली अदालत को अपने आदेश के अनुसार तीन दिनों के भीतर मुकदमे में संशोधन करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: रेड चिलीज एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम स्वर्गीय मुस्ताक अहमद अब्दुल लतीफ शेख एवं अन्य।