मात्र आशंका के आधार पर याचिका: गुजरात हाईकोर्ट ने संभावित कार्रवाई से संबंधित मस्जिद की याचिका पर सुनवाई से किया इनकार

Amir Ahmad

17 Dec 2025 1:08 PM IST

  • मात्र आशंका के आधार पर याचिका: गुजरात हाईकोर्ट ने संभावित कार्रवाई से संबंधित मस्जिद की याचिका पर सुनवाई से किया इनकार

    गुजरात हाईकोर्ट ने अहमदाबाद स्थित मस्जिद द्वारा दायर उस याचिका पर विचार करने से इनकार किया, जिसमें संबंधित प्राधिकरणों द्वारा संभावित कार्रवाई की आशंका जताई गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक कोई ठोस (Cause of Action) उत्पन्न नहीं होता तब तक केवल आशंका के आधार पर दायर की गई याचिका पर सुनवाई नहीं की जा सकती।

    मामले की सुनवाई जस्टिस मौना एम. भट्ट कर रही थीं। याचिका में प्रार्थना की गई कि प्रतिवादी प्राधिकरणों को निर्देश दिया जाए कि वे किसी भी प्रस्तावित कार्रवाई को विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए ही अंजाम दें।

    याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि उन्हें आशंका है कि उनकी संपत्ति के खिलाफ गुजरात प्रांतीय नगर निगम अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जा सकती है, इसी भय के चलते उन्होंने अदालत का रुख किया। वकील ने कहा कि संबंधित संपत्ति एक वक्फ संपत्ति है और याचिकाकर्ता को मौखिक रूप से बताया गया है कि बिना किसी नोटिस या प्रक्रिया के इसे ध्वस्त किया जा सकता है।

    हालांकि अदालत ने अपने आदेश में कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे यह साबित हो कि वास्तव में कोई कार्रवाई शुरू की गई या की जा रही है।

    जस्टिस भट्ट ने कहा कि यह याचिका केवल आशंका के आधार पर दायर की गई। इस तरह की 'अग्रिम' या 'अनुमानित' याचिकाओं पर विचार करना उचित नहीं है। अदालत ने यह भी दोहराया कि कानून की स्थापित स्थिति के अनुसार, संबंधित प्राधिकरण विधि के अनुसार ही कार्रवाई करने के लिए बाध्य हैं।

    सुनवाई के दौरान अदालत ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि वह किसी भी प्रकार का कारण-ए-कार्य नहीं देख पा रही है। याचिकाकर्ता के वकील ने आगे दलील दी कि मस्जिद एक झील के आसपास स्थित है और नगर निगम द्वारा झील के विकास कार्य के दौरान उन्हें बताया गया कि यह ढांचा ध्वस्तीकरण की जद में आ सकता है, क्योंकि यह परिधि क्षेत्र में आता है।

    इस पर अदालत ने कहा कि यदि प्राधिकरण जल निकाय के विकास की कार्रवाई कर रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि जल निकायों पर किसी भी प्रकार का अवैध निर्माण स्वीकार्य नहीं है और विकास के लिए आवश्यक होने पर व्यक्तिगत आवासों तक को हटाया जा सकता है। हालांकि, अदालत ने यह भी जोड़ा कि ऐसी किसी भी कार्रवाई से पहले विधिक प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है और संबंधित पक्ष को नोटिस दिया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा कि केवल यह आशंका जताना कि प्राधिकरण प्रक्रिया का पालन नहीं करेंगे, अपने आप में याचिका दायर करने का आधार नहीं हो सकता। सुनवाई के दौरान प्राधिकरणों की ओर से भी यह स्पष्ट किया गया कि बिना नोटिस दिए कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

    इन तथ्यों के मद्देनज़र गुजरात हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका का निपटारा कर दिया कि मामले में कोई कारण-ए-कार्य उत्पन्न नहीं हुआ और इसलिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

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