गुजरात हाइकोर्ट ने विशिष्ट न्यायालय आदेशों के बावजूद अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करने में बार-बार विफल रहने के लिए वकील पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया
Amir Ahmad
23 April 2024 3:04 PM IST
गुजरात हाइकोर्ट ने विशिष्ट न्यायालय आदेशों के बावजूद अपने मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करने में बार-बार विफल रहने के लिए वकील पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
इसके एडिशनल कोर्ट ने वकील प्रशांत वी. चावड़ा के आचरण को आगे की जांच के लिए गुजरात बार काउंसिल को भेजने का निर्णय लिया। न्यायालय ने टिप्पणी की कि चावड़ा का आचरण कानूनी पेशे के मानकों को पूरा नहीं करता है और बार काउंसिल द्वारा उनके खिलाफ उचित कार्रवाई करने की आवश्यकता पर बल दिया। चावड़ा को 30 दिनों के भीतर गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को जुर्माना अदा करने का निर्देश दिया गया।
मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस निखिल करील ने कहा,
"वकील अनिवार्य रूप से न्यायालय के अधिकारी होते हैं, जिनका गंभीर कर्तव्य न्यायालय को न्याय सुनिश्चित करने के लिए उचित निष्कर्ष पर पहुंचने में सहायता प्रदान करना है। वकील चावड़ा ने बार-बार आदेश के बावजूद उपस्थित न रहकर और याचिकाकर्ताओं के साथ सहयोग न करके ठीक इसके विपरीत कार्य किया, जिसकी वकील से अपेक्षा की जाती है।"
जस्टिस करील ने कहा,
“वकील की अनुपस्थिति के कारण न्यायालय का कीमती समय भी अनावश्यक रूप से बर्बाद हुआ। ऐसी परिस्थितियों में जबकि यह न्यायालय वकील के आचरण को बार काउंसिल को संदर्भित करना उचित समझता है, यह न्यायालय वकील पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाना भी उचित समझता है, जो इस आदेश की प्राप्ति की तिथि से 30 दिनों की अवधि के भीतर गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को देय होगा। यदि वर्तमान आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण उचित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होगा।”
उल्लेखनीय है कि याचिका वकील चावड़ा के माध्यम से दायर की गई थी लेकिन वे कई मौकों पर उपस्थित होने या वैकल्पिक व्यवस्था करने में विफल रहे।
न्यायालय ने अपने पिछले आदेश दिनांक 27.03.2024 में चावड़ा की अनुपस्थिति पर ध्यान दिया, जिन्होंने याचिकाकर्ताओं की ओर से याचिका दायर की।
कोर्ट ने कहा,
"विशेष निर्देशों के बावजूद कि वकील या तो उपस्थित रहेंगे या वैकल्पिक व्यवस्था करेंगे वकील चावड़ा इस न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं हुए और जबकि कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है।"
याचिकाकर्ताओं ने यह भी शिकायत की कि न तो चावड़ा उनके टेलीफोन कॉल का जवाब दे रहे थे और न ही वे याचिकाकर्ताओं को कागजात लौटा रहे थे।
न्यायालय ने यह देखते हुए कि वकील अपने पेशे के प्रति सच्चे नहीं रहे हैं, कहा कि वकील अपने मुवक्किलों के साथ टालमटोल करके भी अपने पेशे के प्रति सच्चे नहीं रहे हैं।
चावड़ा के व्यवहार को देखते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की कि वकील की न्यायालय में पेश होने से बचने और बीमार होने/छुट्टी का नोट देने की आदत न्यायालय और कानूनी प्रक्रिया के प्रति उपेक्षा का संकेत देती है।
न्यायालय ने आगे कहा कि जब न्यायालय ने चावड़ा को उपस्थित रहने या वैकल्पिक व्यवस्था करने का निर्देश देते हुए बार-बार आदेश पारित किए हैं तो यह सुनिश्चित करना उनका काम है कि कोई उचित वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
न्यायालय ने कहा,
"यह ध्यान देने योग्य है कि मामले की सुनवाई 13.02.2024 को हुई थी और जबकि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इस न्यायालय ने वकील से यह जानना चाहा कि किन परिस्थितियों में आरोप लगाए गए हैं। उक्त प्रश्न वकील को असहज कर रहे हैं। इसलिए उक्त वकील उसके बाद इस न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं हुए।"
केस टाइटल- दीप्तिबेन शंकरभाई राठवा और अन्य बनाम गुजरात लोक सेवा आयोग और अन्य