शर्मनाक: झूठी अफवाह फैलाकर आधी रात अपील दायर करने पर हाईकोर्ट ने वकील को फटकारा, 1 लाख का जुर्माना लगाया
Amir Ahmad
29 Sept 2025 3:08 PM IST

गुजरात हाईकोर्ट ने एक सीनियर वकील के आचरण की कड़ी निंदा की, जिन्होंने दावा किया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा रोक आदेश न दिए जाने के कारण अधिकारी रातों-रात उनके मुवक्किलों के फ्लैट ध्वस्त कर देंगे। कोर्ट ने कहा कि वकील ने सही तथ्यों की पुष्टि किए बिना आधी रात को अपील दायर करके कोर्ट की मशीनरी का दुरुपयोग किया।
जस्टिस मौलिक जे. शेलाट की पीठ ने वकील के आचरण को निंदनीय और शर्मनाक बताते हुए चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी गलती दोहराए जाने पर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि एक सीनियर वकील होने के नाते उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे कोर्ट के अधिकारी हैं। कोर्ट को सहायता प्रदान करना उनका कर्तव्य है।
कोर्ट उन लोगों की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने गुजरात हाउसिंग बोर्ड द्वारा बनाए गए फ्लैटों में स्वामित्व की घोषणा की मांग करते हुए ट्रायल कोर्ट में मुकदमा दायर किया। इन फ्लैटों का पट्टा अक्टूबर, 2086 में समाप्त होना था।
अपील दायर करने के तरीके पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि सीनियर वकील बी.एम. मंगुकिया ने यह दावा करते हुए अपील दायर की कि चूंकि ट्रायल कोर्ट ने 22 सितंबर, 2025 को अंतरिम रोक नहीं दी, इसलिए प्रतिवादी सुबह 6 बजे उनके फ्लैटों को ध्वस्त कर देंगे।
कोर्ट ने कहा कि वकील ने जमीनी हकीकत जाने बिना और अधिकारियों से बिना पुष्टि किए, हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में देर रात 12:20 बजे (23.09.2025 की सुबह) तत्काल सुनवाई का नोट दायर किया, जिससे अनावश्यक रूप से सभी को परेशान होना पड़ा।
अदालत ने कहा कि आम तौर पर कोर्ट का काम सुबह 11 बजे शुरू होता है लेकिन वकील की अत्यधिक जल्दबाजी के कारण कोर्ट ने सुबह 10 बजे ही मामले की सुनवाई शुरू कर दी। कोर्ट ने यह भी पाया कि सुबह 11:45 बजे सुनवाई समाप्त होने तक वकील के दावे के विपरीत प्रतिवादियों द्वारा कोई विध्वंस कार्य शुरू नहीं किया गया था।
कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों को देखते हुए पाया कि वकील मंगुकिया द्वारा 22 सितंबर की देर रात कृत्रिम जल्दबाजी पैदा की गई, जबकि याचिकाकर्ताओं ने 02 सितंबर 2025 के बाद सिविल कोर्ट जाने में काफी देर की थी। 22 सितंबर तक अंतरिम रोक आवेदन की सुनवाई का इंतजार किया।
कोर्ट का सख्त रुख और निष्कर्ष
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे यह दूर-दूर तक पता चले कि अधिकारी फ्लैटों के ध्वस्तीकरण के लिए दरवाजे पर खड़े थे।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि सही तथ्यों की पुष्टि किए बिना पूरी न्यायिक मशीनरी को इस तरह गतिमान करना वकील का अत्यंत निंदनीय और शर्मनाक कृत्य है। कोर्ट ने कहा कि वकील पहले कोर्ट का अधिकारी होता है और उसे न्याय दिलाने में कोर्ट की सहायता करनी चाहिए। इस तरह का आचरण बार के अन्य सदस्यों को गलत संकेत देता है।
मामले के गुण-दोष पर हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं का कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है। उन्होंने आवश्यक दस्तावेज जमा नहीं किए और वे सोसायटी के बहुमत सदस्यों के पुनर्विकास के फैसले को अमान्य आधारों पर रोकना चाहते हैं।
कोर्ट ने इस अपील को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं पर 1 लाख का जुर्माना लगाया, क्योंकि कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ताओं का आचरण दुर्भावनापूर्ण और उन्होंने कोर्ट की मशीनरी का दुरुपयोग करने के लिए कृत्रिम जल्दबाजी पैदा की थी।

