सिर्फ भूमि बिक्री अनुबंध के उल्लंघन से ठगी का मामला नहीं बनता, वादा करते समय धोखाधड़ी की मंशा जरूरी: गुवाहाटी हाईकोर्ट
Amir Ahmad
10 March 2025 8:48 AM

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने यह देखते हुए भूमि की बिक्री के लिए अनुबंध के कथित उल्लंघन के लिए धोखाधड़ी के मामले का संज्ञान लेते हुए आदेश रद्द कर दिया कि लेनदेन की शुरुआत में कोई गबन या धोखाधड़ी या बेईमान इरादा नहीं था।
ऐसा करते हुए अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि केवल अनुबंध का उल्लंघन धोखाधड़ी के लिए मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि वादा करते समय बेईमान इरादा न दिखाया जाए।
जस्टिस कौशिक गोस्वामी ने कहा:
“केवल अनुबंध का उल्लंघन धोखाधड़ी के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने को जन्म नहीं दे सकता, जब तक कि लेनदेन की शुरुआत में ही धोखाधड़ी या बेईमान इरादा न दिखाया जाए। व्यक्ति को धोखाधड़ी का दोषी ठहराने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि वादा करते समय उसका धोखाधड़ी या बेईमान इरादा था।”
न्यायाल अभियुक्त-याचिकाकर्ता के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 420 तथा 406 के तहत अपराधों का संज्ञान लेने वाले मजिस्ट्रेट कोर्ट का आदेश रद्द करने तथा मामले में पूरी कार्यवाही रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
मामले के तथ्य यह थे कि शिकायतकर्ता-प्रतिवादी नंबर 2 ने 30 जुलाई, 2016 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कामरूप (एम) के समक्ष शिकायत याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया कि शिकायतकर्ता स्थायी निवास बनाने के लिए भूमि की तलाश कर रहा था। उसने कहा कि वह अभियुक्त-याचिकाकर्ता के पास आया, जिसने अपनी भूमि का प्लॉट बेचने के लिए सहमति व्यक्त की तथा शिकायतकर्ता से 2,00,000 रुपये का अग्रिम भुगतान करने को कहा।
तदनुसार, शिकायतकर्ता ने 12 मार्च, 2016 को दो गवाहों की उपस्थिति में अभियुक्त-याचिकाकर्ता को 2,00,000 रुपये का भुगतान किया। यह आरोप लगाया गया कि बिक्री के अनुपालन के लिए शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी-याचिकाकर्ता से संपर्क करने के बावजूद ऐसा नहीं किया गया, जिसके लिए कानूनी नोटिस जारी किया गया था। यह आरोप लगाया गया कि आरोपी-याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता के साथ धोखाधड़ी की। IPC की धारा 406 और 420 के तहत मामला दर्ज किया गया।
उप-विभागीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, कामरूप (एम) ने मामले के रिकॉर्ड प्राप्त होने पर शिकायतकर्ता का बयान CrPC की धारा 200 के तहत दर्ज किया। उसके बाद 14 अगस्त, 2018 के आदेश द्वारा आरोपी-याचिकाकर्ता के खिलाफ IPC की धारा 420 और 406 के तहत संज्ञान लिया और आरोपी-याचिकाकर्ता की उपस्थिति के लिए अगली तारीख 03 अक्टूबर, 2018 तय की।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने प्रस्तुत किया कि भले ही शिकायत में आरोप को उसके वास्तविक मूल्य पर लिया जाए। उसे सत्य माना जाए कोई आपराधिक अपराध नहीं बनता है। इसलिए आपराधिक कार्यवाही जारी रखना पूरी तरह से अनुचित है।
राज्य प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित अतिरिक्त लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि शिकायत के मुख्य भाग से यह स्पष्ट है कि जब शिकायतकर्ता ने बिक्री कार्यवाही पूरी करने के लिए आरोपी-याचिकाकर्ता से संपर्क किया तो आरोपी-याचिकाकर्ता पैसे वापस करने के लिए तैयार था। इस तरह से धोखाधड़ी या विश्वासघात का कोई मामला नहीं बनता है जैसा कि दावा किया गया।
न्यायालय ने नोट किया कि कानूनी नोटिस जारी करने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता से मिलकर मामले को निपटाने का प्रयास किया, जिसमें उसने उससे मामले को निपटाने का अनुरोध किया और उस समय याचिकाकर्ता ने एकमुश्त राशि का भुगतान करने की बात कही।
न्यायालय ने कहा,
"यह अच्छी तरह से स्थापित है कि हर विश्वासघात का परिणाम आपराधिक विश्वासघात नहीं हो सकता, जब तक कि धोखाधड़ीपूर्ण गबन का कार्य दिखाने वाले साक्ष्य न हों। विश्वासघात का कार्य दीवानी गलत कार्य है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति दीवानी न्यायालय में क्षतिपूर्ति के लिए निवारण की मांग कर सकता है, लेकिन विश्वास का उल्लंघन आपराधिक अभियोजन को जन्म देता है।”
न्यायालय ने पाया कि लेन-देन की शुरुआत में कोई गबन या धोखाधड़ी या बेईमानी का इरादा नहीं था। इसलिए शिकायत को पढ़ने से धारा 420 और 406 के तहत कोई मामला नहीं बनता। न्यायालय ने पाया कि केवल वादा तोड़ने से आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इस प्रकार, न्यायालय ने मामले में संज्ञान लेने के साथ-साथ पूरी कार्यवाही रद्द कर दी।
केस टाइटल: ब्रजेंद्र दास बनाम असम राज्य और अन्य।