प्रोफेसर शामनाद बशीरः लाइव लॉ ने अपना दूरदर्शी मार्गदर्शक खो दिया

Rashid MA

9 Aug 2019 3:17 PM GMT

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    प्रोफेसर शामनाद बशीर की मौत खबर झकझोर देने वाली है। शामनाद के बारे में सबसे प्रभावशाली पहलू यह था कि वह विद्वान होने के साथ साथ सकारात्मक परिणामों के लिए ज्ञान को एक्शन में बदलना चाहते थे। यह 'समाज को वापस देने' का उनका तरीका था।

    एम.ए.राशिद, सहसंस्थापक लाइव लॉ

    प्रोफेसर शामनाद बशीर की मौत के बारे में चौंकाने वाली खबर मेरे पास तब आई, जब कोच्चि में ज़बर्दस्त बारिश हो रही थी। दो सप्ताह पहले हमारे बीच बातचीत हुई थी और हम जल्दी ही मिलने वाले थे। इस खबर को मानने में मुझे कुछ समय लगा, जिसने मुझे अंदर तक हिला दिया।

    वह लाइव लॉ के लिए समर्थन व प्रोत्साहन देने के एक बड़े स्रोत थे। विशेषतौर पर लाइव लॉ के शुरुआती दिनों के दौरान उन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। उन्हें कानूनी खबरों के लिए एक नया वेब पोर्टल शुरू करने का विचार रोमांचक लगा। बिना किसी हिचकिचाहट के वे लाइव लॉ संपादकीय सलाहकार और परामर्शी बोर्ड का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गए और उन्होंने इसके विकास के प्रत्येक चरण में गहरी दिलचस्पी ली। उनकी सकारत्मक ऊर्जा और आशावादी दृष्टिकोण ने लाइव लॉ को अनिश्चितता और संदेह के अपने चरण को खत्म करने में मदद की है।

    शामनाद के बारे में सबसे प्रभावशाली पहलू यह था कि वह विद्वान होने के साथ साथ सकारात्मक परिणामों के लिए ज्ञान को एक्शन में बदलना चाहते थे। यह 'समाज को वापस देने' का उनका तरीका था। यह 'समाज को वापस देने' का उनका तरीका था। एक 'विद्वान-कार्यकर्ता' उनके लिए एक उपयुक्त शीर्षक होगा।

    नोवार्टिस केस में उनका महत्वपूर्ण हस्तक्षेप, जिसने यह सुनिश्चित किया कि भारत में दवा की कीमतें आम लोगों के लिए सस्ती या वहने करने योग्य रहेंगी। ऐसा एक उदाहरण है। कानूनी मुद्दों की श्रृंखला के विश्लेक्षण में उनका योगदान, जिसमें औषधीय पेटेंट निषेधाज्ञा और प्रवर्तन आदि भी शामिल हैं। इसके लिए उन्हें वर्ष 2014 इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

    उनके पास यथास्थिति को चुनौती देने और नेकी के लिए सिस्टम को हिला देने का जज्बा था। एक सच्चे मानवतावादी होने के नाते वह शक्ति और विशेषाधिकारों के उपासक नहीं थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि सत्ता समाज की सेवा करने के लिए होनी चाहिए। इसलिए जब भी इसका दुरूपयोग होता था, उन्हें सच बोलने कापछतावा नहीं होता था।

    नेशनल लॉ स्कूलों के अभिजात्य स्वभाव ने उन्हें हमेशा परेशान किया, इसलिए उन्होंने अपने संसाधनों का उपयोग आईडीआईए परियोजना (कानूनी शिक्षा में पहुंच बढ़ाकर विविधता को बढ़ाना) शुरू करने के लिए किया। इससे एनएलएस तक उनकी पहुंच बन पाई या उन लोगों के लिए सुलभ बनाया, जो समाज के अधिकारहीन तबके से संबंधित है।

    उन्होंने विधि प्रवेश परीक्षाओं के संचालन की कमियों के बारे में कोर्ट के समक्ष बार काउंसिल ऑफ इंडिया और सीएलएटी से सवाल किए। हाल ही में उन्होंने इस विचार को प्रस्तुत किया था कि बीसीआई को शिक्षाविदों को अदालत में बहस करने की अनुमति देनी चाहिए। उनका मानना है कि इससे अदालतें शिक्षाविदों के कार्यक्षेत्र की विशेषज्ञता को उपयोग करने में सक्षम होंगी ताकि समाज को बड़े स्तर पर प्रभावित करने वाले मुद्दों पर प्रभावी ढंग से निर्णय लिया जा सके।

    '' कानून का शिक्षण और कानून का अभ्यास (चाहे अदालत में या कहीं और) प्रकृति में सह क्रियाशील हो और कानून के प्रोफेसर के बारे में दोनों भूमिकाओं को निभाने के बारे में कुछ भी असंगत न हो, बल्कि मुविक्कलों के कारणो की वकालत करने और उनसे संबंधित कानून विशेषज्ञता के क्षेत्रों में परामर्श करने से कानून के प्रोफेसर अपने शिक्षा के मिशन को और अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ा पाएंगे।

    बीसीआई को शामनाद ने लिखा था, उन्होंने तक किया कि अदालतों में शैक्षणिक विशेषज्ञता लाने से कानून के अभ्यास को समृद्ध करेगी। इसी तरह व्यावहारिक वकालत विशेषज्ञता को कक्षा में लाया जाएगा। स्वतंत्र विचारों वाला और विचारों की गहराई रखने वाला व्यक्ति ही ऐसे विचारों के साथ आ सकता है, जो रूढ़ि या परंपराओं को तोड़ते हैं।

    प्रोफेसर शामनाद बशीर की दुखद मौत के साथ मैंने एक विश्वसनीय दोस्त खो दिया है और लाइव लॉ ने एक दूरदर्शी मार्गदर्शक खोया है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।

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