क्या विधेय अपराध में सरकारी गवाह बनने का पीएमएलए कार्यवाही पर कोई असर पड़ता है? दिल्ली हाईकोर्ट ने जवाब दिया

LiveLaw News Network

10 May 2024 8:54 AM GMT

  • क्या विधेय अपराध में सरकारी गवाह बनने का पीएमएलए कार्यवाही पर कोई असर पड़ता है? दिल्ली हाईकोर्ट ने जवाब दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सरकारी गवाह बन चुके आरोपी, जिसे विधेय अपराध में माफी दी जा चुकी हो, पीएमएलए के तहत उसके कहने पर दिए गए साक्ष्य का उपयोग मनी लॉन्ड्रिंग कार्यवाही के लिए नहीं किया जा सकता है। जस्टिस अमित शर्मा ने ये टिप्पणी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में संजय कंसल नामक एम आरोपी को जमानत देते हुए की। आरोपी सीबीआई एफआईआर में सरकारी गवाह बन चुका था।

    उन्होंने कहा,

    "किसी भी मामले में, चूंकि वर्तमान आवेदक को अनुसूचित/विधेय अपराधों में क्षमादान दिया गया है, इसलिए उन कार्यवाहियों में उसके कहने पर दिए गए साक्ष्य का उपयोग पीएमएलए के तहत वर्तमान कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिए नहीं किया जा सकता है।"

    अदालत ने पाया कि अनुसूचित या विधेय अपराध में भी कंसल की स्थिति एक गवाह के रूप में बनी हुई है, जो सीआरपीसी की धारा 308 के संदर्भ में उसके पूर्ण प्रकटीकरण के अधीन है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह न्यायालय मोहन लाल राठी (सुप्रा) मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के विद्वान एकल-न्यायाधीश द्वारा दिए गए फैसले से सहमत है, कि क्षमादान एक आरोपी को गवाह की श्रेणी में लाएगा, हालांकि, जैसा कि ऊपर बताया गया है, सीआरपीसी की धारा 306 और 307 के तहत निहित कुछ शर्तों के अधीन है और इसे विधेय अपराध में पूर्ण दोषमुक्ति नहीं माना जा सकता है।”

    अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में नियमित जमानत की मांग करने वाली कंसल की याचिका स्वीकार कर ली। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आरोप लगाया कि वह सह-अभियुक्त व्यक्तियों के साथ लगभग 50 करोड़ रुपये की साजिश को आगे बढ़ाने में धन के शोधन के लिए जिम्मेदार था।

    अनुसूचित अपराध में सरकारी गवाह बनने के बाद, कंसल को सीबीआई द्वारा दायर आरोपपत्र में गवाह के रूप में उद्धृत किया गया था। कंसल के वकील ने कहा कि एक बार जब कोई व्यक्ति सरकारी गवाह बन जाता है, तो उसे उक्त मामले में माफी दे दी जाती है और वह अभियोजन पक्ष का गवाह बन जाता है, जो उसे माफी देने के आदेश में उल्लिखित शर्तों के अधीन होता है।

    अदालत ने कहा कि कंसल के मामले को पीएमएलए की धारा 45 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए निपटाया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि वह प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी नहीं था और आरोपी कंपनी मेसर्स एसबीबीईएल में उसके पास कोई पद नहीं था, जो यह दर्शाता हो कि वह कंपनी के दिन-प्रतिदिन के मामलों को चलाने के लिए जिम्मेदार या प्रभारी था।

    जस्टिस शर्मा ने कहा कि क्या कंसल को आवश्यक जानकारी थी कि अपराध की आय से संबंधित जिन लेनदेन में वह शामिल था, उन्हें जमानत के चरण में नहीं माना जा सकता है। अदालत ने पाया कि कंसल पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत देने का मामला बनाने में सक्षम थे।

    यह देखते हुए कि वह 25 अगस्त, 2022 से न्यायिक हिरासत में था और लगभग एक साल और नौ महीने तक जेल में रहा था, अदालत ने कहा, “यह भी विवादित नहीं है कि आवेदक को विधेय/अनुसूचित अपराध में जमानत दे दी गई है, इस तथ्य के अलावा कि वह अब सरकारी गवाह बन गया है। यह रिकॉर्ड की बात है कि आवेदक वर्तमान ईसीआईआर में गिरफ्तार होने तक जांच अधिकारी के निर्देशानुसार जांच में शामिल हुआ था।''

    केस टाइटलः संजय कंसल बनाम सहायक निदेशक, प्रवर्तन निदेशालय

    ऑर्डर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story