[UAPA] आतंकवादियों को पनाह देना उन्हें गोपनीयता का पर्दा प्रदान करता है, नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले सुरक्षित पनाहगाह बनाता है: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
20 Feb 2025 8:25 AM
![[UAPA] आतंकवादियों को पनाह देना उन्हें गोपनीयता का पर्दा प्रदान करता है, नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले सुरक्षित पनाहगाह बनाता है: दिल्ली हाईकोर्ट [UAPA] आतंकवादियों को पनाह देना उन्हें गोपनीयता का पर्दा प्रदान करता है, नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले सुरक्षित पनाहगाह बनाता है: दिल्ली हाईकोर्ट](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2024/11/18/750x450_571850-750x450443089-uapa-and-delhi-hc.jpg)
इस बात पर जोर देते हुए कि आतंकवादियों को पनाह देना UAPA के तहत गंभीर अपराध है, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह का कृत्य आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बनाता है और उन्हें गोपनीयता का पर्दा प्रदान करता है, जो नागरिकों के जीवन और सुरक्षा को खतरे में डालता है।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि आतंकवादियों को पनाह देने से आम तौर पर समाज में अशांति फैलती है। अगर इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो इस तरह की गैरकानूनी गतिविधि को वैधता मिल जाती है।
न्यायालय ने कहा कि आतंकवादी संगठनों से जुड़े लोगों को भोजन और आश्रय के साथ रहने के लिए सुरक्षित स्थान प्रदान करना लंबे समय तक आतंकवाद को बढ़ावा देता है।
खंडपीठ ने कहा,
"आतंकवादियों को पनाह देना एक गंभीर अपराध नहीं माना जा सकता। खासकर तब जब यह दावा किया जाता है कि ऐसा दबाव या जबरदस्ती के तहत किया गया। हालांकि, गहन विश्लेषण से पता चलेगा कि शरण देना कोई निर्दोष कृत्य नहीं है।”
इसने आगे कहा,
“यह ऐसा कृत्य या कृत्यों की श्रृंखला है, जो आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बनाने की ओर ले जाती है, जिससे नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा खतरे में पड़ जाती है। आतंकवादियों को शरण देने वाले लोग लश्कर जैसे संगठनों को समर्थन देते हैं और उन्हें गोपनीयता का पर्दा प्रदान करते हैं, जिससे वे अस्थायी रूप से समाज में एकीकृत हो जाते हैं ताकि वे सही समय पर हमला कर सकें।”
न्यायालय ने UAPA मामले में आरोपी जहूर अहमद पीर की अपील खारिज की, जिसमें उसकी जमानत याचिका खारिज करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई।
यह आरोप लगाया गया कि सितंबर 2017 में गिरफ्तार किए गए पीर का सह-आरोपी बहादुर अली के साथ सीधा संबंध था और उसने गांव याहामा (जम्मू-कश्मीर) में रहने के दौरान उसे भोजन और आश्रय प्रदान किया।
जमानत याचिका खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि अली को UAPA विस्फोटक अधिनियम, शस्त्र अधिनियम, विदेशी अधिनियम और वायरलेस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया।
इसने आगे कहा कि अली ने बयान दिया कि उसे पीर और अन्य सह-आरोपी व्यक्ति ने खाना दिया। न्यायालय ने अली के इस बयान पर भी गौर किया कि वह एक आतंकवादी और लश्कर-ए-तैयबा का सदस्य था और लश्कर-ए-तैयबा की गतिविधियों को अंजाम देने के लिए भारत में घुसपैठ की थी।
खंडपीठ ने कहा कि यह तथ्य कि पीर द्वारा अली को दिया गया आश्रय दबाव में था या स्वैच्छिक था, यह परीक्षण का विषय है लेकिन उक्त बयान ने पीर द्वारा अली को भोजन और आश्रय प्रदान करने के संबंध में NIA द्वारा रिकॉर्ड पर रखे गए साक्ष्य की पुष्टि की।
न्यायालय ने कहा,
"इस न्यायालय की सुविचारित राय में सह-आरोपी नंबर 1 एक पाकिस्तानी नागरिक था और आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने के लिए हथियारों और गोला-बारूद के साथ भारत में घुसपैठ की थी। इस स्तर पर साक्ष्य के अनुसार वर्तमान अपीलकर्ता ने उसे शरण देना जारी रखा।"
जमानत देने से इनकार करते हुए न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को रोजाना सुनवाई करने और 4 महीने के भीतर इसे पूरा करने का निर्देश दिया।
इसमें यह भी कहा गया कि अगर 6 महीने के भीतर सुनवाई पूरी नहीं होती है तो पीर को ट्रायल कोर्ट के समक्ष जमानत के लिए एक नया आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता होगी, जिस पर कानून के अनुसार निर्णय लिया जाएगा।
केस टाइटल: जहूर अहमद पीर बनाम एनआईए