ट्रांज़िट बेल केवल अल्पकालिक सुरक्षा, सक्षम अदालत के अधिकार क्षेत्र में मामला पहुंचते ही प्रभाव समाप्त: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

8 Nov 2025 1:46 PM IST

  • ट्रांज़िट बेल केवल अल्पकालिक सुरक्षा, सक्षम अदालत के अधिकार क्षेत्र में मामला पहुंचते ही प्रभाव समाप्त: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रांज़िट बेल एक सीमित अवधि के लिए दी जाने वाली अस्थायी राहत है, जिसका प्रभाव उस समय समाप्त हो जाता है जब सक्षम अदालत के अधिकार क्षेत्र में मामला आ जाता है।

    अदालत ने स्पष्ट किया कि यह राहत केवल आरोपी को तुरंत गिरफ्तारी से बचाने के लिए होती है, न कि उसे स्थायी सुरक्षा प्रदान करने या आरोपों के गुण-दोष पर निर्णय देने के लिए।

    जस्टिस स्वरना कांत शर्मा की एकल पीठ ने कहा,

    “जब व्यक्ति इस अवसर का लाभ उठाकर सक्षम न्यायालय के समक्ष पेश हो जाता है तो ट्रांज़िट बेल का प्रभाव समाप्त हो जाता है। इस सुरक्षा को उसके सीमित उद्देश्य से आगे बढ़ाना न केवल ट्रांज़िट बेल की अवधारणा को कमजोर करेगा बल्कि उस अदालत के अधिकार क्षेत्र में दखल देगा जो मामले का निपटारा करने की अधिकारी है।”

    अदालत ने यह भी कहा कि ट्रांज़िट बेल का उद्देश्य बहुत सीमित होता है यह केवल आरोपी को इतने समय के लिए राहत देने के लिए होती है कि वह उचित अधिकार क्षेत्र वाली अदालत में अग्रिम या नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सके।

    जस्टिस शर्मा ने यह टिप्पणियां एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें आरोपी ने दिल्ली पुलिस को मकोका (MCOCA) मामले में उसके खिलाफ किसी भी तरह की दमनात्मक कार्रवाई करने से रोकने की मांग की थी।

    यह मामला नांगलोई आउटर थाने में दर्ज FIR से संबंधित था, जिसमें एक सफेद किया सेल्टोस कार की चोरी की जांच के दौरान एक संगठित वाहन चोरी गिरोह का पर्दाफाश हुआ था।

    यह गिरोह कथित रूप से दुबई में बैठे व्यक्तियों द्वारा संचालित किया जा रहा था, जो देशभर में वाहनों की चोरी और उनके दस्तावेज़ों की जालसाजी में लिप्त थे।

    याचिकाकर्ता कोलकाता का एक सेकंड-हैंड वाहन व्यापारी है, जिस पर चोरी के वाहनों को जाली दस्तावेज़ों के साथ बेचने का आरोप है। FIR के अनुसार जांच में याचिकाकर्ता सह-आरोपियों और खरीदारों के बीच बड़े वित्तीय लेनदेन का पता चला।

    आरोपी को 31 जनवरी को गैर-जमानती वारंट के आधार पर गिरफ्तार किया गया लेकिन उसे दिल्ली में पेश होने के लिए अस्थायी ट्रांज़िट अंतरिम बेल दी गई थी।

    इसके बावजूद उसने सेशन कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं किया और बार-बार ट्रांज़िट बेल की अवधि बढ़ाने की मांग की।

    याचिकाकर्ता का कहना था कि वह कानून का पालन करने वाला नागरिक है और स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है जबकि अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि वह न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग कर आत्मसमर्पण से बचने की कोशिश कर रहा है।

    हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोपी का आचरण न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग दर्शाता है।

    अदालत ने कहा,

    “जब यह स्पष्ट कर दिया गया कि कोई स्थगन आदेश या सुरक्षा उसके पक्ष में लागू नहीं है, फिर भी याचिकाकर्ता ने आत्मसमर्पण नहीं किया। यह न केवल कानून के प्रति उदासीनता है बल्कि एक योजनाबद्ध प्रयास है न्यायिक प्रक्रिया से बचने का।”

    अदालत ने अंत में कहा कि कोई भी ऐसा आधार नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि आरोपी के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता या उसकी गिरफ्तारी अनुचित होगी। इसलिए उसे किसी भी प्रकार की संरक्षण राहत नहीं दी जा सकती।

    दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय ट्रांज़िट बेल की प्रकृति और सीमाओं पर स्पष्टता प्रदान करता है, यह रेखांकित करते हुए कि ऐसी राहत केवल अस्थायी होती है और इसे नियमित या अग्रिम जमानत के समान नहीं माना जा सकता।

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