शिकायतकर्ता को डराने के इरादे के बिना केवल धमकी देना आपराधिक धमकी नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

4 Feb 2025 11:50 AM IST

  • शिकायतकर्ता को डराने के इरादे के बिना केवल धमकी देना आपराधिक धमकी नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता को डराने के इरादे के बिना आरोपी द्वारा केवल धमकी देना आपराधिक धमकी का अपराध नहीं है।

    जस्टिस अमित महाजन ने कहा,

    “IPC की धारा 506 का केवल अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आपराधिक धमकी का अपराध बनने से पहले यह स्थापित किया जाना चाहिए कि आरोपी का इरादा शिकायतकर्ता को डराने का था। शिकायतकर्ता को डराने के इरादे के बिना आरोपी द्वारा दी गई केवल धमकी आपराधिक धमकी का अपराध नहीं होगी।”

    न्यायालय ने शिकायतकर्ता द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें उसके द्वारा दर्ज बलात्कार के मामले में चार आरोपियों को बरी करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई। 2019 में भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 और 506 के तहत FIR दर्ज की गई।

    महिला ने आरोप लगाया कि मुख्य आरोपी ने शादी का झांसा देकर 13-14 साल तक उसका शारीरिक शोषण किया। मुख्य आरोपी के भाई और मां के खिलाफ भी FIR दर्ज की गई। आरोप है कि मां ने अपने बेटे को सुधारने के बजाय शिकायतकर्ता को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।

    आक्षेपित आदेश के तहत ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा उनके खिलाफ एकत्र किए गए सबूत प्रथम दृष्टया मामला बनाने के लिए पर्याप्त नहीं थे।

    याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि आक्षेपित आदेश स्थापित कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप है और इसकी पुष्टि की आवश्यकता है।

    उन्होंने नोट किया कि जांच अधिकारी ने शिकायतकर्ता के इस दावे की पुष्टि करने के लिए कोई दस्तावेजी या मेडिकल एविडेन्स इकठ्ठा नहीं किया कि उसके पिता को कथित धमकियों के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया।

    न्यायालय ने कहा,

    "प्रतिवादी नंबर 2 से 5 के खिलाफ याचिकाकर्ता के आरोपों के बारे में ASJ की टिप्पणियां अच्छी तरह से स्थापित हैं। रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य सुविधा, साजिश या आपराधिक धमकी के दावों को पुष्ट नहीं करते हैं।"

    जस्टिस महाजन ने निष्कर्ष निकाला कि शिकायतकर्ता की कहानी में ऐसी कमियां थीं कि इससे आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ गंभीर संदेह पैदा नहीं हुआ। रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री कथित अपराध के होने की ओर इशारा नहीं करती।

    न्यायालय ने कहा,

    "जैसा कि ऊपर चर्चा की गई, ट्रायल कोर्ट ने स्पष्ट रूप से अपने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल किया। प्रतिवादी नंबर 2 - 5 को उनके खिलाफ गंभीर संदेह की अनुपस्थिति के मद्देनजर कथित अपराधों से मुक्त करने से पहले तथ्यों की समग्रता पर विचार किया। उपर्युक्त तथ्यों पर विचार करते हुए आरोपित आदेश में किसी भी हस्तक्षेप को वारंट करने का कोई आधार नहीं बनता है।”

    केस टाइटल: एक्स बनाम राज्य और अन्य

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