आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने का मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने NSCN(IM) नेता अलेमला जमीर की दूसरी जमानत याचिका खारिज की

Amir Ahmad

14 Jan 2025 10:41 AM

  • आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने का मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने NSCN(IM) नेता अलेमला जमीर की दूसरी जमानत याचिका खारिज की

    दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जांचे गए आतंकवाद के लिए धन मुहैया कराने के मामले में नगा विद्रोही समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-इसाक मुइवा (NSCN (IM)) के नेता अलेमला जमीर की दूसरी नियमित जमानत याचिका खारिज की।

    जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने निचली अदालत द्वारा जमानत खारिज किए जाने को चुनौती देने वाली अपील में कोई दम नहीं पाया।

    न्यायालय ने कहा,

    "हमें लगता है कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप ए2 और ए3 (उसके बहनोई और पति) के साथ मिलकर दीमापुर में व्यापारियों से धन जुटाने और इकट्ठा करने के लिए आपराधिक साजिश में शामिल होने के हैं। इसके लिए उसने NSCN (IM) के लिए जबरन वसूली के लिए एक व्यवस्थित तंत्र बनाया था, जिसके लिए उसने 20 बैंक खाते खोले थे, जिनमें से कुछ फर्जी नामों से भी थे।"

    इसमें कहा गया कि जेमी, अन्य आरोपियों के साथ कथित आतंकवादी गिरोह NSCN (IM) के संचालन को अंजाम देने के लिए धन उगाही के संबंध में कोई सबूत नहीं छोड़ने के प्रयास में गुप्त तरीके से काम कर रही थी।

    यह देखते हुए कि जमीर के आवास से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ-साथ हथियार और गोला-बारूद के रूप में अपराध साबित करने वाले सबूत भी बरामद किए गए।

    बेंच ने कहा,

    "इस स्तर पर हम अपीलकर्ता के आवास से की गई कथित बरामदगी को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं, जो उन अपराधों में उसकी संलिप्तता की ओर इशारा करती है, जिसके तहत उस पर आरोप लगाए गए।"

    यह NIA का मामला था कि जमीर को दिल्ली से दीमापुर जाते समय IGIA हवाई अड्डे पर CISF ने इस आधार पर पकड़ा था कि उसके पास 72 लाख रुपये की नकदी थी।

    वह अपनी नकदी के स्रोत की व्याख्या नहीं कर सकी, इसलिए NIA ने आरोप लगाया कि जानकारी आयकर विभाग को दे दी गई, जिसके बाद उससे आयकर अधिनियम की धारा 131 (1ए) के तहत पूछताछ की गई।

    NIA के अनुसार यह नकदी नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-इसाक मुइवा गुट की थी। इसे एक सहयोगी ने उसे नागालैंड के दीमापुर ले जाने के लिए सौंपा था।

    इसके बाद UAPA Act की धारा 10, 13, 17, 18, 20 और 21 के तहत NSCN-IM आतंकवादी संगठन और उनकी गतिविधियों को सहायता और बढ़ावा देने के लिए FIR दर्ज की गई।

    पीठ ने कहा कि जमीर पर आरोप है कि वह एक बेहद प्रभावशाली व्यक्ति है, जो NSCN (IM) में उच्च पद पर है और अपने सहयोगियों की सहायता से गवाहों को प्रभावित करने और सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की स्थिति में थी उसके खिलाफ लगाए गए अपराधों की गंभीरता को देखते हुए इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

    न्यायालय ने कहा कि NIA Act एक विशेष कानून है, जो भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता को प्रभावित करने वाले अपराधों की जांच और अभियोजन के लिए है। साथ ही कानून के उक्त अंश में उल्लिखित अन्य बातों के लिए भी।

    इसने कहा कि ऐसे मामलों पर निर्णय लेने के लिए अधिनियम के तहत विशेष अदालतें गठित की गई। यह भी अनिवार्य है कि विशेष अदालत का दैनिक आधार पर आयोजन किया जाए।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि NIA के तहत मामलों को अन्य मामलों की सुनवाई पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो बाद के मामलों को स्थगित रखा जाना चाहिए।

    न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,

    “उपर्युक्त के प्रकाश में और अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपों की प्रकृति और रिकॉर्ड पर लाए गए साक्ष्यों पर विचार करते हुए इस तथ्य के साथ कि अपीलकर्ता का पति फरार है और सह-आरोपी मासासोसांग एओ की जमानत भी इस न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष असफल रूप से चुनौती दी गई थी, हमें वर्तमान अपील में कोई योग्यता नहीं दिखती है।”

    टाइटल: अलेमला जमीर बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी

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