जेंडर निर्धारण महिलाओं के जीवन के मूल्य को कम करता है: दिल्ली हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज की
Amir Ahmad
28 Oct 2025 12:25 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में यह टिप्पणी की कि जेंडर निर्धारण की प्रथा महिला जीवन के मूल्य को कम करती है और एक भेदभाव-मुक्त समाज की उम्मीद पर प्रहार करती है।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने यह अवलोकन करते हुए व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की, जिस पर गैरकानूनी लिंग निर्धारण करने और एक महिला की मौत का कारण बनने का आरोप है।
समाज पर गंभीर प्रभाव
जस्टिस शर्मा ने कहा कि यह प्रथा ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देती है, जिसमें लड़कियों को समुदाय के समान सदस्य के बजाय बोझ के रूप में देखा जाता है। यह गर्भवती महिलाओं को असुरक्षित चिकित्सा प्रक्रियाओं के संपर्क में लाकर उनके जीवन को खतरे में डालती है।
कोर्ट ने कड़े शब्दों में कहा,
"तत्काल परिवार से परे ऐसे कार्य सामाजिक विवेक को नष्ट करते हैं और भेदभाव से मुक्त समाज की आशा पर प्रहार करते हैं। यदि ऐसी प्रथाओं को जारी रहने दिया जाता है तो यह संदेश जाएगा कि मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं है। इसलिए यह आवश्यक है कि कानून निर्णायक रूप से हस्तक्षेप करे और यह स्पष्ट संदेश दे कि हर जीवन जेंडर की परवाह किए बिना, संरक्षण और गरिमा का हकदार है।"
मामले की पृष्ठभूमि और कोर्ट का निष्कर्ष
आरोपी पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धाराओं 85, 316(2), 89, और 3(5) के तहत मामला दर्ज किया गया। उस पर महिला की तीसरी गर्भावस्था में अवैध रूप से अल्ट्रासाउंड करने का आरोप है, जिसमें भ्रूण का लिंग मादा बताया गया। इसके बाद हुए मेडिकल ऑपरेशन के कारण महिला की मृत्यु हो गई। यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी PNDT Act का उल्लंघन करते हुए अवैध जेंडर निर्धारण को सुगम बनाने वाले एक संगठित गिरोह का हिस्सा था।
अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए जस्टिस शर्मा ने कहा कि दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार आरोपी और उसका बेटा भ्रूण का जेंडर निर्धारित करने और समाज के हितों के लिए अत्यधिक हानिकारक अभ्यास को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से सक्रिय रूप से अवैध अल्ट्रासाउंड कर रहे हैं। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोपी और उसका बेटा जो पेशे से मोटर मैकेनिक है, गर्भवती महिलाओं का अवैध अल्ट्रासाउंड करने का एक साइड बिजनेस चला रहे हैं।
जस्टिस शर्मा ने जोर दिया कि ऐसे मामलों में कोई भी नरमी या उदारता दूसरों को इसी तरह के कार्य करने के लिए उत्साहित कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि अपराध में प्रयुक्त उपकरणों की बरामदगी, आरोपी से हिरासत में पूछताछ और इसमें शामिल अन्य व्यक्तियों की पहचान पुनरावृत्ति को रोकने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
कोर्ट ने अंत में कहा कि वर्तमान मामले में न्याय सुनिश्चित करने के साथ-साथ समाज के व्यापक हितों की रक्षा और हर अजन्मी कन्या शिशु के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कड़ी कार्रवाई आवश्यक है। यह देखते हुए कि आवेदक जांच में शामिल नहीं हुआ, कोर्ट ने उसकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।

