फॉरेंसिक प्रगति से दशकों बाद भी खुल सकते हैं सच के द्वार : दिल्ली हाईकोर्ट 2017 की संदिग्ध मौत की जांच CBI को सौंपने का आदेश

Amir Ahmad

28 Nov 2025 12:20 PM IST

  • फॉरेंसिक प्रगति से दशकों बाद भी खुल सकते हैं सच के द्वार : दिल्ली हाईकोर्ट 2017 की संदिग्ध मौत की जांच CBI को सौंपने का आदेश

    दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 वर्षीय होटल मैनेजर की वर्ष 2017 में हुई संदिग्ध मौत की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपने का आदेश दिया। अदालत ने दिल्ली पुलिस द्वारा की गई जांच पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा कि फॉरेंसिक तकनीक में निरंतर प्रगति के कारण कई पुराने मामलों में भी निर्णायक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, इसलिए सत्य की खोज कभी देर से नहीं होती।

    जस्टिस तुषार राव गडेला ने अपने आदेश में कहा कि दुनिया में कई ऐसे उदाहरण हैं, जहां अपराधियों को दशकों बाद आधुनिक वैज्ञानिक जांच के आधार पर पकड़ा गया। उन्होंने अमेरिका के चर्चित गोल्डन स्टेट किलर और ग्रीन रिवर किलर के मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्नत DNA तकनीक ने वर्षों पुराने अपराधों को सुलझाया जिससे यह सिद्ध होता है कि न्याय की राह भले ही लंबी हो परंतु सत्य अंततः सामने आता है।

    यह याचिका मृतक अरनव दुग्गल की मां अनु दुग्गल ने दायर की थी, जो उस समय आईटीसी ग्रैंड भारत में प्रबंधक के पद पर कार्यरत थे। जून 2017 में मेघा तिवारी के घर में मृत पाए गए। पुलिस ने इसे आत्महत्या बताते हुए प्रारंभिक जांच वहीं रोक दी थी जबकि परिजनों का आरोप था कि कमरे को सुसाइड जैसा दर्शाने के लिए सजाया गया और पुलिस जांच आगे बढ़ाने के प्रति उदासीन दिखी।

    अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी अपराध शाखा और SIT सभी ने लगभग एक जैसी रिपोर्ट प्रस्तुत कीं, जिनमें गंभीर कमियां थीं। अदालत ने इस जांच को एकतरफा सतही और केवल आत्महत्या की थ्योरी पर आधारित बताते हुए कहा कि जांच में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का स्पष्ट अभाव था।

    हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि घटना स्थल पर मौजूद एकमात्र अन्य व्यक्ति का मोबाइल फोन तत्काल जब्त न करना गंभीर लापरवाही है। अदालत ने टिप्पणी की कि फोन को सुरक्षित न रखने से महत्वपूर्ण डिजिटल साक्ष्य जैसे संदेश और कॉल रिकॉर्ड मिटाए जाने की आशंका बढ़ जाती है, जो इतनी गंभीर परिस्थिति में अस्वीकार्य है।

    अदालत ने कहा कि मृत्यु का कारण भले ही लटकर दम घुटना प्रतीत होता हो लेकिन आत्महत्या क्यों की? इसका उत्तर देने में पुलिस पूरी तरह विफल रही। रिकॉर्ड में ऐसा कोई संकेत नहीं था कि मृतक अवसादग्रस्त थे या आत्महत्या की प्रवृत्ति रखते थे।

    अदालत ने मामले की पूरी जांच तथा दिल्ली पुलिस की भूमिका की अलग से पड़ताल करने का निर्देश CBI को दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मामले में हुई चूक और लापरवाही की जिम्मेदारी तय हो सके।

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