क्या IPC की धारा 498A समलैंगिक संबंधों पर लागू होती है? दिल्ली हाईकोर्ट करेगा विचार

Amir Ahmad

24 Oct 2025 1:11 PM IST

  • क्या IPC की धारा 498A समलैंगिक संबंधों पर लागू होती है? दिल्ली हाईकोर्ट करेगा विचार

    दिल्ली हाईकोर्ट एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल पर विचार करने जा रहा है कि क्या भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A (दहेज उत्पीड़न) के तहत दंडनीय अपराध समलैंगिक जोड़ों या संबंधों पर लागू होता है।

    जस्टिस संजीव नरूला ने इस संबंध में सिम्मी पटवा द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ता का दावा है कि यह प्रावधान समलैंगिक जोड़ों पर लागू नहीं हो सकता।

    याचिकाकर्ता का तर्क: 'पत्नी' और 'पति' की आवश्यकता

    पटवा ने तर्क दिया कि IPC की धारा 498A को लागू करने के लिए प्राथमिक आवश्यकता यह है कि शिकायतकर्ता एक पत्नी होनी चाहिए और आरोपी एक पति होना चाहिए। याचिका में कहा गया कि इस अपराध को आकर्षित करने के लिए व्यक्तियों का विषमलैंगिक (heterosexual) संबंध में होना अनिवार्य है।

    पटवा ने अपनी पूर्व पार्टनर द्वारा उनके खिलाफ IPC की धारा 498A के साथ-साथ IPC की धारा 406 (विश्वास का आपराधिक हनन), IPC की धारा 506 (आपराधिक धमकी) और धारा 34 (सामान्य आशय) के तहत दर्ज की गई FIR रद्द करने की मांग की।

    मामले की पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता पटवा जैविक रूप से महिला हैं। उन्होंने जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित होने का दावा किया। याचिका के अनुसार उन्होंने अपनी पूर्व पार्टनर के जोर देने पर एक प्रतीकात्मक विवाह के लिए सहमति दी थी और उसके बाद वे साथ रहने लगे थे।

    पटवा का आरोप है कि उनकी पार्टनर ने उन्हें गंभीर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार का शिकार बनाया, जिसमें सर्जरी के लिए ब्लैकमेल करना भी शामिल है। बाद में महिला ने पटवा और उनके परिवार के खिलाफ आपराधिक शिकायतें दर्ज करने की धमकी दी।

    याचिका में कहा गया कि यह संबंध कानून द्वारा निर्धारित निषिद्ध संबंध की परिभाषा के अंतर्गत आता है। पटवा ने बताया कि जब उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 11 के तहत फैमिली कोर्ट में विवाह शून्यता (Nullity) याचिका दायर की तो उनकी पूर्व पार्टनर ने बदले में उनके खिलाफ कथित तौर पर झूठी और तुच्छ शिकायत दर्ज करा दी।

    याचिका में एम्स (AIIMS) से प्राप्त प्रमाण पत्र का भी उल्लेख किया गया, जो पुष्टि करता है कि पटवा आनुवंशिक रूप से महिला हैं।

    कानूनी आधार और कोर्ट की कार्रवाई

    पटवा की याचिका में तर्क दिया गया कि संसद का इरादा कभी भी समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने का नहीं रहा है। चूंकि इस मामले में याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता दोनों महिला हैं, इसलिए FIR को केवल इसी आधार पर तुरंत रद्द कर देना चाहिए।

    याचिका यह भी कहती है कि इस मामले में कोई रजिस्टर्ड विवाह नहीं है, इसलिए यह नागरिक संघ कानून की नजर में अमान्य है और रजिस्टर्ड विवाह के बिना रहने वाले एक ही जेंडर के दो व्यक्तियों के बीच कानून की नजर में कोई दांपत्य अधिकार उत्पन्न नहीं होते हैं।

    हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस और शिकायतकर्ता को याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी।

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