POCSO मामलों में बिना ठोस या न्यायोचित कारण के गवाह को वापस नहीं बुलाया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
21 Aug 2025 4:37 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि POCSO मामले में किसी गवाह को वापस नहीं बुलाया जा सकता यदि आवेदन में कोई ठोस या न्यायोचित कारण नहीं बताया गया हो।
जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने कहा,
"किसी गवाह को वापस बुलाने में, विशेष रूप से POCSO Act के तहत उन मामलों में जिनकी सुनवाई शीघ्रता से की जानी आवश्यक है, ऐसे आवेदन दायर करके देरी नहीं की जा सकती, जिनमें ऐसे गवाहों को वापस बुलाने का कोई ठोस या न्यायोचित कारण नहीं बताया गया हो।"
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 348 का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि किसी गवाह को वापस बुलाने की शक्ति का प्रयोग वैध और विधिसम्मत उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए, न कि अभियोजन या बचाव पक्ष में कमियों को पूरा करने या मुकदमे की कार्यवाही को अनावश्यक रूप से लंबा खींचने के साधन के रूप में।
इसमें आगे कहा गया,
“यह प्रावधान न्यायालय को यह सुनिश्चित करने का विवेकाधिकार देता है कि सच्चाई रिकॉर्ड में लाई जाए और न्याय सुनिश्चित हो, लेकिन इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक और संयम से किया जाना चाहिए ताकि देरी, तुच्छ आवेदनों या किसी भी प्रकार के दुरुपयोग को रोका जा सके।"
न्यायालय ने POCSO मामले में अभियुक्त द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें उसने अभियोजन पक्ष के एक गवाह जो पेशे से डॉक्टर है, उसको वापस बुलाने के उसके आवेदन को खारिज करने वाले निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी।
उस व्यक्ति पर एक 13 वर्षीय लड़की का बार-बार यौन उत्पीड़न करने का आरोप है, जिससे वह गर्भवती हो गई।
संबंधित डॉक्टर ने पीड़िता का गर्भपात कराया, भ्रूण के सैंपल सील किए और उन्हें संबंधित जांच अधिकारी को सौंप दिया।
अभियुक्त ने गवाह को वापस बुलाने की मांग करते हुए कहा कि कुछ स्पष्टीकरण की आवश्यकता है, जिसके लिए गवाहों से क्रॉस एग्जामिनेशन की मांग की गई।
याचिका खारिज करते हुए जस्टिस शर्मा ने कहा कि न तो याचिका में और न ही बहस के दौरान इस तरह के स्पष्टीकरण की आवश्यकता वाले कारणों का उल्लेख किया गया।
न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त द्वारा कोई कारण नहीं बताया गया, सिवाय एक स्पष्ट कथन के कि कुछ विसंगतियों के संबंध में कुछ स्पष्टीकरण दिए जाने आवश्यक हैं।
न्यायालय ने कहा,
"विसंगतियों की प्रकृति या मामले के न्यायसंगत निर्णय के लिए उनकी प्रासंगिकता को निर्दिष्ट किए बिना ऐसा अस्पष्ट दावा, BNSS की धारा 348 के तहत आवेदन को स्वीकार करने का ठोस आधार नहीं बन सकता, क्योंकि इस प्रावधान का विशिष्ट उद्देश्य न्यायालय को उन गवाहों को बुलाने या वापस बुलाने में सक्षम बनाना है, जिनके साक्ष्य मामले में न्यायसंगत निर्णय पर पहुंचने के लिए आवश्यक प्रतीत होते हैं।"
न्यायालय ने आगे कहा कि निचली अदालत ने सही ही कहा कि गवाह को वापस बुलाने का आवेदन अस्पष्ट था, उसमें कोई विवरण नहीं था। इसका उद्देश्य उन गवाहों को वापस बुलाना था, जिनसे पहले ही लंबी जिरह हो चुकी थी बिना किसी ठोस आधार का खुलासा किए।
न्यायालय ने कहा,
"इस तरह की कार्रवाई की अनुमति देना न केवल बचाव पक्ष को कमियों को पूरा करने की अनुमति देना होगा, बल्कि POCSO Act के तहत मुकदमों के शीघ्र निपटारे के उद्देश्य को भी विफल कर देगा।"
केस टाइटल: मोहसिन खान बनाम दिल्ली राज्य (एसएचओ पीएस निहाल विहार के माध्यम

