पूर्व अवैध गिरफ्तारी' की प्रक्रियात्मक त्रुटियां सुधारे जाने के बाद दोबारा गिरफ्तारी पर कोई रोक नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
16 July 2025 12:20 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि यदि किसी आरोपी की पहले की गिरफ्तारी में प्रक्रियात्मक त्रुटियां थीं और उन्हें सुधार दिया गया तो उस आरोपी की दोबारा गिरफ्तारी पर न तो कोई वैधानिक और न ही कोई न्यायिक रोक है।
जस्टिस स्वरना कांत शर्मा ने कहा कि जांच एजेंसी की ओर से की गई कोई भी त्रुटि चाहे वह जानबूझकर हो या अनजाने में, आरोपी को भविष्य में उसी मामले में गिरफ्तारी से पूर्ण सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती।
न्यायालय ने कहा,
“अगर ऐसा माना जाए कि एक बार गिरफ्तारी में प्रक्रियात्मक त्रुटि हो जाए तो आरोपी को हमेशा के लिए गिरफ्तारी से छूट मिल जाएगी तो यह आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए एक खतरनाक मिसाल बन जाएगी। इसका मतलब यह होगा कि एक गंभीर अपराधी मात्र एक तकनीकी गलती की वजह से कानून की प्रक्रिया से बच सकता है, भले ही उसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हों।”
कोर्ट ने आगे कहा,
“क्या अधिकारी द्वारा की गई प्रक्रियात्मक गलती, चाहे वह कितनी भी गंभीर क्यों न हो, आरोपी को हमेशा के लिए गिरफ्तारी से बचा सकती है। भले ही वह गलती बाद में सुधार दी गई हो? इस न्यायालय का उत्तर है: नहीं।”
यह टिप्पणी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा Arms Act के मामले में दर्ज FIR के तहत विभिन्न आरोपियों की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए दी गई।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि उनकी पहली गिरफ्तारी को ट्रायल कोर्ट ने अवैध माना, क्योंकि गिरफ्तारी के आधार उन्हें नहीं बताए गए। इसीलिए वे तर्क दे रहे थे कि उसी मामले में की गई पुनः गिरफ्तारी भी असंवैधानिक है। भले ही नई सामग्री और प्रक्रियात्मक अनुपालन बाद में किया गया हो।
न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा,
“पुनः गिरफ्तारी के समय प्रत्येक आरोपी को स्पष्ट रूप से उनके गिरफ्तारी के आधारों से अवगत कराया गया, जिनमें उनके संगठित अपराध सिंडिकेट में भूमिका का विवरण था। अतः सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानूनी मानकों का प्राथमिक रूप से पालन किया गया। पहली गिरफ्तारी में जो प्रक्रियात्मक दोष था, वह दोबारा नहीं दोहराया गया। लिखित रूप में गिरफ्तारी के कारण बताना विधिवत रूप से किया गया।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो इस प्रकार की परिस्थितियों में पुनः गिरफ्तारी पर रोक लगाता हो।
अंततः कोर्ट ने कहा,
“यदि याचिकाकर्ताओं का यह तर्क स्वीकार कर लिया जाए तो इसका अर्थ होगा कि एक गंभीर अपराध में लिप्त आरोपी को सिर्फ इसलिए पूर्ण छूट मिल जाए कि पहली गिरफ्तारी में कोई प्रक्रियात्मक गलती हुई, जबकि बाद में उसी अपराध के लिए उसके खिलाफ पर्याप्त आपराधिक सामग्री उपलब्ध हो गई हो।”
केस टाइटल: अनवर खान @ चाचा व अन्य बनाम राज्य (NCT दिल्ली)

