यौन हिंसा मामले को मुआवजे के आधार पर रद्द करने का मतलब होगा न्याय बिकाऊ है: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

2 July 2024 12:37 PM IST

  • यौन हिंसा मामले को मुआवजे के आधार पर रद्द करने का मतलब होगा न्याय बिकाऊ है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यौन हिंसा के आरोपों से जुड़े आपराधिक मामलों को मौद्रिक भुगतान के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। इससे ऐसा करने से यह माना जाएगा कि न्याय बिकाऊ है।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने बलात्कार के आरोपी द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें महिला द्वारा दर्ज की गई एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी। उक्त याचिका इस आधार पर दायर की गई कि मामला पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया और वह 1.5 लाख रुपये में अपने दावों का निपटान करने के लिए सहमत हो गई।

    महिला जो तलाकशुदा है और उसका बच्चा भी है, उसने आरोप लगाया कि आरोपी ने खुद को तलाकशुदा के रूप में गलत तरीके से पेश किया और शादी के झूठे बहाने के तहत उसके साथ यौन हिंसा और यौन संबंध बनाए।

    अदालत ने कहा कि अत्यधिक यौन हिंसा और धमकियों के गंभीर आरोपों के बावजूद अभियोक्ता ने कहा कि एफआईआर गुस्से में दर्ज कराई गई और वह चाहती है कि उनके परिवारों के हस्तक्षेप के बाद मामला रद्द कर दिया जाए।

    इसने आगे कहा कि पक्षों द्वारा किया गया समझौता ज्ञापन पारिवारिक हस्तक्षेप के माध्यम से गलतफहमी के समाधान का परिणाम नहीं है, बल्कि 12 लाख रुपये की राशि का आदान-प्रदान है, जिसका उद्देश्य प्राथमिकी को रद्द करना है।

    वहीं अदालत ने कहा कि इस न्यायालय की राय है कि यौन हिंसा के आरोपों से जुड़े आपराधिक मामलों को मौद्रिक भुगतान के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ऐसा करने का अर्थ होगा कि न्याय बेचा जा रहा है।

    जस्टिस शर्मा ने कहा कि मामला एफआईआर रद्द करने योग्य नहीं है लेकिन यह निर्धारित करने के लिए एक परीक्षण की आवश्यकता है कि क्या आरोपी ने अपराध किया है या क्या शिकायतकर्ता ने झूठी शिकायत दर्ज कराई है और फिर 1.5 लाख रुपये स्वीकार करके मामले को निपटाने की कोशिश की है।

    अदालत ने कहा:

    "इस न्यायालय का मानना ​​है कि बिना सुनवाई के एफआईआर रद्द करने से सच्चा न्याय और न्याय के उद्देश्य पूरे नहीं होंगे, बल्कि वास्तविक अपराधी, चाहे वह आरोपी हो या शिकायतकर्ता का निष्पक्ष पता लगाने के लिए सुनवाई करके ही न्याय होगा।"

    इसमें आगे कहा गया:

    “ट्रायल कोर्ट को मामले का फैसला उसके गुण-दोष के आधार पर करना चाहिए शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों के लिए प्राकृतिक न्याय के प्रकाश में तथ्यों की जांच करनी चाहिए साथ ही समुदाय और आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए व्यापक निहितार्थों पर विचार करना चाहिए। हर निर्णय का अपना संदेश होता है, और यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को बरकरार रखा जाना चाहिए।"

    केस टाइटल- राकेश यादव और अन्य बनाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र राज्य और अन्य।

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