ऑनलाइन कक्षाओं के लिए तंत्र विकसित करें, कम उपस्थिति पर स्टूडेंट्स के प्रतिनिधित्व के लिए समय सीमा: दिल्ली यूनिवर्सिटी, BCI से हाईकोर्ट

Amir Ahmad

12 Feb 2025 6:36 AM

  • ऑनलाइन कक्षाओं के लिए तंत्र विकसित करें, कम उपस्थिति पर स्टूडेंट्स के प्रतिनिधित्व के लिए समय सीमा: दिल्ली यूनिवर्सिटी, BCI से हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से कहा कि वे स्टूडेंट्स को LLB कक्षाओं में ऑनलाइन उपस्थित होने में सक्षम बनाने के लिए तंत्र विकसित करें। विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित करें जिसमें वे कम उपस्थिति के बारे में प्रतिनिधित्व कर सकें।

    जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने कहा कि न्यायालय इस तथ्य से अवगत है कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में शारीरिक उपस्थिति का अलग महत्व है। हालांकि, प्रौद्योगिकी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का निरंतर विकास विशेषज्ञों को प्रभावी दूरस्थ शिक्षा सिस्टम विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।

    इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर हर महीने प्रत्येक स्टूडेंट की उपस्थिति की स्थिति को अधिसूचित करने का सख्त पालन होना चाहिए, जिसमें विषयवार आयोजित व्याख्यान या प्रैक्टिकल और प्रत्येक स्टूडेंट द्वारा उपस्थित संख्या को स्पष्ट रूप से दर्शाया जाना चाहिए।

    न्यायालय ने कहा,

    "तकनीकी उन्नति के युग में तथा भविष्य में स्टूडेंट्स द्वारा इस बात पर आपत्ति जताए जाने से बचने के लिए कि उन्हें समय पर सूचित नहीं किया गया, दिल्ली यूनिवर्सिटी/लॉ संकाय को संबंधित स्टूडेंट्स को SMS और व्हाट्सएप के साथ-साथ ई-मेल के माध्यम से मासिक उपस्थिति अपडेट भेजना चाहिए तथा इसका रिकॉर्ड/प्रमाण दिल्ली यूनिवर्सिटी/विधि संकाय द्वारा बनाए रखा जाना चाहिए।"

    न्यायालय ने कहा,

    "दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ संकाय के डीन, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के परामर्श से एक तंत्र विकसित कर सकते हैं, जिसके तहत स्टूडेंट एक समय-सीमा के भीतर कम उपस्थिति के बारे में अभ्यावेदन कर सकते हैं तथा यदि ऐसा अभ्यावेदन वास्तविक पाया जाता है तो अधिकारी उचित निर्णय ले सकते हैं।"

    न्यायालय ने विभिन्न स्टूडेंट्स द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए यह निर्देश पारित किए, जिसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी लॉ संकाय को उन्हें एडमिशन पत्र जारी करने तथा 07 जनवरी से आयोजित होने वाली अपनी-अपनी सेमेस्टर परीक्षाओं में बैठने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई।

    याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण क्षेत्राधिकार का हवाला देकर राहत मांगी।

    न्यायालय ने कहा कि निर्धारित शैक्षणिक अनुशासन का पालन करने में स्टूडेंट्स की तत्परता की कमी को देखते हुए इस तरह के उपाय की अनुमति देना गैर-अनुपालन को प्रभावी रूप से पुरस्कृत करके गलत मिसाल कायम करेगा।

    जस्टिस शर्मा ने कहा कि LLB व्यावसायिक पाठ्यक्रम की अखंडता को बनाए रखना और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि नियमों का पालन करने वाले स्टूडेंट्स को अनुशासन में पूर्वव्यापी छूट से कोई पूर्वाग्रह न हो।

    न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति उन स्थितियों में राहत देने का साधन नहीं है, जहां स्टूडेंट्स द्वारा स्वयं अनुशासन की स्पष्ट अवहेलना की गई हो।

    इस तरह के आह्वान की अनुमति देने से न केवल व्यावसायिक पाठ्यक्रम की अखंडता को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि उन स्टूडेंट के प्रति भी पूर्वाग्रह पैदा होगा, जो अपनी शैक्षणिक जिम्मेदारियों का पूरी लगन से पालन करते हैं।

    केस टाइटल: रोजालिनी परिदा बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी इसके कुलपति एवं अन्य के माध्यम से

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