न्यायिक संस्था का विकास हो सकता है लेकिन उसकी सत्यनिष्ठा और स्वतंत्रता सदैव बनी रहनी चाहिए: जस्टिस विभु बाखरू ने दिल्ली हाईकोर्ट से ली विदाई
Amir Ahmad
16 July 2025 5:41 PM IST

जस्टिस विभु बाखरू ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट से विदाई ली, क्योंकि उन्हें कर्नाटक हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया।
अपने विदाई भाषण में जस्टिस बाखरू ने कहा कि न्यायिक संस्थाएं समय के साथ विकसित होती हैं, लेकिन उनकी मूल आत्मा ईमानदारी, संवेदनशीलता और स्वतंत्रता सदैव अडिग रहनी चाहिए।
“संस्था विकसित होती है लेकिन इसके मूल में जो ईमानदारी, स्वतंत्रता और संवेदनशीलता है, वह स्थिर रहनी चाहिए। मैंने अपने तरीके से इन मूल्यों को जीने का प्रयास किया है। मैं इस न्यायालय से कई सबक और स्मृतियां लेकर जा रहा हूं। मुझे पता है कि मैं हमेशा सही नहीं रहा हूं लेकिन मैंने सदैव सद्भावना में संविधान की मर्यादा में निष्पक्षता से कार्य करने का प्रयास किया है। ये वस्त्र (न्यायिक वस्त्र) भारी हो सकते हैं लेकिन यह उस विश्वास का भार है, जिसे पहनने का मुझे सम्मान मिला है।”
जस्टिस बाखरू ने कहा कि उन्होंने अपनी अदालत में मानवीय संघर्ष और सहनशक्ति का पूरा विस्तार देखा है, क्योंकि हर मामला सिर्फ एक फाइल नहीं, बल्कि एक जीवन होता है अक्सर नाजुक और हमेशा सम्मान के योग्य।
जस्टिस बाखरू ने 1987 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीकॉम (ऑनर्स) किया। 1989 में उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंसी की अंतिम परीक्षा पास की और 1990 में कानून की डिग्री पूरी की।
उन्हें जुलाई, 2011 में दिल्ली हाईकोर्ट ने सीनियर एडवोकेट नामित किया था। अप्रैल, 2013 में उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट का एडिशनल जज नियुक्त किया गया। 18 मार्च, 2015 को स्थायी न्यायाधीश बना दिया गया। वह 5 दिसंबर, 2024 से 21 जनवरी, 2025 तक दिल्ली हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस भी रहे।
उन्होंने कहा,
“मैंने सीए की परीक्षा पहले ही प्रयास में पास की थी, जो तब बहुत बड़ी बात थी। मुझे लगता है कि आज भी यह एक बड़ी बात है। मज़ाक चलता है कि एयर होस्टेस कभी सीए को इमरजेंसी एग्जिट के पास नहीं बैठाती, क्योंकि अगर ज़रूरत पड़ी तो उसे पहले ही प्रयास में खोलना होगा!”
उन्होंने कहा कि जब वह एक युवा वकील के रूप में पहली बार दिल्ली हाईकोर्ट की गलियों में आए थे, तब उन्होंने कभी अपने भविष्य की कल्पना नहीं की थी।
“शुरुआत में मैंने इस कोर्ट में या किसी अन्य कोर्ट में कोई वकालत नहीं की। मुझे केवल याचिकाएं ड्राफ्ट करने के लिए ब्रीफ मिलते थे, फिर वरिष्ठ वकीलों को ड्राफ्ट प्रस्तुतियाँ देने के लिए, उसके बाद दूसरे वकील के रूप में और अंततः स्वतंत्र रूप से बहस करने का अवसर मिला। मुझे सीनियर एडवोकेट नामित होने का भी गौरव प्राप्त हुआ।”
जस्टिस बाखरू ने यह भी कहा कि भले ही कोई दो दशकों से अधिक समय तक वकालत करे। फिर भी न्यायाधीश की तरह सोचने के लिए वह पर्याप्त नहीं होता।
उन्होंने अपने सह न्यायाधीशों को याद करते हुए कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें वकील, एक न्यायाधीश और एक व्यक्ति के रूप में गढ़ा है। इसके लिए वह इस संस्था के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
“इन वर्षों में मैंने इस न्यायालय को ऊँचाई की ओर बढ़ते हुए देखा है। जटिल मामलों को संभालते हुए न्यायशास्त्र को विकसित करते हुए और समाज के बदलते स्वरूप के प्रति उत्तरदायी रहते हुए विधि के शासन को मजबूती से पकड़े रखा। दिल्ली की जनता की सेवा करना मेरे लिए सौभाग्य की बात रही।”
जस्टिस बाखरू ने अपने साथी जजों कोर्ट स्टाफ, कोर्ट मास्टर्स, विधि शोधकर्ताओं और विशेष रूप से अपनी पत्नी और बच्चों का उनके निरंतर सहयोग के लिए आभार प्रकट किया।
“दिल्ली हाईकोर्ट मेरे दिल में हमेशा एक विशेष स्थान रखेगा। इस स्थान को छोड़ना इसका एक हिस्सा अपने साथ ले जाने जैसा है। इसकी मूल्य प्रणाली, इसके लोग और इसकी विरासत। मैं कामना करता हूं कि यह न्यायालय सदैव न्याय की एक प्रकाश स्तंभ के रूप में चमकता रहे। धन्यवाद। जय हिंद।”

