CBI की 'Undesirable Contact Men' सूची में नाम शामिल किए जाने के कारण RTI Act से अपवाद नहीं माना जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
24 April 2025 8:03 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का नाम खुफिया एजेंसी की Undesirable Contact Men (अवांछनीय संपर्क व्यक्ति) सूची में शामिल करना और उसका प्रकाशन समाचार पत्रों तथा आधिकारिक वेबसाइट पर करना प्रथम दृष्टया (Prima Facie) मानवाधिकारों का उल्लंघन है, जैसा कि सूचना का अधिकार एक्ट (RTI Act) की धारा 24(1) के तहत परिभाषित किया गया है।
प्रसंग के रूप में RTI Act की धारा 24(1) कहती है कि एक्ट उन खुफिया और सुरक्षा संगठनों पर लागू नहीं होता, जो द्वितीय अनुसूची में सूचीबद्ध हैं। हालांकि, इस धारा में यह अपवाद दिया गया कि यदि जानकारी भ्रष्टाचार या मानवाधिकार हनन से संबंधित है तो वह अधिनियम के दायरे से बाहर नहीं मानी जाएगी।
मामले की पृष्ठभूमि:
जस्टिस सचिन दत्ता उस याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसमें चार्टर्ड अकाउंटेंट ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश के तहत उसकी RTI याचिका खारिज कर दी गई थी।
याचिकाकर्ता का नाम CBI द्वारा तैयार की गई "Undesirable Contact Men" सूची में शामिल किया गया और यह सूची विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित की गई। CBI के लोगो के साथ यह खबर CBI की आधिकारिक वेबसाइट पर भी डाली गई। इन खबरों के अनुसार सरकारी अधिकारियों को चेतावनी दी गई कि वे इस सूची में शामिल लोगों से मेल-जोल आतिथ्य स्वीकार करना या किसी तरह का संबंध न रखें।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने RTI आवेदन दायर कर यह जानकारी मांगी कि उसका नाम इस सूची में क्यों शामिल किया गया, इसके पीछे क्या कारण थे और क्या प्रक्रिया अपनाई गई।
लेकिन CBI के नीति विभाग के सहायक महानिरीक्षक जो RTI के तहत केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (CPIO) के रूप में कार्यरत हैं, उन्होंने RTI आवेदन को RTI Act की धारा 24(1) का हवाला देकर खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि 09.06.2011 की एक सरकारी अधिसूचना के अनुसार CBI को RTI Act की द्वितीय अनुसूची में शामिल किया गया और वह अधिनियम से अपवाद है।
याचिकाकर्ता की पहली अपील और फिर दूसरी अपील भी CIC द्वारा खारिज कर दी गई। इसके बाद उसने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता की दलील:
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि RTI Act की धारा 24(1) में दिया गया अपवाद स्पष्ट रूप से बताता है कि भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ी जानकारी को छुपाया नहीं जा सकता। उसने कहा कि उसका नाम UCM सूची में शामिल किया जाना, बिना किसी उचित प्रक्रिया के सार्वजनिक बदनामी और व्यावसायिक बहिष्कार का कारण बना, जो उसके मानवाधिकारों और गरिमा का उल्लंघन है।
कोर्ट का अवलोकन:
अदालत ने माना कि भले ही CBI RTI Act की धारा 24(1) के तहत अधिनियम से बाहर है लेकिन उसी धारा के अपवाद के तहत मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ी जानकारी को छिपाया नहीं जा सकता।
अदालत ने कहा,
“प्रथम दृष्टया अदालत को याचिकाकर्ता की इस दलील में दम नजर आता है कि उसके नाम का इस प्रकार प्रकाशन उसकी मानव गरिमा और व्यावसायिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है और यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है।”
अदालत ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता ने Union of India बनाम Central Information Commission & अन्य (2022 LiveLaw (Del) 237) में दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पर सही ढंग से भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि मानवाधिकार शब्द को RTI Act में संकीर्ण दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए।
निर्णय:
अदालत ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता ने पहले CIC या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष मानवाधिकार उल्लंघन की बात नहीं उठाई थी।
इसलिए अदालत ने यह निर्देश देते हुए मामला CIC को दोबारा विचार के लिए भेज दिया कि वह इस बात पर विचार करे कि क्या याचिकाकर्ता की मांग की गई जानकारी एक्ट की धारा 24(1) के अपवाद के अंतर्गत आती है या नहीं।
केस टाइटल: Vinod Kumar Bindal बनाम Central Information Commissioner & Others (W.P.(C) 3171/2018)