वैवाहिक वेबसाइट पर दी गई स्वयं-घोषित जानकारी को आय का प्रमाण नहीं माना जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
16 July 2025 1:01 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक पोर्टल पर दी गई कोई भी 'स्वयं-घोषित जानकारी', यदि बिना सत्यापन या पुष्टिकारक साक्ष्य के हो, तो उसे विश्वसनीय या स्वीकार्य आय के प्रमाण के रूप में नहीं माना जा सकता।
जस्टिस स्वरना कांत शर्मा ने स्पष्ट किया कि कानून की अदालत किसी व्यक्ति द्वारा matrimonial वेबसाइट पर किए गए दावे पर भरोसा नहीं कर सकती।
कोर्ट ने पत्नी की वह याचिका खारिज की, जिसमें उसने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
फैमिली कोर्ट ने पति को यह निर्देश दिया था कि वह याचिका दायर करने की तारीख से 31 दिसंबर, 2012 तक 12,500 प्रति माह और 1 जनवरी, 2013 से 22 फरवरी, 2016 (पत्नी के पुनर्विवाह तक) 24,000 प्रति माह का गुज़ारा भत्ता दे।
पत्नी का तर्क था कि पति ने Jeevansathi.com Matrimonial वेबसाइट पर यह दावा किया था कि उसकी वार्षिक आय 10 लाख से अधिक है, जिसे गुज़ारा भत्ते की राशि तय करते समय महत्व मिलना चाहिए था।
वहीं पति की दलील थी कि पत्नी की यह बात गलत है, क्योंकि उसने इस दावे को साबित करने के लिए कोई दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पत्नी ने मामले के लंबित रहने के दौरान पुनर्विवाह कर लिया, जिसकी जानकारी उसने 2023 में ट्रायल कोर्ट में अपनी क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान नहीं दी।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह की जानकारी को छिपाना गंभीर है। इसके बावजूद पत्नी सिर्फ Matrimonial वेबसाइट पर पति के कथित आय के दावे के आधार पर गुज़ारा भत्ता बढ़ाने की मांग कर रही है, जो सिर्फ अनुमान और अटकलों पर आधारित है।
कोर्ट ने कहा,
“इस अदालत का स्पष्ट मत है कि किसी वैवाहिक पोर्टल पर की गई स्वयं-घोषित जानकारी यदि सत्यापित या पुष्ट नहीं है तो उसे आय के विश्वसनीय या स्वीकार्य प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
पत्नी के उस तर्क पर कि पति की आय वर्षों में अवश्य बढ़ी होगी कोर्ट ने कहा कि यह तर्क पूरी तरह अटकलों पर आधारित है।
कहा गया,
“यह अदालत मानती है कि किसी व्यक्ति की आय कई व्यक्तिगत और व्यावसायिक परिस्थितियों पर निर्भर करती है। यह बिना किसी दस्तावेजी प्रमाण के यह मान लेना कि आय समय के साथ लगातार बढ़ी है, उचित नहीं है।”
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