Right to be Forgotten पर टकराव: इंडियन कानून ने लेख हटाने के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया

Amir Ahmad

22 Dec 2025 12:51 PM IST

  • Right to be Forgotten पर टकराव: इंडियन कानून ने लेख हटाने के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया

    कानूनी सर्च इंजन इंडियन कानून ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूरी तरह बरी किए गए व्यक्ति से जुड़ी खबरें और यूआरएल हटाने का निर्देश दिया गया। ट्रायल कोर्ट ने यह आदेश आरोपी के 'राइट टू बी फॉरगॉटन' यानी भुला दिए जाने के अधिकार को स्वीकार करते हुए पारित किया।

    इस मामले में जस्टिस अनिश दयाल ने इंडियन कानून की अपील पर नोटिस जारी किया। इंडियन कानून की ओर से अधिवक्ता अपार गुप्ता और नमन कुमार पेश हुए जबकि सीनियर एडवोकेट त्रिदीप पैस ने याचिकाकर्ता नितिन भटनागर का प्रतिनिधित्व किया।

    सुनवाई के दौरान इंडियन कानून की ओर से ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया गया लेकिन हाईकोर्ट ने फिलहाल इस मांग को स्वीकार नहीं किया।

    जस्टिस दयाल ने कहा कि 'राइट टू बी फॉरगॉटन' से जुड़े कई मामले पहले से ही अदालत के समक्ष हैं। यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है। ऐसे में आदेश पर अंतरिम रोक लगाने का कोई कारण नहीं है।

    अदालत को यह भी बताया गया कि इसी तरह की एक अपील, जो इंडियन एक्सप्रेस ऑनलाइन की ओर से दायर की गई, उसे एक समन्वय पीठ पहले ही खारिज कर चुकी है। हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता पक्ष को छह सप्ताह के भीतर लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया है।

    मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल 2026 को होगी।

    इंडियन कानून ने उस 'जॉन डो' आदेश को चुनौती दी है, जो पिछले महीने पारित किया गया और जिसके तहत कई मीडिया संस्थानों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को संबंधित खबरों के लिंक हटाने का निर्देश दिया गया। ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूरी तरह बरी हो चुके व्यक्ति को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। उसके नाम से जुड़ी खबरें अनिश्चित काल तक ऑनलाइन उपलब्ध नहीं रह सकतीं।

    अदालत ने यह भी टिप्पणी की थी कि डिजिटल सूचनाओं की स्थायित्व प्रकृति और इंटरनेट पर उनकी आसान उपलब्धता, बरी होने के बावजूद व्यक्ति को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। इसी आधार पर अंतरिम निषेधाज्ञा जारी की गई।

    ट्रायल कोर्ट के समक्ष इस मामले में प्रतिवादी के रूप में एएनआई मीडिया, इंडियन एक्सप्रेस, द प्रिंटलाइन मीडिया, एचटी मीडिया, टाइम्स इंटरनेट, बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड, एनडीटीवी, टीएचजी पब्लिशिंग, इंडियन कानून, गूगल एलएलसी और अज्ञात संस्थाओं को शामिल किया गया।

    यह मामला एक रियल एस्टेट पेशेवर से जुड़ा है, जिसे 2019 में दर्ज मोसर बेयर मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी बनाया गया। उसे 2023 में गिरफ्तार किया गया, लेकिन 2024 में अदालत ने उसे मामले के गुण-दोष के आधार पर पूरी तरह बरी कर दिया। इसके बाद उसने सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल कर ऑनलाइन उपलब्ध खबरों और लिंक को हटाने की मांग की थी।

    याचिका में आरोप लगाया गया कि खबरों के यूआरएल और उनमें इस्तेमाल किए गए शब्द अपमानजनक हैं और एक क्लिक पर पूरी दुनिया में उपलब्ध होने के कारण उसकी प्रतिष्ठा और निजी जीवन को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ट्रायल कोर्ट ने इन दलीलों को स्वीकार करते हुए अंतरिम राहत दी थी, जिस पर अब दिल्ली हाईकोर्ट में कानूनी बहस होने जा रही है।

    यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की भूमिका और 'राइट टू बी फॉरगॉटन' के बीच संतुलन को लेकर एक अहम कानूनी प्रश्न के रूप में देखा जा रहा है।

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